किताब- वन लाइफ इज नॉट इनफ (इंग्लिश)
लेखक- कुंवर नटवर सिंह
प्रकाशक- रूपा पब्लिकेशन
कीमत- 500 रुपये (हार्ड बाउंड एडिशन)
नटवर सिंह की आत्मकथा- वन लाइफ इज नॉट इनफ. ये किताब रिलीज से पहले ही चर्चाओं में आ गई. वजह. 2004 का वह राजनीतिक वाकया, जब सोनिया गांधी ने जनादेश के बावजूद पीएम की कुर्सी नहीं ली. मनमोहन सिंह को पीएम बना दिया. खबरें इसलिए भी बनीं क्योंकि पांच दशक तक गांधी परिवार के बेहद करीबी रहे नटवर को ऐन किताब की रिलीज से पहले मनाने पहले प्रियंका और फिर सोनिया पहुंचीं. क्रूरता की हद तक निस्संगता दिखाने को आतुर नटवर ने इस वाकये को भी सार्वजनिक कर दिया. बहरहाल, किताब आई और इसके कुछ राजनीतिक प्रसंगों की जमकर मीडिया में चर्चा हुई. मगर 'वन लाइफ इज नॉट एनफ' को इन तक सीमित कर देना गलत होगा.
इस किताब को पढ़कर कुछ चीजें सबसे पहले दर्ज होती हैं. पहली, नटवर सिंह बोर नहीं करते. पूरी किताब में किस्सों को रोचक शैली में बयान किया गया. घटनाओं से मिले सबक साफ तौर पर सीधी भाषा में रेखांकित किए गए. चैप्टर्स को भी अंतरालों में बांटा गया. कुछ चीजें और भी नुमाया होती हैं. नटवर सिंह की पंडित नेहरू, इंदिरा, राजीव और फिर सोनिया से नजदीकी. उनका घनघोर साहित्यिक ज्ञान, जिसकी झलक जब तक दिए गए तमाम विभूतियों के उद्धरणों से मिल जाती है. और नटवर सिंह का स्वयं को ज्यादातर महान घटनाओँ के केंद्र में पाए जाने का आत्मज्ञान. भदेस भाषा में इसे अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना कहते हैं. पर एक आड़ ये भी हो सकती है कि जब अपनी कहानी लिख रहे हैं तो हर किरदार और वाकये को अपनी नजर और समझ से ही बखाना जाएगा.
बहरहाल, इस किताब को पढ़कर भारत की विदेश नीति, राजनीति और पावर क्लब के तौर तरीकों के कई राज आम आदमी पर जाहिर होते हैं. उनके बारे में तो आप किताब पढ़कर ही जानेंगे. इधर, हम आपको कुछ रोचक किस्से पढ़वा रहे हैं, जो किताब के जरिए हमें मालूम पड़े.
1. नटवर सिंह भरतपुर के रहने वाले हैं और उनके पिता वहां के राजदरबार में अहम पद पर थे. नटवर को बड़े भाइयों की तर्ज पर पढ़ने के लिए अजमेर के इलीट मेयो कॉलेज भेजा गया. मगर कुछ बरसों बाद ही उन्हें ग्वालियर के सिंधिया कॉलेज भेज दिया गया. यहां के माहौल से ऊबकर नटवर ऊंची बाउंड्री फांद घर भाग गए. मैली कुचैली हालत में नटवर घर पहुंचे तो उनके पिता और भरतपुर के राजा ने ढंग से हड़काया. अगले ही दिन नटवर ग्वालियर की ट्रेन पर फिर सवार थे.
2. सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़ाई के बाद नटवर इंग्लैंड के कैंब्रिज पहुंच गए. वहां जाने के दौरान प्लेन में उन्हें नेहरू के करीबी कृष्णा मेनन मिले. उन्होंने नटवर को सिविल सर्विसेस इंटरव्यू के लिए कई टिप्स दिए. नटवर ने सिविल सर्विसेस का एग्जाम क्लियर कर लिया और इंडियन फॉरेन सर्विस के लिए सेलेक्ट हुए. नेहरू ने सभी प्रोबेशनर्स को मिलने बुलाया. नटवर उनके भतीजों के दोस्त थे, सो पहले से परिचय था. दुआ सलाम और हाल चाल के बाद नेहरू ने नटवर से चीन पर सवाल किया. क्या हमें चीन से कोई खतरा है. नटवर बोले, है भी और नहीं भी. आपका पड़ोसी सबसे अच्छा दोस्त और सबसे बुरा दुश्मन साबित होता है. नेहरू आंखों में शरारत भरी चमक लाकर बोले. मुझे चाणक्य नीति सिखा रहे हो नटवर.
3. दिल्ली में पोस्टिंग के दौरान एक आधिकारिक फंक्शन में नटवर की नजर पटियाला के महाराज यादवेंद्र सिंह की खूबसूरत बेटी हेम पर ठहर गई. ये पहली नजर के प्यार जैसा कुछ था. पहली मुलाकात के आखिर में ही नटवर ने हेम से पूछ लिया. क्या मैं आपको फोन कर सकता हू. मुलाकातों का सिलसिला डेढ़ साल चला. फिर कनाट प्लेस के गेलॉर्ड रेस्तरां में हेम के जन्मदिन पर नटवर ने प्रपोज कर दिया. तीन हफ्ते बाद जवाब मिला. पटियाला के राजपरिवार ने शुरुआती विरोध किया. फिर सब कुबूल हो गया. शादी में एक गवाह के बतौर दस्तखत किए इंदिरा गांधी ने.
4. विदेश सेवा से नटवर को दिल्ली बुला लिया गया. नेहरू के प्रधानमंत्री दफ्तर में काम करने के लिए. यहीं उन्होंने इस देश के पहले ताकतवर नौकरशाह पीएन हक्सर के साथ काम किया. एक दिन नेहरू ने विदेशी राज्याध्यक्ष को एक खत लिखा और फाइल के साथ पीएमओ को दे दिया. फाइल पहुंची नटवर के पास जो खत पढ़कर मगन तो हो गए, मगर जिसे देना था, उसे देने के बजाय और काम में व्यस्त हो गए. फिर अगली रोज सुबह नेहरू ने खत के बारे में एक अधिकारी की टिप्पणी जानी. पता चला कि खत उन तक पहुंचा ही नहीं. नटवर की खोज शुरू हुई. वह गए थे एयरपोर्ट. नेहरू गुस्से से आग बबूला हो गए. बोले, पुलिस बुलाओ, उसको पकड़ लो और दराज तोड़ दो. नटवर नेहरू के गुस्से के डर से कुछ दिन पीछे के दरवाजे से दफ्तर आते जाते रहे.
5. पाकिस्तान में पोस्टिंग के दौरान वहां के सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने एक दिन नटवर से कहा, कुंवर साहब, कश्मीर हमारी रगों में खून की तरह बह रहा है. नटवर ने पलटवार किया. जनरल साहेब, आप खून की बात कर रहे हैं. कश्मीर तो हमारी अस्थि मज्जा (बोन मैरो) का हिस्सा है. जिया उल हक और नटवर के बीच कुछ गर्माहट थी क्योंकि दोनों ही दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़े थे. जब इस कॉलेज का एक दल पाकिस्तान दौरे पर गया तो वहां के अध्यापकों और छात्रों को जनरल की तरफ से शानदार दावत और तोहफे मिले.
6. इंदिरा गांधी के बतौर प्रधानमंत्री आखिरी कार्यकाल के दौरान नटवर उनके दफ्तर के साथ अटैच थे. तभी उन्होंने इंदिरा को राजनीति में आने की ख्वाहिश जाहिर कर दी. इंदिरा ने हामी भर दी. तय हुआ कि आईएफएस से इस्तीफा दिया जाएगा और राज्यसभा के रास्ते संसद में एंट्री होगी. मगर कांग्रेस महासचिव राजीव गांधी की करीबी कोटरी को नटवर का ये दखल रास नहीं आया. हल्ला कर दिया गया कि राज्यसभा क्यों. नटवर को लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए. फिर यही तय हुआ. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में 84 के चुनाव हुए. नटवर भरतपुर से लोकसभा चुनाव जीते.
7. नटवर राजीव गांधी के मंत्रिपरिषद में बतौर राज्यमंत्री शामिल हुए. मगर उन्हें शुरुआती सालों में विदेश मंत्रालय नहीं मिला. हालांकि राजीव तमाम अहम मुद्दों पर उनकी राय लेते रहे. नटवर का कहना है कि राजीव ने श्रीलंका के मुद्दे पर उन्हें किनारे रखा. उन्होंने दावा किया है कि राजीव गांधी लिट्टे चीफ प्रभाकरण से खुद भी मिले और अपने मंत्रियों को तो कई बार मिलने को कहा. एक बार तो आलम ये हो गया कि बेंगलुरु में गुट निरपेक्ष देशों के प्रमुखों की बैठक चल रही थी.
8. राजीव की हत्या के बाद तमाम विदेशी प्रमुख और नेता सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे. इस दौरान नटवर सिंह लगातार सोनिया के साथ थे. पाकिस्तान की नेता बेनजीर भुट्टो ने सोनिया गांधी को सलाह दी कि उन्हें अपने बच्चों की खातिर सियासत से दूर ही रहना चाहिए. इस पर नटवर ने प्रतिवाद करते हुए कहा, आप जो सलाह दे रही हैं, उस पर खुद अमल क्यों नहीं किया. गौरतलब है कि बेनजीर के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे और फौजी तख्तापलट के बाद उन्हें फांसी दे दी गई थी. बेनजीर ने बाद में पिता की विरासत संभाली.
9. जब ये साफ हो गया कि सोनिया गांधी की इच्छा से ही 1991 में कांग्रेस का नया अध्यक्ष और पीएम तय होगा तो नटवर ने सोनिया को सलाह दी पीएन हक्सर से मिलने की. हक्सर गांधी परिवार के वफादार रहे नौकरशाह थे, जो रिटायर हो चुके थे. उन्होंने पहला नाम तत्कालीन उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा का सुझाया. शर्मा ने अपने खराब स्वास्थ का हवाला दे इनकार कर दिया. फिर बारी आई पीवी नरसिम्हा राव की. मगर पीएम बनने के बाद नरसिम्हा राव और सोनिया गांधी के बीच संबंध लगातार खराब होते चले गए.
10. नटवर सिंह ने राहुल गांधी को दुनिया की कुछ मशहूर राजनीतिक हस्तियों की बायोग्राफी पढ़ने को दी थी. 2004 में मनमोहन को पीएम बनाए जाने का ऐलान होने के बाद एक चर्चित डिनर पार्टी हुई. इसमें माहौल तनावपूर्ण था. नटवर का कहना है कि राहुल गांधी और उनके पपी के आने के बाद पार्टी में कुछ रौनक आई. नटवर ने पूछा. आपने किताबें पढ़ीं, कैसी लगीं. राहुल ने दो किताबों का जिक्र किया. फिर सोनिया ने बताया कि एक किताब तो राहुल के पपी ने चबा ली.