scorecardresearch
 

बुक रिव्यू: आजादी से जीने का सलीका सिखा रहे हैं शिव खेड़ा

किताब शुरू ही ये बतलाते हुए होती है कि ये किताब एक आंदोलन है. किताब उनके लिए है जिनकी चेतना अब तक मरी नहीं सिर्फ सो गई है.

Advertisement
X
Aazadi se kaise jiyein
Aazadi se kaise jiyein

किताबः आजादी से जिएं
लेखक:
शिव खेड़ा
पब्लिशरः ब्लूम्सबरी इंडिया
कीमतः
299 रुपये (पेपरबैक एडिशन)

Advertisement

शिव खेड़ा उद्यमी हैं, बिजनेस सलाहकार और प्रेरक प्रवक्ता हैं. साथ ही साथ लेखक भी हैं. अब तक वो 16 किताबें लिख चुके हैं. लोग उन्हें उनकी सेल्फ हेल्प किताब 'यू कैन विन' से ज्यादा जानते हैं. मजाक में 'बीमा एजेंटों का धर्मग्रंथ' कही जाने वाली 'यू कैन विन' का अनुवाद 16 भाषाओँ में हो चुका है. 'आजादी से जिएं' शिव खेड़ा की 2004 में प्रकाशित किताब 'फ्रीडम इज नॉट फ्री' का हिंदी अनुवाद है और संयोग से इसमें भी इसमें कुल जमा 16 चैप्टर हैं.

ये किताब सबके लिए नहीं है
सेल्फ हेल्प बुक लिखने वालों की खासियत और एक हद तक मजबूरी भी होती है गुब्बारे में हवा भरना. सामने वाले की क्षमताओं को जाने बिना बहुत कुछ करने को प्रेरित कर डालना.तो क्या ये भी सेल्फ हेल्प बुक है? नहीं. किताब शुरू ही ये बतलाते हुए होती है कि ये किताब एक आंदोलन है. किताब उनके लिए है जिनकी चेतना अब तक मरी नहीं सिर्फ सो गई है. लेखक ने स्पष्ट किया है कि ये किताब सबके लिए नहीं है. ये उनके लिए है जिनके पास न सिर्फ चरित्र है बल्कि किसी मकसद के लिए खड़े हो पाने का साहस भी है.

Advertisement

खुला लाइसेंस नहीं है आजादी
आजादी से जिएं में आजादी का मतलब मूल्यों पर आधारित सफलता को बताया गया है. मूल्य भी दो तरह के- पॉजिटिव और नेगेटिव. जिक्र Pay it forward का भी है और भलाई की चेन का भी. बाद में यही चेन हमें सलमान की 'जय हो' में नजर आती है. सिंगापुर के टैक्सी ड्राइवर्स भी राष्ट्रीय गौरव का महत्व समझाने को इस्तेमाल किये गए हैं. लेखक की मंशा साफ़ नजर आती है. हरसंभव तरीके से पढ़ने वालों तक अपनी बात पहुंचाना. शिव खेड़ा भी शायद अपना पाठक वर्ग पहचान गए हैं.

दो-दो रुपयों के लिए बच्चों को सिखाते हैं झूठ बोलना
तीसरे चैप्टर तक आते-आते किताब शिकायती नजर आने लगती है. शिकायत सत्ता के केंद्र से है. नेताओं और पुजारियों से है,उन लोगों से भी है जो दो-दो रुपयों के लिए अपने बच्चों को झूठ बोलना सिखाते हैं.शिकायतें जरुरी हैं क्योंकि अब किताब असल समस्या खोज रही है. नागरिक हैं,उनमें रक्षक और भक्षक हैं,नागरिकों में ही पूंजी और कर्ज हैं,असल में ये देशभक्त और गद्दार हैं,फिर देशभक्तों के भी प्रकार बताए गए हैं और गद्दारों के भी.

किसी सिख को भीख मांगते देखा है?
किताब जैसे-जैसे आगे बढ़ती हैं तथ्य और आंकड़े बढ़ते जाते हैं. ढेरों उदाहरण, सुने-सुनाए किस्सों, कुछ कैची लाइन्स के अलावा अखबारी रपटें भी बहुतायत में हैं. लेखक ने जहां से जो कुछ भी उठाया यथासंभव आभार प्रकट करने का प्रयास किया है. अंत तक पहुंचते-पहुंचते किताब समस्याओं से हटकर प्राथमिकताएं बताती है और समाधान भी.

Advertisement

क्यों पढ़ें
मोटिवेशनल स्पीकर्स को सुन रोंगटे खड़े करवा लेने वालों में हों, नेपोलियन हिल, रॉन्डा बर्न, शिव खेड़ा और रॉबिन शर्मा भाते हों, निजी हालात से परेशान हों, इतना कुछ गलत क्यों है, समझ न आ रहा हो, तो पढ़ लीजिए. किताबों में असल जिंदगी के जवाब खोजते हों, बहुत जल्द किसी से प्रभावित होने या न होने वालों में से हों तो एक बार पढ़ें. भाषा सरल है, पर अनुवाद कुछ खटकता है. हालांकि ऐसा कुछ नही है जो समझ न आ सके.

Advertisement
Advertisement