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लोकपाल पर बात कर रहे चाचा हैं, एक चंपू हैं

हर अपराध पर लोकपाल का पहरा नहीं हो सकता. इसलिए इस समाज को एक अंतर्लोकपाल की जरूरत है. यह बात मजेदार तरीके से अशोक चक्रधर ने कही है अपनी नई किताब 'चंपू का अंतर्लोकपाल' में. 'चौं रे चंपू' सीरीज की बाकी किताबों की तरह यह भी बातचीत की शैली में लिखी गई है, जिसमें तंजो-लतीफ का भरपूर इस्तेमाल किया गया है.

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Ashok Chakradhar
Ashok Chakradhar

हर अपराध पर लोकपाल का पहरा नहीं हो सकता. इसलिए इस समाज को एक अंतर्लोकपाल की जरूरत है. यह बात मजेदार तरीके से अशोक चक्रधर ने कही है अपनी नई किताब 'चंपू का अंतर्लोकपाल' में. 'चौं रे चंपू' सीरीज की बाकी किताबों की तरह यह भी बातचीत की शैली में लिखी गई है, जिसमें तंजो-लतीफ का भरपूर इस्तेमाल किया गया है.

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नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर पर इस किताब को लॉन्च किया. इस दौरान अशोक चक्रधर ने अपनी जिंदगी और साहित्य के अनछुए पहलुओं और समकालीन सामाजिक-भाषाई यथार्थ पर बात की. इस बातचीत के सूत्रधार थे इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के एसोसिएट एडिटर सौरभ द्विवेदी.

अशोक चक्रधर ने हिंदी का भविष्य उज्ज्वल बताया. इस कार्यक्रम के साथ ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर और वाणी प्रकाशन की साझा पहल का शुभारंभ हो गया, जिसके तहत हिंदी भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. इसी कार्यक्रम के साथ बुक स्टोर में हिंदी किताबों के सेक्शन की शुरुआत भी हो गई.

क्या है चंपू का अंतर्लोकपाल?
मशहूर कवि और व्यंग्यकार अशोक चक्रधर 'चौं रे चंपू' सीरीज लिखते हैं, जिसकी पांचवी किताब है, 'चंपू का अंतर्लोकपाल.' वाणी प्रकाशन ने इस किताब को छापा है. किताब में चाचा और उनके भतीजे यानी चंपू की मजेदार बातचीत है. चाचा और चंपू सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर मजेदार शैली में बात करते हैं. अशोक चक्रधर ने किताब में ब्रज भाषा का भी भरपूर इस्तेमाल है जो स्वभावत: प्रेम और विनोद की ही भाषा है. किताब में लोकपाल बिल को लेकर चाचा और चंपू का संवाद बेहद रोचक है.

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