
वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के बाद यदि दूसरी कोई घटना दक्षिण एशिया के लिए सबसे अहम है तो वो है विभाजन से बने पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के नाम से एक नया जन्म. बांग्लादेश का बनना इतिहास की उतनी ही बड़ी घटना है जितना की भारत का विभाजन.
इस विभाजन की बुनियाद में है 1971 का बांग्लादेश मुक्तियुद्ध. बांग्लादेश लिबरेशन वॉर के इस पूरे कथानक में भारत सबसे अहम किरदार है. भारत की भूमिका बांग्लादेश के लिए एक नेमत है, पाकिस्तान के लिए एक दर्द और क्षोभ. इसी मिश्रित भाव में 1971 के आगे के दक्षिण एशिया की राजनीति और कूटनीति तय होती है. इसी एक घटना से भूगोल और इतिहास ही नहीं, राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक ताना-बाना भी बदल गया है.
इसलिए भारत को, पाकिस्तान को और बांग्लादेश को आज के संदर्भ में समझने के लिए जब भी प्रयास किया जाएगा, उसमें 1971 एक अनिवार्य अध्याय के तौर पर हमेशा शामिल रहेगा. और इसे अनदेखा करके कम से कम दक्षिण एशिया के इतिहास की कथा नहीं कही-समझी जा सकती है.
बांग्लादेश के निर्माण को समझने का एक अहम दस्तावेज
बांग्लादेश के जन्म के 50 वर्ष हो गए हैं और इसलिए यह एक बेहतर समय है कि हम इतिहास के इस अध्याय को फिर से पलटकर देखें. समझने के क्रम में एक बेहतर विकल्प भी उपलब्ध है. जाने-माने पत्रकार मानस घोष की हाल ही में एक किताब प्रकाशित हुई है- बांग्लादेश वारः रिपोर्ट फ्राम गाउंड ज़ीरो. मानस घोष की यह किताब हालांकि अंग्रेज़ी में है लेकिन भाषा के बंधन से मुक्त यह किताब बांग्लादेश के निर्माण को समझने का एक अहम दस्तावेज है.
जीवन का उद्देश्य तलाशने की कोशिश करती एक किताब
मानस घोष उन चंद पत्रकारों में हैं जो इस पूरे युद्ध के साक्षी हैं. मानस उन दिनों बांग्लादेश में युद्ध कवर कर रहे थे और युद्ध से लेकर सत्ता परिवर्तन तक और उसके बाद एक नए बांग्लादेश के निर्माण के वो साक्षी रहे हैं. ऐसे में मानस के पास ऐसा बहुत कुछ कहने-बताने को है जो सरकारें कहने से बचेंगी या परहेज़ करेंगी.
बांग्लादेश पर उपयोगी पुस्तक
मानस का यह फ़र्स्ट पर्सन अनुभव ही उनकी किताब को बाक़ी उपलब्ध सामग्री से अलग और बेहतर बनाता है. बांग्लादेश पर यह उपयोगी पुस्तक नियोगी प्रकाशन की ओर से आई है और पाठकों के लिए उपलब्ध है.