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पुस्तक अंशः मैला आँचल; वह उपन्यास, जिसने रेणु को प्रेमचंद के समकक्ष खड़ा कर दिया

फणीश्वरनाथ रेणु की कालजयी कृति 'मैला आँचल' हिंदी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है. अभी राजकमल प्रकाशन ने इसके 42वें संस्करण का प्रकाशन किया है. रेणु की पुण्यतिथि पर साहित्य आजतक पर 'मैला आँचल' का यह अंश आप भी पढ़िएः

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मैला आँचल के 42वें संस्करण का कवर [ फोटो सौजन्यः राजकमल प्रकाशन ]
मैला आँचल के 42वें संस्करण का कवर [ फोटो सौजन्यः राजकमल प्रकाशन ]

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फणीश्वरनाथ रेणु की कालजयी कृति 'मैला आँचल' हिंदी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है. अभी राजकमल प्रकाशन ने इसके 42वें संस्करण का प्रकाशन किया है. इस उपन्यास ने अपने प्रकाशनकाल के साथ ही लोकप्रियता के कई कीर्तिमान स्थापित कर लिए थे. यह देश और हिंदी भाषा की सर्वाधिक प्रभावशाली दस उपन्यासों में से एक है.

नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर फणीश्वरनाथ रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं भी घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है.

मैला आँचल का कथानायक एक युवा डॉक्टर है जो अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद एक पिछड़े गाँव को अपने कार्य-क्षेत्र के रूप में चुनता है, तथा इसी क्रम में ग्रामीण जीवन के पिछड़ेपन, दु:ख-दैन्य, अभाव, अज्ञान, अंधविश्वास के साथ-साथ तरह-तरह के सामाजिक शोषण-चक्र में फँसी हुई जनता की पीड़ाओं और संघर्षों से भी उसका साक्षात्कार होता है.

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'मैला आंचल का कथा-क्षेत्रा मेरीगंज है. नील की खेती से सम्बद्ध किसी अंग्रेज अफसर डब्लू. जी. मार्टिन की पत्नी का नाम जब इस जनपद से जुड़ गया, तो लोग उसका पुराना नाम भूल गये. मेरी, जो मार्टिन की नर्इ पत्नी थी और जिसके लिए मार्टिन ने कोठी बनवार्इ थी, बहुत दिन उसमें नहीं रह सकी. मेरी को मलेरिया ने ऐसा धर दबाया कि वह परलोक सिधार गर्इ. मार्टिन उसके वियोग में पागल होकर मर गया ओर उसी के साथ भारत में नीलयुग का अंत भी हो गया.

मार्टिन जब तक जीवित रहा, मेरीगंज में मलेरिया सेंटर खुलवाने का प्रयास करता रहा. इस पृष्ठभूमि में बिहार के पूर्णिया जिले के ग्रामीण अंचल के मेरीगंज गाँव के लोगों की कथा की शुरुआत उपन्यास में की गर्इ है. कथा का अंत इस आशामय संकेत के साथ होता है कि युगों से सोई हुई ग्राम-चेतना तेजी से जाग रही है.

कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की इस युगान्तरकारी औपन्यासिक कृति 'मैला आँचल' में कथाशिल्प के साथ-साथ भाषा और शैली का विलक्षण सामंजस्य है, जो जितना सहज-स्वाभाविक है, उतना ही प्रभावकारी और मोहक भी. ग्रामीण अंचल की ध्वनियों और धूसर लैंडस्केप्स से सम्पन्न यह उपन्यास हिंदी कथा-जगत में पिछले कई दशकों से एक क्लासिक रचना के रूप में स्थापित है.

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आज फणीश्वरनाथ रेणु की पुण्यतिथि पर राजकमल प्रकाशन के सौजन्य से 'मैला आँचल' का यह अंश आप भी पढ़िएः

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पुस्तक अंशः 'मैला आँचल'

रात को तंत्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए!

यह सब खलासी की करतूत है. ऊपरी आदमी के सिवा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है?

पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं. खेती-बारी के समय रात को ही जनो को ठीक करना होता है, सूरज उगने से एक घंटा पहले ही खेतों पर मजदूरों को पहुँच जाना चाहिए. इसलिए सभी बड़े किसान शाम या रात को ही अपने-अपने जनों को कह आते हैं. तंत्रिकाटोली में जब से खलासी का आनाजाना शुरू हुआ है, तभी से नई-नई बातें सुनने को मिल रही हैं.

देखा-देखी, दूसरे टोले में भी नियम-कानून, पंचायत और बंदिश हो गई है. बेचारे सहदेव मिसर को रात-भर तंत्रिमा लोगों ने बाँधकर रखा. ... फुलिया के घर में घुसा था तो फुलिया ने हल्ला क्यों नहीं किया ? जिसके घर में घुसा उसकी नींद भी नहीं खुली, माँ-बाप को आहट भी नहीं मिली और उसका कुत्ता भी नहीं भूँका. गाँव के लोगों को बेतार से खबर मिल गई. यह खलासी की बदमाशी है. रही हालत यही तो छोटे लोगों के टोले में जन के लिए जाना मुश्किल हो जाएगा. कौन जाने, किस पर कब झूठ-मूठ कौन-सी तोहमत लग जाए? पंचायत होनी चाहिए. राजपूतों ने यदि इस पंचायत में ब्राह्मणों का पक्ष नहीं लिया तो ब्राह्मण लोग ग्वालों को राजपूत मान लेंगे.

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'हमको कुछ नहीं मालूम,' फूलिया पंचों के बीच हाथ जोड़कर कहती है. 'जब आँगन में हल्ला होने लगा तब मेरी आँखें खुलीं.'

सहदेव मिसर के पास मँहगूदास के अँगूठे की टीप है- सादा कागज पर. मँहगू की टीक सहदेव के हाथ में है. सहदेव जो चाहे कर सकता है. दोनों गायें और चारों बाछे कल ही खूँटे से खोलकर ले जाएगा. इसके अलावा साल-भर का खरचा भी तो सहदेव ने ही चला दिया है. एक आदमी की मजदूरी से तो एक आदमी का भी पेट नहीं भरता है.... लेकिन अब फुलिया के हाथ में ही सहदेव मिसर की इज्जत और अपने बाप की दुनिया है, उसकी बोली में जरा भी हेर-फेर हुआ कि सहदेव की इज्जत धूल में मिल जाएगी और उसके बाप की दुनिया भी उजड़ जाएगी.

पंचायत में गाँव-भर के छोटे-बड़े लोग जमा हुए हैं. तहसीलदार साहब पूरैनिया गए हैं. पंचायत में अकेले सिंह जी बोल रहे हैं. काली टोपीवाले संयोजक भी हैं. बालदेव जी भी हैं. कालीचरण बिना बुलाए ही आया है. सिंह जी अकेले ही जिरह-बहस कर रहे हैं. तहसीलदार साहब रहते तो थोड़ी सहूलियत होती सिंह जी को।

“...बात पूछने पर एक घंटे में तो जवाब मिलता है.... हाँ, जब आँगन में हल्का होने लगा तब तुम्हारी नींद खुली.... सुन लीजिए सभी पंच लोग....अच्छा, जब तुम्हारी नींद खुली तो तुमने क्या देखा?”

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“सहदेव मालिक को आँगन में घेरकर सभी हल्ला कर रहे थे.“

"अच्छा, तुम बैठो. कहो, सहदेव मिसर? अब आप बताइए कि मँहगूदास के यहाँ उतनी रात को आप क्यों गए थे?”

“रात में हमारे पेट में दर्द हुआ. लोटा लेकर बाहर निकले. जब दिसा-मैदान से हम लौट रहे थे तो देखा कि कमला किनारेवाले खेत में किसी का बैल गेहूँ चर रहा है. इसीलिए मँहगू को जगाने गया था.“

“क्यों?”

“कमला किनारेवाली जमीन का पहरा करने के लिए मँहगूदास को ही दिया है.“

"अच्छा, तब?”

"जब हम जा रहे थे तो रबिया और सोनमा को आपके खेत में का सकरकंद उखाड़ते पकड़ा. दोनों को डाँट-डपट दिया. मंहगूदास को जगाकर जैसे ही हम उनके आँगन से निकल रहे थे कि रबिता, सोनमा, तेतरा और नकछेदिया ने हमको पकड़ लिया और हल्ला करने लगे.“

"क्या बताएँ, हमारा पाँच बीघा सकरकंद इन्हीं सालों ने चुराकर खतम कर दिया....अच्छा, आप बैठ जाइए. ...कहाँ है महंगू?”

“जी सरकार,” मँहगू बूढ़ा हाथ जोड़कर खड़ा होता है.

“सहदेव मिसर ने तुमको जाकर जगाया था?"

“जी सरकार!”

“अब पंच लोग फैसला करें कि असल बात क्या है.“

कालीचरन कैसे चुप रह सकता है! पंचायत में एकतरफा बात नहीं होनी चाहिए. रबिया और सोनम पार्टी का मेंबर है. यह तो पंचायत नहीं, मुँहदेखी है. कालीचरण कैसे चुप रह सकता है- “सिंह जी, जरा हमको भी कुछ पूछने दीजिए.“

पंचायत के सभी पंचों की निगाहें अचानक कालीचरन की ओर मुड़ गई. सिंह जी गुस्से से लाल हो गए. लेकिन पंचायत में गुस्सा नहीं होना चाहिए. राजपूतटोली के नौजवान आपस में कानाफूसी करने लगे. संयोजक जी ने पाकेट टटोलकर देख लिया- सीटी लाना भूल तो नहीं गए हैं? जोतखी जी एतराज करते हैं –“कालीचरन को हम लोग पंच नहीं मानते.“

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"तो पहले इसी बात का फैसला हो जाए कि पंचायत के कितने लोग हमको पंच मानते हैं और कितने लोग नहीं.“ एक आदमी के चाहने और न चाहने से क्या होता!... अच्छा, पंच परमेसर ! क्या हमको इस पंचायत में बैठने, बोलने और राय देने का हक नहीं? क्या हम इस गांव के बासिंदे नहीं हैं?”...कालीचरन खड़ा होकर कहता है, “ यदि आप लोग हमको पंच मानते हैं तो हाथ उठाइए...

पुस्तकः मैला आँचल

लेखक: फणीश्वरनाथ रेणु

प्रकाशकः राजकमल प्रकाशन

विधाः उपन्यास

कीमत:  रुपए 299/- पेपरबैक

             रुपए 795/- हार्डबाउंड

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