बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को दिल्ली में सुविख्यात चिंतक, सर्जक और साहित्यकार प्रो. रघुवंश के अंधानुकरण और तानाशाही प्रवृतियों से राष्ट्र को आगाह करते लेखों के संकलन 'हम भीड़ है' पुस्तक का लोकार्पण किया. इस अवसर पर प्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयी, प्रसिद्ध पत्रकार हरिवंश और कुर्बान अली ने 'हम भीड़ है' किताब पर अपने-अपने विचार रखे. यह पुस्तक राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई है.
यह पुस्तक 'हम भीड़ हैं’ बताती है कि रघुवंश में आधुनिकता और विकास का एक ऐसा स्वरूप पहचानने की व्याकुलता थी, जो काल की दृष्टि से 'नया’ हो और देश की दृष्टि से 'भारतीय’ हो. यही आकांक्षा रघुवंश जी को आचार्य नरेंद्र देव, डॉ. लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे चिंतकों की ओर आकृष्ट करती रही. इस पुस्तक में संकलित लेखों से यह भी पता चलता है कि उन्होंने अपने चिंतन का फलक कितना व्यापक रखा. इसीलिए वे शिक्षा, राजनीतिक व्यवस्थाओं और सांप्रदायिक संकटों को समझने और समझाने में निरंतर संलग्न रहे.
रघुवंश ने 'आधुनिकता’ को केवल 'व्यक्ति’ की विशिष्टता के रूप में नहीं, बल्कि अपने समाज के गतिशील होने की सांस्कृतिक आकांक्षा के वैशिष्ट्य के रूप में समझने की चेष्टा की. दरअसल वे सांस्कृतिक चिंतक थे. संस्कृति को परंपरा की रूढियों से मुक्त करके उन्होंने अपने समय के समाज को विभिन्न समस्याओं से संदर्भित किया.
रघुवंश 'मनुष्य की सांस्कृतिक उपलब्धियों’ की कसौटी पर अपने समय और समाज की स्थितियों को परखने के हिमायती थे.
लेखक प्रो. रघुवंश के बारे में
30 जून, 1921 को उत्तर प्रदेश के जिला हरदोई के गोपामऊ कस्बे में उनका जन्म हुआ. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी भाषा में एम.ए., डी.फिल की उपाधि प्राप्त की. वहीं हिंदी विभाग में प्रवक्ता, रीडर, प्रोफेसर (अध्यक्ष) रहकर हिंदी भाषा, साहित्य के अध्ययन-अध्यापन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया. सन् 1981 में सेवा-निवृत्ति के उपरान्त विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोध-परियोजना के अंतर्गत शिमला के उच्च अध्ययन संस्थान में ‘मानव संस्कृति का रचनात्मक आयाम’ विषय पर शोध-कार्य किया.