किताब: ब्लैक टॉरनैडो
भाषा: अंग्रेजी
लेखक : संदीप उन्नीथन
प्रकाशक: हार्पर कॉलिंस इंडिया
कीमत: 299 रुपये
पन्ने: 216
'ब्लैक टॉरनैडो: द थ्री सीज ऑफ मुंबई 26/11' न केवल उस दर्दनाक मंजर की याद दिलाती है, बल्कि यह भी बताती है कि हमारे जांबाज ब्लैक कैट कमांडोज को ऑपरेशन के दौरान किस प्रकार से कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा. संदीप उन्नीथन ने पुलिस, सेना और ब्यूरोक्रेसी की कमियां उजागर करने के साथ ही इन तीनों के संघर्ष को भी किताब में बखूबी पेश किया है.
नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) 26/11 हमले के वक्त 'ब्लैक टॉरनैडो' नाम से ऑपरेशन चलाया था, किताब का शीर्षक भी यही है. संदीप उन्नीथन इंडिया टुडे मैग्जीन में डेप्यूटी एडिटर हैं और रक्षा से जुड़े मामलों पर कई वर्षों से लिख रहे हैं. जाहिर है, उनका यह अनुभव किताब लिखने में काफी काम आया. किताब में घटनाओं को जिस प्रकार से लिखा गया है, उससे साफ झलकता है कि जिस विषय पर उन्होंने लिखा है, उसके बारे में उनका लंबा अनुभव रहा है.
उदाहरण के तौर पर किताब का यह अंश- 'रात करीब पौने बारह बजे संयुक्त पुलिस आयुक्त देवेन भारती को पुलिस कंट्रोल रूम से एक महिला के बारे में कॉल आई जो ताज में फंसी हुई थी. भारती ताज में एनएसजी के साथ कोऑर्डिनेशन का काम देख रहे थे. भारती के पास यह कॉल सीधे नहीं आई थी बल्कि ताज में गोलीबारी शुरू होने के समय से ही उसके डेटा सेंटर में छिपी प्रिया फ्लोरेंस मार्टिस ने अपने अंकल को फोन किया था, जिन्होंने इसकी सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दी. उनका साथी मनीष सर्वर रूम के एक अन्य हिस्से में छिपा हुआ था. आतंकी हमले के बाद से ही उनके पास खाने-पीने को कुछ नहीं था.'
संदीप उन्नीथन ने ऑपरेशन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी को फैक्ट्स के साथ पेश किया है. किताब की शुरुआत 26/11 हमले को रीकॉल करते हुए होती है और फिर 'ब्लैक टॉरनैडो' ऑपरेशन के बारे में बताते हुए तेजी से आगे बढ़ती है.
किताब में बैक स्टोरी का भी जिक्र किया गया है. इस पार्ट में डेविड कोलमैन हेडली की भूमिका के बारे में बताया गया है. इसके अलावा हिस्ट्री ऑफ लश्कर और ताज में बंधक बनाई गई प्रिया की कहानी भी है, जिसे दो दिन बाद कमांडोज ने छुड़ाया था.
विशेषता: संदीप उन्नीथन ने अपनी इस किताब में इमोशनल एलीमेंट्स और बेशकीमती फैक्ट्स का बेहतरीन समायोजन किया है. ऑपरेशन 'ब्लैक टॉरनैडो' 26/11 हमले का वो हिस्सा है, जिस पर अभी तक बहुत ज्यादा बात भी नहीं हुई थी. मीडिया में ज्यादातर रिपोर्ट्स भी हमले के एंगिल से की गई हैं, जो घटना के वक्त जायज भी था, लेकिन कहीं न कहीं ऑपरेशन 'ब्लैक टॉरनैडो' पर उतनी चर्चा नहीं हुई थी, जितनी होनी चाहिए थी. हमले से इतर 26/11 का एक सच यह भी तो है, जिसके बारे में हमारे देश के लोगों को मालूम होना चाहिए कि हमारे कमांडोज कैसे लड़े, किन समस्याओं के साथ लड़े, कहां गड़बड़ हुई और कैसे ज्यादा नुकसान होने से बचाया गया?
'ब्लैक टॉरनैडो' में ताज, ऑबेरॉय और नरीमन हाऊस में चलाए रेसेक्यू ऑपरेशन की पूरी डीटेल के साथ ही कई सवाल भी उठाए गए हैं. इनमें सबसे अहम सवाल जो उभरकर सामने आया, वो है- बार-बार दी गई चेतावनी के बाद भी मुंबई क्यों तैयार नहीं थी? पुलिस के पास बेहतर ट्रेनिंग और आर्म्स क्यों नहीं थे?