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बुक रिव्‍यू: शहरों के स्‍वरूप और सफलता का मॉडल देती है 'सिटीज एंड पब्लिक पॉलिसी'

देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही अपने 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में शहर के विकास की चर्चा की है. बीजेपी ने तो 100 नए शहर बसाने का वादा भी कर दिया है. लेकिन शहरों का विकास कैसे हो? इन्‍हें लेकर जरूरी लोक योजना (पब्लिक पॉलिसी) क्‍या हो? प्रसन्‍न के. मोहंती की किताब 'सिटीज एंड पब्लिक पॅलिसी' इन्‍हीं सवालों के जवाब ढूंढती है.

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सिटीज एंड पब्लिक पॉलिसी का बुक कवर
सिटीज एंड पब्लिक पॉलिसी का बुक कवर

किताब का नाम- सिटीज एंड पब्लिक पॉलिसी
लेखक- प्रसन्‍न के. मोहंती
प्रकाशक- सेज पब्लिकेशन
मूल्‍य- 995 रुपये (हार्ड कॉपी)

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'शहर' शब्‍द सुनते ही जो पहला ख्‍याल आता है वह सुविधाओं का है. फिर चाहे वह यातायात की सुविधा हो. बाजार हो, आवासीय सुविधा हो या फिर कामकाजी जीवन के लिए बेहतर नेटवर्किंग और वन विंडो क्लियरेंस की सुविधा. भारत सरकार हर साल 99 हजार करोड़ रुपये गांवों के विकास पर खर्च करती है, वहीं बेहतर जीवनशैली और रोजी-रोटी के लिए गांवों से पलायन बड़ी संख्‍या में अभी भी जारी है. आंकड़े के मुताबिक देश के शहरों में 50 हजार करोड़ से अधिक झुग्गियां हैं और अगर मौजूदा दर जारी रही तो अगले 10 वर्षों में यह बढ़कर 75 हजार करोड़ हो जाएंगी.

देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही अपने 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में शहर के विकास की चर्चा की है. बीजेपी ने तो 100 नए शहर बसाने का वादा भी कर दिया है. इसके पीछे एक तर्क यह है कि नए शहर बसेंगे तो टीयर-1 शहरों से लोगों की भीड़ कम होगी. यह जरूरी भी है, लेकिन इस बीच दो बड़े सवाल यह हैं कि क्‍या नए शहरों को बसाने के बजाए टीयर-2 और टीयर-3 शहरों को ही विकसित नहीं किया जा सकता? दूसरा यह कि अगर शहर बसाए जाएं या पुराने शहरों को ही विकसित किए जाए तो इन्‍हें लेकर जरूरी लोक योजना (पब्लिक पॉलिसी) क्‍या होगी? दरअसल, प्रसन्‍न के. मोहंती की किताब 'सिटीज एंड पब्लिक पॅलिसी' इन्‍हीं दो सवालों के संदर्भ में अर्थशास्‍त्र के नजरिए और मॉडलों के आधार पर जवाब ढूंढती है.

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मोहंती भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी हैं और वर्तमान में आंध्र प्रदेश सरकार के मुख्‍य सचिव हैं. अर्थशास्‍त्री हैं और अपने अब तक के कार्यकाल में शहरीकरण की योजनाओं को लेकर इनका अनुभव काफी लंबा है. अपनी किताब में मोहंती अर्थशास्‍त्र के उन मॉडलों की चर्चा करते हैं जो एक बेहतर शहरी योजना के लिए 'इंडस्‍ट्रीयल क्‍लस्‍टरिंग' पर जोर देता है. यह किताब इन मायनों में महत्‍वपूर्ण है कि इसमें न सिर्फ शहर के बसने बल्कि उसके अर्थशास्‍त्र से लेकर मौजूद शहरी समस्‍याओं से निजात पाने की भी चर्चा है.

उदाहरण के तौर पर 'ओवर अर्बनाइजेशन', 'टाउनशिप मॉडल', 'अर्बन प्‍लानिंग एंड रिसोर्स', इंस्‍टीट्यूशनल फ्रेमवर्क' और ट्रांसपैरेन्‍सी से लेकर 'सिविक इन्‍वॉल्‍वमेंट' जैसे विषयों पर समस्‍या और साथ ही निजात के लिए जरूरी मॉडल की चर्चा है. मोहंती अपनी किताब में गुजरात और पुणे के टाउनशिप मॉडल की चर्चा करते हैं तो दुनिया में बेहतर शहरीकरण के लंदन, हांगकांग और बोगाटा मॉडल की भी चर्चा है. शहरों में जमीन का निपटारा और बंटवारा कैसे हो इसको लेकर भी कई उदाहरण और आंकड़ों की मदद ली गई है.

किनके लिए है महत्‍वपूर्ण
यह किताब उन पाठकों के लिए महत्‍वपूर्ण है जो प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से शहरीकरण, योजनाओं, अर्थशास्‍त्र आदि से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा अगर आप विभिन्‍न विषयों को पढ़ने का शौक रखते हैं और अर्थशास्‍त्र में आपकी रुचि है तो यह किताब आपके लिए रोचक है.

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