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बुक रिव्यू: एक नाटक देखकर क्यों सुध-बुध खो बैठती है तितली

उपन्यास कर्ण पर केंद्रित है पर कुंती की कहानी कहता है. एक नहीं कई-कई किरदारों के नजरिये से. लेकिन किताब पढ़ने के साथ कई जगह बोझिल लगने लगती है.

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karn book cover
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किताब: कर्ण तुम कहां हो
लेखक : प्रलय भट्टाचार्य
कीमत: 200 रुपये (हार्डकवर)
पेज: 158
प्रकाशक: ज्ञान गंगा, दिल्ली

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बड़ी कंपनी का बड़ा अधिकारी सुमन अपनी बीवी तितली के साथ नाटक देख रहा है. कुंतीभोज के महल  में पृथा एक मंत्र की मदद से सूर्यदेव से गर्भवती होती है. दूसरी ओर ग्रीक कहानियों में इरिथियस की बिन ब्याही बेटी क्रूसा अपोलो के बेटे को जन्म देती है. कहानी बढ़ते-बढ़ते तितली का अपराधबोध बढ़ता जाता है. ऐसा क्या खटका होता है उसे कि नाटक के आखिर तक वह अपनी सुध बोध खो बैठती है.

उपन्यास कर्ण पर केंद्रित है पर कुंती की कहानी कहता है. एक नहीं कई-कई किरदारों के नजरिये से. लेकिन किताब पढ़ने के साथ कई जगह बोझिल लगने लगती है. आप एक ही बात को कई-कई किरदारों की ओर से पढ़ रहे होते हैं.

तितली 14 साल से खुद के भीतर कई मोर्चों पर लड़ रही होती है. एक शाम एक नाटक देख वो फूट पड़ती है. ऐसे कि अपनी आवाज गंवा देती है. उसी समय वहीं-कहीं अयन एक लड़ाई लड़ रहा होता है. अपनी असली मां को खोजने की लड़ाई. अपने पुराने शहर पटना में. सुमन की लड़ाई अपनी बीवी को समझने की है. प्रतीकों और बिम्बों के जरिये प्रलय ने बहुत कुछ कहने की कोशिश की है. पुस्तक जवाब भी देती है. एक मां हमेशा मां रहती है, बीवी बाद में. जवाब कर्ण की ओर से भी देने की कोशिश है और अयन की तरफ से भी. फिर भी कुछ कमी सी लगती है.

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लेखक प्रलय भट्टाचार्य बनारस में जन्मे और वहीं पढ़ाई की. पढ़ाई के दिनों से लिख रहे हैं. बांग्ला और अंग्रेजी में भी लिखते हैं. नाटकों में बतौर अभिनेता भी काम कर चुके हैं. उनकी इस कहानी में भी बनारस का जिक्र आता है, पटना का और कोलकाता का भी. किताब को पढ़ सकते हैं और नहीं भी पढ़ेंगे तो कुछ मिस नहीं करेंगे.

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