किताब: कर्णाज वाइफ: द आउटकास्ट्स क्वीन
लेखिका: कविता काने
प्रकाशन: रूपा पब्लिकेशन
कीमत: 295 रुपये
कवर: पेपरबैक
हम सबने कभी न कभी, किसी न किसी रूप में महाभारत को पढ़ा है और इसके किरदारों को जाना-समझा है. बात भीष्म पितामह की हो या फिर नेत्रहीन राजा धृतराष्ट्र की, कौरवों में सबसे बड़े भाई दुर्योधन की या फिर गांडीवधारी अर्जुन की. इन सभी किरदारों के बारे में आपने विस्तार से पढ़ा होगा. लेकिन क्या आपने उस किरदार के बारे में सोचा है जो इस महाकाव्य के सबसे दिलचस्प किरदारों में से एक है. जी हां, दानवीर कर्ण.
कर्ण एक ऐसा किरदार है जिसने अपने मित्र दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ा. यह जानते हुए भी कि वह गलत पक्ष का साथ दे रहा है, उसने आखिरी समय तक अपनी मित्रता को निभाया. अपने जन्म का सच जानकर भी अपने भाइयों के खिलाफ युद्ध किया. आखिर क्यों?
कर्ण से जुड़े कई सवाल आपके और हम सबके दिमाग में आते होंगे और शायद लेखिका कविता काने के दिमाग में भी आए. इसलिए कर्ण की जिंदगी को आधार बनाते हुए उन्होंने 'कर्णाज वाइफ: द आउटकास्ट्स क्वीन' लिख डाली. कविता ने महाभारत के हर अध्याय में कर्ण के महत्व को बहुत ही सुन्दर ढंग से पेश किया है. उन्होंने कर्ण के भावों को समझाने के लिए एक काल्पनिक किरदार रचा और उसको नाम दिया 'उरुवी'.
पुकेया की राजकुमारी और किताब में कर्ण की दूसरी पत्नी उरुवी के माध्यम से कविता काने ने महाभारत को एक नया आयाम दिया है. उरुवी यूं तो है कविता के दिमाग की उपज, लेकिन जिस अंदाज से उसे कर्ण की ज़िन्दगी में पिरोया गया है, वह महज कल्पना नहीं लगती.
कहानी शुरू होती है उस तीरंदाजी प्रतियोगिता से जिसे भीष्म पितामह ने कौरवों और पांडवों के तीरंदाजी कौशल को दुनिया के सामने पेश करने के लिए आयोजित किया था. जहां कर्ण बिना बुलाए पहुंचे थे और यह दावा किया था कि वह अर्जुन से बेहतर योद्धा हैं और कुंतीपुत्र से तत्काल युद्ध करने को तैयार है. यहीं उरुवी ने कर्ण को पहली बार देखा था. उसके चेहरे का दिव्य तेज, उसकी आंखों की चमक, उसका शक्तिशाली शरीर, उसके सुनहरे कवच और कुंडल, इन सबने उरुवी को पहली नज़र में ही बांध लिया. उरुवी कर्ण से प्रेम करने लगी. यह जानते हुए भी कि कर्ण एक सूतपुत्र है, उरुवी ने फैसला किया कि वह अपने स्वयंवर में फूलों का हार कर्ण के गले में ही डालेगी. कर्ण के साथ-साथ उरुवी ने उसके जीवन के संघर्ष को भी अपना लिया.
उरुवी ने न सिर्फ कर्ण बल्कि उसके माता-पिता, भाई और पहली पत्नी वृषाली को भी अपनाया. कर्ण भी उरुवी के बिना अधूरा था. उरुवी के सामने वह एक खुली किताब था और उसे अपनी ताकत समझता था. दोनों ही एक साथ अपनी दुनिया में बेहद खुश थे मगर एक डर और चिंता उरुवी को अंदर ही अंदर खाती थी और वह थी उसके पति की दुर्योधन से अटूट मित्रता. उरुवी को यह डर था कि कर्ण की दुर्योधन से मित्रता, कहीं उसे अपने पति से हमेशा के लिए दूर ना कर दे. वह जानती थी कि कर्ण की सलामती पांडवों के खिलाफ नहीं बल्कि उनके साथ खड़े होकर ही है.
महाभारत की हर एक महत्वपूर्ण घटना को कविता ने कर्ण के नजरिए से बहुत ही गहराई से दिखाया है. अमुक समय कर्ण के अंतर्मन में क्या चल रहा था, क्या थे उसके विचार, उसकी भावनाएं, यह सब गहराई से जानने के लिए आपको यह किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए. यह किताब आपको खुद से जोड़ लेगी, या यूं कहें कि कर्ण से जोड़ देगी. जितनी खूबसूरती से कर्ण की भावनाओं को लिखा गया है, आप भी इस दानवीर से प्रेम करने को मजबूर हो जायेंगे. और रही बात उरुवी की, तो कविता काने की दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने बिना तोड़े-मरोड़े एक काल्पनिक किरदार के जरिये एक वास्तविक महाकथा का जिस सुन्दरता से वर्णन किया है वह कोई आम बात नहीं है.
कर्ण की ज़िन्दगी से जुड़े आपके हर सवाल का जवाब इस किताब में रखने की कोशिश की गई है. सबको लगता था कि धर्म को मानने वाला कर्ण, दुर्योधन की मित्रता स्वीकार करके खुद अधर्म की राह पर चल पड़ा. लेकिन यह किताब एक बार फिर यही बात स्थापित करने की कोशिश करती है कि कर्ण के लिए दोस्ती ही सबसे बड़ा धर्म थी और इसी मित्रता के लिए उसने हंसते हंसते अपनी जान दे दी.