किताबः मनोज और बबली
लेखिकाः चंदर सुता डोगरा
अनुवादः मधु बी. जोशी
प्रकाशकः मंजुल पब्लिशिंग हाउस
कीमतः 225 रुपये(पेपरबैक)
ये हमारे समय का सबसे भयावह सच है, जब प्रेम करने वाले जोड़ों को इज्जत और गोत्र के नाम पर पितृसत्तात्मक शक्तियां मौत के घाट उतार देती है. पितृसत्तात्मक समाज के बनाए
नियमों और कानूनों के ऊपर जाने वाले जोड़ों में से एक मनोज और बबली की कहानी भी उन्हीं में से एक है. जिसे लिखा है चंदर सुता डोगरा ने और प्रकाशित किया है मंजुल पब्लिशिंग
हाउस ने.
यह किताब हरियाणा की बलशाली खापों के नियमों के खिलाफ जाकर प्रेम करने वाले मनोज और बबली की हत्या और उसके बाद की घटनाओं की सच्ची कहानी है. गहन शोध के बाद लिखी गई कहानी में चंदर सुता डोगरा ने इस जोड़ी द्वारा एक ही गोत्र में विवाह के निषेध का नियम तोड़कर भाग निकलने से लेकर लड़की के परिवार द्वारा उन्हें धर दबोच कर उनसे पाशविक क्रूरता करने और उनके शवों को नहर में फेंक देने तक की घटनाओं की पुर्नरचना की है. हालांकि इस किताब को मनोज और बबली की कहानी तक सीमित करके देखना सही नहीं होगा. किताब अपने आप में एक बहुत महत्वपूर्ण मायने लिए हुए है और उसका असर व्यापक है. यह बताती है कि एक महिला जब न्याय मांगने निकलती है, तो कैसे पूरी व्यवस्था उसके आड़े आती है.
यह किताब महिलाओं को दबाकर रखने वाली बलशाली खापों के खिलाफ दो आम औरतों के संघर्ष को भी पाठक के सामने रखती है. हरियाणा के पितृसत्तात्मक समाज में दोयम दर्जे का जीवन जीने वाली औरतों की हालत किसी से छुपी नहीं है. ऐसे में चंद्रपति और सीमा का संघर्ष प्रेरित करता है. हरियाणा, यूपी, राजस्थान की खापों के खिलाफ ना झुकने वाली दो औरतों ने पुलिस, प्रशासन और सामाजिक बहिष्कार का डटकर सामना किया और अंत में जीत हासिल की.
चंदर सुता डोगरा पेशे से पत्रकार रही है और किताब लिखने में उन्होंने अपने अनुभव का पूरा इस्तेमाल किया है. हालांकि मनोज और बबली उनकी अंग्रेजी किताब का हिंदी संस्करण है. मधु. बी. जोशी ने शानदार अनुवाद किया है, भाषा और शैली कसी हुई है. गहन शोध के चलते खाप के इतिहास और हरियाणा की सामाजिक और राजनीतिक ताने बाने को भी उन्होंने भरपूर उकेरा. इससे विषय के बारे में पाठक को समझ बनाने में मदद मिलती है.
किताब बताती है कि आरोपियों को सजा दिलाने के लिए मनोज की मां और बहन ने कैसे मीडिया और स्त्री आंदोलनकारियों की सहायता से डराए-धमकाए जाने, सामाजिक बहिष्कार और हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत की जाट खापों के आक्रोश का मुकाबला किया. किताब की कहानी तो 258 पृष्ठों में खत्म हो जाती है, लेकिन चंद्रपति और सीमा का संघर्ष अब भी जारी है.
सिहरन पैदा करने वाली और आखिर तक पढ़े जाने की चाह जगाने वाली यह किताब, कानून के मुताबिक जीने वालों और पुराने कायदों की हिमायत में टकराने वालों के मुकाबले का खुलासा करती है.