किताब: मैरी मी स्ट्रेंजर (नॉवेल)
भाषा: अंग्रेजी
लेखक: नवनील चक्रवर्ती
प्रकाशक: रैंडम हाउस इंडिया
कीमत: 105 रुपये
'मैरी मी, स्ट्रेंजर' रोमांस की कोई सामान्य कहानी नहीं है. हो सकता है कि एकबारगी इसके नाम से ऐसा लगे, लेकिन कवर पेज पर कांटेदार तारों से बनी रिंग कई सवाल जेहन में छोड़ जाती है. यह एक लड़की का पीछा करने वाले उस अजनबी के बारे में है, जिसकी कोई आवाज, कोई चेहरा, नाम या पहचान नहीं थी. लेकिन एक मकसद जरूर था.
कोलकाता की एक लड़की है, रिवाना बनर्जी. वह काम के सिलसिले में मुंबई चली आती है. पराए शहर में भी जिंदगी उसकी ठीक-ठाक ही चल रही थी, लेकिन फिर एंट्री लेता है पीछा करने वाला एक अजनबी. हालांकि एक आश्चर्य यह भी कि शुरू में इस बात से वह जरा भी हैरान-परेशान नहीं होती. या शायद मौजूदा दौर में इतना भी आश्चर्यजनक नहीं, जहां पीछा करने वालों की भरमार है और लोग वर्चुअल दुनिया के लोगों पर भी यकीन कर बैठते हैं.
खैर, कहानी का मुख्य किरदार लगने वाला यह 'अजनबी' खतरनाक तो बिल्कुल नहीं था, क्योंकि उसने रिवाना की कई बार मदद की. 'हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है', रिवाना को यह चेताते और कई बार धमकाते हुए वह पाठकों को भी सावधान कर देता है. रिवाना उसके बारे में कुछ नहीं जानती और उसकी होने और पीछा करने के तरीकों को राज बनाकर रखती है. लेकिन फिर एक दिन धमकी के बाद वह इस बारे में कुछ करने का फैसला लेती है.
किताब बेहद आसान अंग्रेजी में लिखी गई है. हालांकि शुरुआत में कुछ गैरजरूरी ब्यौरे भी हैं, जैसे उस कैब सर्विस का नाम जिसका इस्तेमाल रिवाना करती है या किसी लोकल रेस्त्रां का नाम. इन नामों का कहानी के प्लॉट से कोई रिश्ता नहीं है और संप्रेषण के स्तर पर यह रुकावट ही पैदा करते हैं. हालांकि जब कहानी तमाम दिलचस्प पहलुओं को समेटते हुए आगे बढ़ती है तो आप इसे पढ़ते चले जाते हैं.
अलग-अलग व्यक्तित्व वाले किरदारों के ब्यौरे भी विस्तार से दिए गए हैं. उदाहरण के तौर पर रिवाना एक मजबूत, आत्मनिर्भर, विचारशील और अपनी जिंदगी में बेहद संतुलित लड़की नजर आती है. लेकिन मुंबई में कुछ समय से रह रही अपनी दोस्त इशिता के सामने वह पूर्वाग्रहों वाली एक छोटे शहर की दब्बू लड़की की तरह लगती है. दिल के दुखने और विरह से उबरने के दौरान वह अपनी शख्सियत के नए पहलू से रूबरू होती है. सब कुछ, उस अजनबी शख्स की मदद से.
किताब में प्यार, विश्वास, जुदाई, खुशी, संतोष, दुख और डर जैसे ढेर सारी भावनाएं आती और घुलती-मिलती रहती हैं. बड़े शहर में रहने वाली एक कुंवारी लड़की निश्चित तौर पर इन भावनाओं से खुद को जोड़ पाती है. अजनबी उसे जिंदगी के कई जरूरी सबक देता है और रिवाना के साथ आप भी इस बारे में सोचने लगते हैं.
एक जगह वह रिवाना से कहता है, 'अगर तुम्हारा दिल बहुत बुरी तरह नहीं दुखा है, तो तुम सीख नहीं सकतीं. तुम ग्रो नहीं कर सकतीं. अगर ग्रो नहीं कर सकतीं तो जी नहीं सकतीं. अगर जी नहीं सकतीं तो तुम्हें अपनी कीमत नहीं पता लगेगी.'
लेकिन यह अजनबी है कौन? वह रिवाना की मदद क्यों कर रहा है? क्या वह कोई लड़का है? क्या रिवाना को रात में आने वाले सपनों का अजनबी से कोई रिश्ता है? इन सवालों से नवनील कुशलता और चालाकी से डील करते हैं. अजनबी का राज जानने के लिए हमें इस सीरीज की आगामी दो किताबों का इंतजार करना पड़ेगा. किताब किसी बौद्धिक पाठन का हिस्सा नहीं है, न ही भाषा के लिहाज से कोई 'मास्टरपीस' है. लेकिन यह नए दौर की एक हल्की, मनोरंजक और एक्साइटिंग कहानी का चालाक बयान जरूर है. पढ़ सकते हैं.