किताब: मेरा रैकेट मेरी दुनिया
लेखिका: सायना नेहवाल
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
कीमत: 200 रुपये (सजिल्द)
बैडमिंटन के रैकेट के जरिए पूरी दुनिया को अपनी प्रतिभा से अचंभित कर देने वाली भारतीय खिलाड़ी सायना नेहवाल के बारे में पहले भी काफी-कुछ लिखा जा चुका है. पर उनकी जिंदगी के अब तक के सफर से जुड़ी तमाम बातों और अहम सवालों के जवाब समेटती हुई किताब ‘मेरा रैकेट मेरी दुनिया’ अपने-आप में अनूठी है. चूंकि किताब सायना की आत्मकथा है, इसलिए इसमें दी गई जानकारियों की प्रामाणिकता अलग से साबित से करने की जरूरत नहीं रह जाती है.
किताब में सायना नेहवाल ने विस्तार से बताया है कि किस तरह बैडमिंटन उनकी जिंदगी से जुड़ा और उनके परिवार ने उन्हें बैडमिंटन चैंपियन बनाने के लिए किस-किस तरह के त्याग किए. किताब बताती है कि एक कामयाब खिलाड़ी बनने के पीछे लगातार प्रयास, अथक परिश्रम व बेहतर रणनीति की भूमिका होती है, यह महज इत्तेफाक का नतीजा नहीं होता. जीवटता के बिना सफलता किसी के गले नहीं लगती.
सायना लिखती हैं, ''दर्द के मारे मैं रात को उठकर रोने लगती थी...मेरी आंखों के नीचे की चमड़ी काली हो गई थी, लेकिन किसी भी हाल में खेल को छोड़ने का ख्याल नहीं आया. मुझे कोर्ट में रहना, खेलना और जीतना पसंद था.''
सायना ने बड़ी साफगोई से खेल-जीवन के उन पहलुओं को भी सबके सामने रखा है, जो कमोबेश हर खिलाड़ी की हकीकत है, पर जिसे कबूल करते हुए किसी को भी काफी झिझक महसूस हो. इन पंक्तियों को देखिए:
''कोर्ट में जाने से पहले मुझे बहुत ज्यादा तनाव होता है. मेरा दिल जोर से धड़कने लगता है और मेरे हाथ थरथराने लगते हैं. यही वह पल है, जिससे मुझे सदा के लिए प्यार है...हमेशा की तरह ‘सायना नेहवाल फ्रॉम इंडिया’ पुकारा जाता है. इतने सालों के बाद भी इसे सुनते-सुनते मैं थकी नहीं हूं.''
क्यों पढ़ें यह किताब?
यह किताब पाठकों के सामने केवल सायना नेहवाल की जिंदगी के पन्नों को ही खोलकर नहीं रखती है, बल्कि हर किसी को अपने-अपने क्षेत्र में कामयाब बनने के गुर भी सिखाती है. किताब जीवन के इसी फलसफे को एकदम जीवंत तरीके से साबित करती है कि एक बार ठान लेने के बाद हर मुश्किल किस तरह आसान हो जाती है. इसे सिर्फ किसी चैंपियन का संस्मरण मात्र समझना बड़ी भूल होगी. दंपतियों के सामने एक बड़ा सवाल अक्सर उठता है कि अपनी संतान को डॉक्टर-इंजीनियर, मैनेजमेंट एक्सपर्ट बनाएं या फिर बेहतरीन खिलाड़ी? यह किताब इस यक्ष प्रश्न का जवाब ढूंढने में भी मददगार साबित होती है.
इसे क्यों न पढ़ें?
अगर आप अखबारों में किसी खिलाड़ी की कामयाबी या नाकामी की हेडिंग पढ़कर ही पन्ने पलट देने के शौकीन रहे हों, तो भी यह किताब आपको जरूर पढ़नी चाहिए. अगर खेल या खिलाडि़यों में आपकी दिलचस्पी बिलकुल ही न हो, तो बात अलग है.
किताब का हिंदी अनुवाद एकदम सरल शब्दों में किया गया है. खेल से जुड़ी सामान्य जानकारी के अलावा घटनाओं का तारतम्य एकदम संतुलित है. कुल मिलाकर किताब पठनीय है.