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बुक रिव्यू: धोनी, क्रिकेटर से भी बड़ा एक इंसान

दुनिया के सफलतम क्रिकेट कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी के बारे में यह ऐसी किताब है जो उनके व्यक्तित्व, उनके स्वभाव और उन सबसे बढ़कर उनकी अद्भुत उपलब्धियों का वर्णन करती है.

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MSD the man, the leader
MSD the man, the leader

किताब: MSD द मैन, द लीडर
लेखक: विश्वदीप घोष
प्रकाशक: रूपा पब्लिकेशंस
कीमत: 195 रुपये

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दुनिया के सफलतम क्रिकेट कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी के बारे में यह ऐसी किताब है जो उनके व्यक्तित्व, उनके स्वभाव और उन सबसे बढ़कर उनकी अद्भुत उपलब्धियों का वर्णन करती है. धोनी को एक खिलाड़ी, एक सफल कप्तान और एक बेहतरीन इंसान के रूप में चित्रित करती हुई यह रचना उनकी जिंदगी के कई पहलुओं को उजागर करती है. धोनी आज भी अपनी जमीन से जुड़े हुए हैं और अपनों के बीच जाकर उन जैसे हो जाते हैं. इस किताब में लेखक ने ऐसे कई उदाहरण पेश किए हैं. उन्होंने उनकी जिंदगी के अनछुए पहलुओं को सामने रखने की कोशिश की है जो शायद धोनी के शहर रांची के लोग तो जानते होंगे लेकिन अन्य नहीं.

इस किताब में लेखक ने धोनी के एक क्रिकेटर के रूप में उपलब्धियों के अलावा उनके बचपन और युवा अवस्था के बारे में काफी कुछ बताया. कैसे धोनी ने स्कूल में क्रिकेट खेलना शुरू किया और कैसे यह खेल उनकी रग-रग में दौड़ने लगा. कैसे नौकरी करते हुए भी उन्होंने क्रिकेट के लिए अपना समय समर्पित किया. यानी लेखक ने उनकी शुरूआती जिंदगी के बारे में बहुत कुछ लिखा है जो लोगों को पसंद आएगा. धोनी के क्रिकेट जीवन का पूरा सफर इस किताब में है. उनके कप्तान बनने के बाद के सारे महत्वपूर्ण घटनाओं और मैचों का निचोड़ भी इसमें है.

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लेखक ने बताया है कि धोनी के स्वभाव में डरने जैसा कुछ भी नहीं है. वह निर्भीक और साहसी खिलाड़ी हैं. वह तेज गेंदों या बाउंसरों से डरते नहीं और यह उन्हें द्रविड़ की कप्तानी में पाकिस्तान के खिलाफ खेलते हुए दिखाया. उन्होंने उसके तेज गेंदबाजों के छक्के छुड़ा दिए. 2006 में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच खेलते हुए उनके सबसे तेज गेंदबाज शोएब अख्तर की गेंदों की जो पिटाई की उसे भला कौन भुला सकता है. उस मैच में उन्होंने सिर्फ 93 गेंदों में शतक जड़ा था. लेखक ने धोनी के करियर के उस ऐतिहासिक मैच का सटीक वर्णन किया है.

लेकिन जो बात इस किताब को अन्य से अलग करती है वह है धोनी के सरल स्वभाव का सही चित्रण. वह बिल्कुल शांत स्वाभाव के हैं और खुशी तथा गम दोनों को बहुत शांति से लेते हैं. वह न तो उत्तेजित होते हैं और न ही निराश. उन्हें तालियों से भी फर्क नहीं पड़ता और न ही गालियों से. इसलिए ही उन्हें मिस्टर कूल कहा जाता है.

लेखक ने कई उदाहरण देकर बताया है कि अपनी जिंदगी में इतना कुछ पाने के बाद भी धोनी में जरा भी अहंकार नहीं है. वह जूनियर खिलाड़ियों से भी वैसा ही सलूक करते हैं जैसा अन्य के साथ, अपने खिलाड़ियों पर उनका जबरदस्त विश्वास रहता है. आज भी उन्होंने अपने पुराने दोस्तों और परिचितों को भुलाया नहीं, रांची की सड़कों से उन्हें प्यार है और उनका परिवार उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है, इन सबका इसमें जिक्र है और इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है.

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इस किताब में लेखक ने क्रिकेट से जुड़ी तमाम शख्सियतों की धोनी के बारे में राय को भी जगह दी है. आलोचक और पूर्व क्रिकेटर उनके बारे में क्या सोचते हैं, यह सब इसमें है. वर्ल्ड कप के परिप्रेक्ष्य में यह एक बढ़िया पठन सामग्री है और उन्हें भी पसंद आएगी जो क्रिकेट में बहुत दिलचस्पी नहीं रखते.

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