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आपके व्यक्तित्व का विकास करती है '24 दिन 24 बातें'

आत्मविश्वास कोई ऐसी चीज नहीं जिसे बाहर से किसी के शरीर में डाला जा सकता है. जीवन के हर बीतते पल के साथ या तो आप अपने आत्मविश्वास को कमजोर कर रहे हैं या उसे मजबूत कर रहे हैं.

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किताब का कवर
किताब का कवर

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किताब का नाम– 24 दिन 24 बातें
लेखक– डॉ. प्रवीण तिवारी
प्रकाशक– महावीर पब्लिशर्स
मूल्य– 150 रुपये

लेखक और टीवी पत्रकार प्रवीण तिवारी की यह दूसरी पुस्तक है. अपनी पहली पुस्तक 'सत्य की खोज' की अगली कड़ी में उन्होंने युवाओं को ध्यान में रखते हुए व्यक्तित्व विकास के लिए 24 अभ्यासों पर रोशनी डाली है. पुस्तक कहती है कि हर सफलता के साथ आत्मविश्वास बढ़ता जाता है, लेकिन ये भी सच है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जिनमें आत्मविश्वास होता है.

आत्मविश्वास कोई ऐसी चीज नहीं जिसे बाहर से किसी के शरीर में डाला जा सकता है. जीवन के हर बीतते पल के साथ या तो आप अपने आत्मविश्वास को कमजोर कर रहे हैं या उसे मजबूत कर रहे हैं. कोई और कैसे आपसे प्रभावित हो सकता है जब तक आप स्वयं अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व को नहीं देखते हैं. अपने व्यक्तित्व को स्वयं जानना आत्मविश्वास को मजबूत करने की पहली सीढ़ी है.

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क्योंकि कोई शॉर्टकर्ट नहीं होता
आत्मविश्वास का कोई शॉर्टकर्ट नहीं है. आप ने अच्छी तैयारी की है, रियाज किया है तो आप में आत्मविश्वास खुद ब खुद आ जाएगा. स्वीमिंग पूल में जाएंगे तो आप देखेंगे कि नौसिखिए या नए-नए स्वीमिंग सीखने वालों में कितना डर होता है, जबकि कई अनुभवी तैराक ऐसे होते हैं जो आते हैं और छपाक से छलांग लगा देते हैं. वे तैरने की नई नई तकनीकों को भी सीखते हैं. उनके आत्मविश्वास के मूल में भी अभ्यास ही होता है. उनकी शुरुआत भी डरते डरते ही होती है, लेकिन एक बार जब आप अभ्यस्त हो जाते हैं तो आत्मविश्वास में निरतंर वृद्धि होती जाती है.

जिंदगी भी किसी समंदर से कम नहीं, जिसमें छपाक से छलांग लगा देने की ताकत दिखती है वो आत्मविश्वास से लबरेज नजर आता है. यहां भी सीखना ही सबसे महत्वपूर्ण होता है. किसी भी विधा को सीखने की तरह हार, जीत, उतार, चढ़ाव इन सारी बातों को जीवन जीने की कला का हिस्सा मानकर चलने वाले जीवन की तैराकी भी सीख लेते हैं. अभ्यास का अभ्यास ही आत्मबल को बढ़ाने का एकमात्र तरीका है. सीखने की आदत आत्मबल को बढ़ाती है. आप अपने जीवन पर गौर करिए और देखिए आपने आज तक क्या क्या सीखा है? आप पाएंगे कि जिन विधाओं को आपने सीखा है उनमें आत्मविश्वास अधिक होता है. यदि आप जानते हैं कि सीखने में कुछ समय लगता है और हर कला को सीखने के शुरुआती दिनों में कुछ गलतियां स्वभाविक रूप से होती हैं, तो आप किसी भी विधा में पारंगत हो सकते हैं. इसमें धैर्य और इच्छाशक्ति के गुण महत्वपूर्ण हैं.

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परेशान न हों, सभी नौसिखिए रहे हैं
अच्छा व्यक्तित्व चाहते हैं तो अभ्यस्त तैराकों को देखकर परेशान न हों. वे भी कभी नौसिखिए रहे होंगे और आप ही की तरह उन्होंने भी संघर्ष किया होगा. परेशानी तब होती है जब हम स्वयं को नौसिखिया दिखाने में शर्म महसूस करने लगते हैं. जहां आपने स्वयं को सीखा हुआ मान लिया, वहीं आपका विकास बाधित हो जाता है. आप कितना आगे जा सकते हैं ये इस बात से तय होता है कि आप कितना अभ्यास करते हैं. सीखने की निरंतरता ही आपके आत्मविश्वास की वृद्धि की निरंतरता है.

आप अपने कार्यक्षेत्र से इतर भी कई कलाओं और विधाओं का प्रशिक्षण ले सकते हैं. तमाम शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि जो ज्यादा से ज्यादा विधाओं को सीखने में दिलचस्पी रखते हैं उनका आत्मविश्वास अपेक्षाकृत बढ़ा हुआ होता है. आप अपने व्यक्तित्व को निखारने के प्रयासों का सतत अभ्यास करते रहिए और आप पाएंगे कि आप अपने सामान्य जीवन और व्यवसायिक जीवन दोनों में उस आत्मविश्वास को दिखाने में कामयाब होते हैं. लोगों के बीच रहना, विभिन्न परिस्थितियों का सामना करना भी एक अभ्यास ही है. कई ऐसे लोग देखने को मिलते हैं जो आमतौर पर बहिर्मुखी होते हैं, लेकिन सार्वजनिक मंचों पर या विशेष परिस्थितियों में उनकी घिग्घी बंध जाती है. फिर कई लोग ऐसे भी होते हैं जो पहली बार में ही अपने प्रदर्शन से लोगों को अचंभित कर जाते हैं.

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अभ्यास ही एकमात्र रास्ता है
आत्मविश्वास किसी टॉनिक को पीने से नहीं मिलता, इसके लिए सतत अभ्यास ही एक मात्र रास्ता है. सार्वजनिक मंचों पर बोलने का, लिखने का या अपने आप को व्यक्त करने का कोई मौका नहीं चूकना चाहिए. लेकिन ये भी ध्यान रखें कि आप अगर बिना तैयारी के ऐसा करते हैं तो असफलता ही हाथ लगेगी. असफलता की टीस आपको आगे भी ऐसे प्रदर्शनों से डराने लगती है. एक बार इस तरह का डर घर कर जाए तो फिर आप का आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है.

आत्मविश्वास की कमजोरी एक रोग है. इसे अपने दिमाग में जरा भी स्थान न दें. आत्मविश्वास मजबूत करने से ज्यादा जरूरी है उसे कमजोर करने वाली बातों के प्रति सतर्क रहना. खूबियों के बजाय कमियों पर ध्यान देना आत्मविश्वास को कमजोर करता है. जो है की बजाय जो नहीं है कि चिंता भी समय और आत्मविश्वास दोनों को कमजोर करती है. असफलता का भय और लोग क्या सोचेंगे का भय आत्मविश्वास को कमजोर करते हैं. जब व्यक्तित्व निर्माण को आप एक अभ्यास की तरह लेते हैं तो आप इन बातों को ज्यादा बेहतर तरीके से महसूस कर पाते हैं. विचारों के कोलाहल के बीच ठीक से देखना, सुनना और अन्य अभ्यासों पर ये पुस्तक सहज और सरल भाषा में प्रकाश डालती है.

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