किताब का नाम- ए राइटर्स पीपुल
लेखक- वीएस नायपॉल
भाषा- हिंदी
अनुवादक- नरेश 'नदीम'
प्रकाशक- पेंगुइन बुक्स
कीमत- 250 रुपये
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखक वीएस नायपॉल का जन्म त्रिनिदाद में हुआ. ऑक्सफोर्ड में चार साल बिताने के बाद उन्होंने लिखना शुरू किया और फिर कोई दूसरा व्यवसाय नहीं अपनाया. कहानी और इससे जुड़ी विधाओं में वह 25 से अधिक किताबें लिख चुके हैं और कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं.
यह परिचय इसलिए कि आम तौर पर पढ़ने के शौकीन वर्ग का एक बड़ा हिस्सा बुक स्टॉल पर लेखक का परिचय जानने के बाद ही किताब को पढ़ने की इच्छा जताता है. हालांकि भारतीय मूल के नायपॉल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन यह परिचय और परिचय में यह लिखना कि लेखक ने लेखन के अलावा कोई और व्यवसाय नहीं चुना, जरूरी है.
'ए राइटर्स पीपुल' जैसा कि नाम से स्प्ष्ट है कि यह किताब उन लोगों के बारे में है, जिससे लेखक का संबंध रहा है, जिनसे उनके लेखन का संबंध रहा है या फिर यह कि वह जिन्होंने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया. किताब के शुरुआती पन्नों में इसे 'पांच हिस्सों में एक निबंध' कहा गया है. लेकिन एक पाठक के तौर पर मुझे यह एक यात्रा का वृतांत नजर आता है. यात्रा जीवन की और यात्रा लेखन की, एक लेखक की.
वीएस नायपॉल ने इस किताब में अपनी लेखन यात्रा को समेटने का काम किया है. यह एक कहानी है, उस 10 साल के बच्चे की जो लेखक बनना चाहता है, लिखना चाहता है. इसकी शुरुआत वह अपनी डायरी से करता है और फिर रमा रहता है इस सोच में इसमें क्या लिखे, क्या नहीं लिखे. यह किताब एक लेखक के रूप में नायपॉल की सोच है. वह कहते हैं, 'मैं अपनी पूरी जिंदगी देखने के तरीकों के बारे में सोचता रहा हूं और यह कि ये दुनिया की रूपरेखा को किस तरह बदल देते हैं.'
कौन हैं 'लेखक के लोग'
किताब के नाम के अनुरूप ही इसमें कई लोगों की चर्चा है, जिसे नायपॉल 'लेखक के लोग' बताते हैं. इसमें चर्चा कवि डेरेक वाल्कट से लेकर गुस्ताव फ्लाबेयर, एंथनी पावेल और सबसे ऊपर उनके पिता की भी है. ये वो लोग हैं, जिनकी लेखनी ने नायपॉल को प्रभावित किया और उनके लिखने की महत्वाकांक्षा और जिद को पक्का बनाया. नायपॉल लिखते हैं कि इस किताब के जरिए वह इन लेखकों की साहित्यिक आलोचना नहीं करना चाहते. उनका मकसद उन रचनाओं और रचनाकारों की चर्चा से है, जिनसे जीवन में उनका परिचय हुआ. इसका आशय देखने और महसूस करने के तरीके से है.' हालांकि नायपॉल आगे यह भी स्पष्ट करते हैं कि उनके लिए उनके पिता की कहानियां किसी भी दूसरे लेखक के मुकाबले अधिक महत्वपूर्ण थीं.
सितारों पर भरोसा
एक लेखक के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए नायपॉल ने कई उद्यम किए. किताब में उन्होंने लिखा है कि वह घंटों टेबल पर बैठे रहे और खुद को एक लेखक मानकर लिखते रहे, पन्ने भरते रहे. इस दौरान वह क्या कर रहे थे और किधर जा रहे थे, इसका उन्हें खयाल न था. नायपॉल लिखते हैं, 'मुझे मेरे सितारों पर भरोसा था. इतना भरोसा कि मेरी भारी महत्वाकांक्षा मुझमें एक प्रतिभा पैदा करेगी. यह पूरा वक्त एक अंधेरा दौर था, मैं लिखता रहा. दिल की गहराइयों में मुझे विश्वास था कि मैं खुद को धोखा नहीं दे रहा हूं.'
कुछ अलग लिखने की चाह
यह किताब एक लेखक के रूप में नायपॉल से साक्षात्कार भी है. इसमें सवाल उनके पसंद के हैं और वे बड़े स्वभाविक अंदाज में अपने मन की गहराइयों से अपने जीवन का राज खोलते हैं. नायपॉल लिखते हैं कि बतौर लेखक वह खुद को स्थापित तो करना चाहते थे, लेकिन कुछ अलग लिखना चाहते थे. इस अलग लेखन का अर्थ अब तक ढर्रे के लेखन से अलग था. किसी किताब, कहानी को लिखने के लिए जिन फॉर्मूलों को जरूरी बताया जाता है, उसे तोड़कर कुछ नया. और लगातार लिखने के इसी क्रम में उन्होंने महसूस किया कि अपने आसपास के चीजों को देखना, अवलोकन करना और उसे पन्ने पर उकेरना सबसे बेहतरीन है.
कुल मिलकार 'ए राइटर्स पीपुल' नायपॉल के रचनात्मक और बौद्धिक सामंजस्य की प्रकिया और इस ओर एक सफर है. इसमें त्रिनिदाद है, नानी की कहानियां हैं, घर के आगे की सड़क है, सड़क पर लोग हैं, कई लेखक हैं, उनका लेखन है, विचार है, देखने का तरीका है, सभ्यता है, भारत के साथ रिश्ता है, भारत है, नायपॉल के पिता हैं, उनके लेखक मित्र हैं, अलग-अलग सभ्यताए हैं, कई नस्लें हैं, गांधी और नेहरू का लेखन है और सबकुछ जिसने बतौर लेखक वीएस नायपॉल के लेखन और उनके जीवन को आकार दिया. यही 'लेखक के लोग' हैं.
अनुवाद और अनुवादक के बारे में
यूपी के देवरिया में जन्मे नरेश 'नदीम' ने देवरिया, गोरखपुर, अलीगढ़ और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. कई रचनाओं का संपादन करने के साथ ही उन्हें अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी की डेढ़ सौ पुस्तकों का अनुवाद किया है. उनका लंबा अनुभव 'ए राइटर्स पीपुल' के अनुवाद में भी नजर आता है. अनुवाद की भाषा सरल है. क्लिष्ट शब्दों से बचकर बोलचाल और आसान शब्दों का चयन किया गया है. ऐसे में एक आम हिंदी भाषी के लिए किताब को समझना आसान हो जाता है.