किताब: बस इतनी सी थी ये कहानी, इश्क की कहानियां
लेखक: नीलेश मिसरा
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
पेज: 222
संस्करण: पेपरबैक
कीमत: 250 रुपये
नीलेश मिसरा के नए कहानी संग्रह, ‘बस, इतनी सी थी ये कहानी....इश्क की कहानियां’ की समीक्षा करना अपने साथ कई जिम्मेदारियां लेकर आता है. ऐसा इसलिए कि नीलेश मिसरा की पहचान एक गंभीर पत्रकार, लेखक, गीतकार और किस्सागो की है. ऐसे में मन में ये डर बना रहता है कि आप उनकी इन स्थापित छवि से प्रभावित न हों और दूसरा किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कुछ गलत न लिख दें.
दो सौ बीस पन्नों की इस किताब में कुल जमा 14 कहानियां हैं. इन कहानियों को नीलेश की रेडियो टीम के प्रसिद्ध लेखकों आजम कादरी, अकबर कादरी, कंचन पंत, दुर्गेश सिंह, आयुष तिवारी और खुद नीलेश ने लिखा है. किताब के नाम के अनुरूप सभी कहानियां प्रेम कहानियां हैं, जो उनके रेडियो शो 'यादों का इडियट बॉक्स' में सुनाई गई थीं. किताब की पहली कहानी 'फिर मिलेंगे' है. यह कहानी नीलेश ने लिखी है और जब आप उस कहानी के शब्दों में चढ़ते-उतरते हैं तो एक हल्का सा नशा चढ़ता है, प्यार की खुमारी का..यादों का, बीती जिंदगी का और रुमानियत के उन पलों जो तकरीबन हम सभी के अतीत का हिस्सा रह चुके हैं. ये कहानी एक तलाकशुदा जोड़े के दोबारा मिलने और एक होने की कहानी है. 'बड़े शहर में रहने पर पेट के अलावा, भावनाओं पर भी चर्बी चढ़ जाती है. एक रिश्ता टूटने से जिंदगी कहां टूटती है.' कहानी में नीलेश कुछ ऐसी ही बेहतरीन पंक्तियों की मदद से जिंदगी की सच्चाइयां भी कह जाते हैं. कहानी के अंत में बड़े नाटकीय अंदाज में दो बिछड़े पति-पत्नी फिर से एक हो जाते हैं.
अगली कहानी ‘तू कुजा, मन कुजा’ आजम कादरी की है. आजम ने कहानी में उर्दू भाषा का बेहतरीन इस्तेमाल किया है. कहानी के डायलॉग्स में भावनाएं बहुत अच्छे से समायी हुई हैं. एक जगह कहानी का नायक नायिका से कहता है कि असली कैदखाना वो नहीं होता जहां इंसान कैद होते हैं बल्कि वो होता है जहां हमारी रूह कैद होती है. इस कहानी में भी सालों बाद बिछड़े नायक-नायिका आखिर में मिल जाते हैं. एक के बाद एक पूरी नौ कहानियों का अंत लगभग एक सा है. जो प्रिडिक्टबल बन जाता है और यही इस किताब की सबसे बड़ी खामी है. किताब की दसवीं कहानी का अंत अलहदा है. हालांकि किताब की भूमिका में ही ये बता दिया गया था कि ये कहानी संग्रह नीलेश के रेडियो कार्यक्रम 'यादों का इडियट बॉक्स' में शामिल किए गए कहानियों का संकलन है. अच्छा होता अगर ये कहानियां उसी कार्यक्रम का हिस्सा भर रहतीं क्योंकि किताब और रेडियो में फर्क होता है.
अगर आप के मन-मस्तिष्क को एक ही स्वाद का खाना दिया जाए तो आप निस्संदेह दिमागी डायबिटीज के शिकार हो जाएंगे. ये किताब बदकिस्मती से हमारे दिल-दिमाग में कुछ वैसा ही असर छोड़ती है. मेरे ख्याल से इन कहानियों को पाठकों के सामने पेश करने से पहले इस पर और काम किए जाने की जरुरत थी. जब आप रेडियो पर कहानी सुनाते हैं तो उसका असर कुछ घंटों के लिए होता है. लेकिन लिखे शब्दों का असर लंबे वक्त तक रहता है. लेखक या प्रकाशक इस फर्क को समझने में मात खा गए. प्यार या प्रेम एक शाश्वत एहसास है. लेकिन उसके मयार काफी गहरे होते हैं. असल जीवन में बेहद गैरजरूरी लगने वाले फैक्टर्स भी कई बार हमारे प्यार को बेसहारा कर देते हैं. वापिस लौटना अक्सर असंभव होता है. खासकर सालों बाद, जो इस किताब की लगभग हर कहानी में बड़ी ही आसानी से होता हुआ दिखाया गया है. जो कई बार हमारे समाज और परिवार के यथार्थ से परे लगता है.
इसके बावजूद किताब की कुछ कहानियां बेहद सुंदर हैं. 'फिर मिलेंगे, तू कुजा
मन कुजा, पहली मुलाकात, घर हम्जा और जीनत, ट्रेन का हमसफर, सैनोरिटा और बगल की सीट वाली लड़की' किताब की दिलचस्प कहानियों में से एक हैं. एक अहम बात ये है कि रेडियो पर इन कहानियों के श्रोता
ज्यादातर युवा हैं जो इस दौर से गुजर रहे होते हैं. उनके लिए ये कहानियां काफी मोटिवेश्नल हो सकती हैं. लेकिन जो इस दौर से निकल कर आगे बढ़ चुके हैं उनके लिए ये कहानियां बोरिंग और रिपीट सी लगती हैं.
किताब की अच्छी बात इसकी सरल भाषा और सहज अंदाज है. अगर ये किताब इस उद्देश्य से लिखी गई है कि नई पीढ़ी में कहानियों के प्रति रुचि जगाई जाए तो हां किताब इस मामले में तमाम संभावनाओं को जन्म देती है. बोल-चाल की हिंदी में ऐसी सहज कहानियां कम ही पढ़ने को मिलती हैं. किताब में कहानियों से ज्यादा जो बात अच्छी है वो है लेखक का अपनी मंडली हर सदस्य को तवज्जो और सबकी कहानियों को पर्याप्त जगह देना है. जो युवा प्यार की गिरफ्त में जल्दी कैद हुए हैं, उन्हें उनके कंफर्ट लेवल से दो कदम आगे जाकर अपने प्यार को बचाए रखने की प्रेरणा देने में ये किताब सफल होती है. किताब को आप अपने बुक शेल्फ में जगह देना चाहेंगे या नहीं, ये आपकी नजर और पसंद पर निर्भर करता है.