गुस्ताखी माफ!
लेखकः कुलदीप तलवार
प्रकाशकः विजया बुक्स
मूल्यः 200 रु.
पुस्तक सार: विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपे तलवार के हास्य-व्यंग्य लेखों का संकलन, जो आम जिंदगी के किस्से बयां करते हैं.
अपने आसपास की जिंदगी की बारीकियों और किस्सों को हास्य-व्यंग्य के रूप में पेश करना आसान काम नहीं है. लेकिन कुलदीप तलवार ऐसा करने की गुस्ताखी करते हैं. इसकी मिसाल है उनकी किताब गुस्ताफी माफ! इसमें कुल 27 हास्य-व्यंग्य लेख हैं. इन लेखों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये आम लोगों की जिंदगी के किस्सों और जुमलों से होकर आए हैं.
ये लेख कहानियों की तरह हैं, सो बोरियत पैदा नहीं करते. यहां तक कि तलवार तल्ख सचाइयों और विडंबनाओं को छूने से पीछे नहीं हटते. वे इन्हें इस तरह पेश करते हैं कि मार भी गहरी करे और जिसे कहा जा रहा है, उसके दिल में गुस्से की जगह मुस्कान लाए. किताब की शुरुआत ''दिन रविवार का'' लेख से होती है जिसमें तलवार ने बखूबी बयान किया है कि कैसे लेखकों-कवियों की संगति में छुट्टियां भी दूभर हो जाती हैं और कोई-न-कोई घर पहुंच खलल डाल ही देता है. ''जो लोग कुछ नहीं करते, कमाल करते हैं'' लेख में उन्होंने निठल्लों की हवाबाजी की खबर ली है तो ''कवि नहीं फवि'' में कवियों की. वे किशोरवस्था के प्रेम के बारे में बताते हैं तो रिटायरमेंट के बाद इश्क की चाहत का बखान भी हास्य शैली में कर ले जाते हैं. यही नहीं, वे पाकिस्तान में चुनावी चख-चख तक भी पहुंच जाते हैं. ''मुलाकात दो बुद्धिजीवियों की'' लेख में वे वार्तालाप शैली में बुद्धिजीवियों के बीच की प्रतिस्पर्धा और चालबाजी को उजागर करने से नहीं हिचकते.
एक लेख में वे फणीश्वरनाथ रेणु के साथ अपनी मुलाकात में तीसरी कसम और रामधारी सिंह दिनकर से जुड़ी हास्यप्रद बातों को भी बताते हैं, जो महत्वपूर्ण है. हालांकि एक बात खलती है कि ये सभी प्रकाशित हो चुके पुराने लेख हैं. इनमें लेखक के कुछ ताजा लेख होते तो और मजा आता. लेकिन कुलदीर तलवार की शैली और असर काफी गहरा और तीखा है.