बीजापुर, बस्तर या जगदलपुर... इन नामों का जिक्र होते ही मन में सबसे पहला खयाल नक्सलवाद का ही आता है. फिल्मों या सीरियल्स में देखी वह छवि बरबस ही दिमाग में छाने लगती है, जिसमें नक्सली गहरे हरे रंग की वर्दी, लंबी मूंछ और भरमार बंदूक लटकाए जंगलों की खाक छानते रहते हैं. ये नक्सली कभी सुरक्षाबलों को निशाना बनाते हैं तो कभी खुद शिकार बन जाते हैं.
छत्तीसगढ़ के इन इलाकों में नक्सलवाद के अलावा संस्कृति, खानपान और विरासत से जुड़ा काफी कुछ है. यहां के जंगल अपने अंदर हजारों अनसुनी कहानियां समेटे हुए हैं. ऐसी कहानियां, जिनमें महुआ की महक है, सल्फी का खुमार है. जल-जंगल की फिक्र के साथ-साथ जुनूनी लड़ाकों का जिक्र भी है.
ऐसी ही एक कहानी 'चोला माटी के राम' अभिषेक सिंह 'नीरज' लेकर आए हैं. मूलत: उत्तर प्रदेश के जौनपुर से ताल्लुक रखने वाले अभिषेक 2013 बैच के डीएसपी हैं. बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित जिले में पदस्थ रहे अभिषेक ने बीहड़ों में एके-47 थामकर कई नक्सल ऑपरेशंस को अंजाम दिया है. इसलिए इस किताब को पढ़ते हुए कभी-कभी ऐसा लगने लगता है, जैसे हम बस्तर के घने जंगलों में खोते चले जा रहे हैं.
'चोला माटी के राम' उन आदिवासियों की कहानी है, जो आज भी स्कूल, अस्पताल और सड़क जैसी मूलभूत सुविधा के पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं. यह किताब उन इलाकों की व्यथा बताती है, जहां मास्टर स्कूल और डॉक्टर अस्पताल आने से इसलिए घबराते हैं कि कहीं अगले ही पल कोई उनकी जान का दुश्मन न बन जाए.
इस एक किताब ने अपने अंदर कई कहानियों को समेटकर रखा है. इसमें दिल्ली की चकाचौंध के साथ सेंड्रा के जनजातीय परिवेश की झलक है और असल सरकार से युद्ध छेड़ने वाली जनताना सरकार की हकीकत भी. उपन्यास की शुरुआत जेएनयू में पढ़ने वाले एक रिसर्च स्कॉलर साकेत से होती है, जो माता-पिता, अपनी गर्लफ्रेंड और कॉलेज फेकल्टी को अंधेरे में रखकर घनघोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नक्सलवाद पर रिसर्च करने पहुंच जाता है.
शहर की आराम पसंद जिंदगी के बीच अचानक जब साकेत का सामना अति पिछड़े ग्रामीण इलाकों से होता है तो उसका दिमाग चिंतन में डूब जाता है. आधुनिकता से कोसों दूर ये माहौल वक्त के साथ-साथ उसे पसंद आने लगता है. यहां उसे नक्सलवाद से जुड़ी हर बारीकी को नजदीक से जानने का मौका मिलता है.
रिसर्च के बीच ही साकेत का सामना बरसों से नक्सली और सुरक्षाबलों के बीच जारी संघर्ष से होता है. जिंदगी में पहली बार वह गोलियों की तड़तड़ाहट सुनता है. बस्तर की बियर कही जाने वाली सल्फी का स्वाद चखता है. और महुआ पीकर मदहोश भी होता है. अपने लग्जरी घर के बाथरूम में भी अंडरगारमेंट पहनकर नहाने वाला साकेत जंगल में बिना कोई कपड़े पहने घंटों घूमता रहता है.
किताबों और अखबारों में नक्सलवाद को पढ़ने और समझने वाला साकेत जब ग्राउंड जीरो पर पहुंचता है तो उसका दिमाग बोतल के ढक्कन की तरह खुल जाता है. 'चोला माटी के राम' की सबसे खास बात यह है कि ये किताब संघर्ष की लड़ाई में पक्ष और विपक्ष के फेर में उलझे बिना अपनी कहानी कहती चली जाती है. यह किताब बीहड़ों के बीच अघोषित युद्ध की आंखों-देखी कहानी बताती है. जो लोग न्यूज चैनलों और अखबारों की हेडलाइन के इतर बस्तर के इस संघर्ष को जानना चाहते हैं, उन्हें यह उपन्यास जरूर पढ़नी चाहिए. किताब के लेखक अभिषेक इससे पहले बैरिकेड नामक चर्चित उपन्यास लिख चुके हैं.
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पुस्तकः चोला माटी के राम
लेखक: अभिषेक सिंह 'नीरज'
भाषाः हिंदी
विधा: उपन्यास
प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन
पृष्ठ संख्याः 151
मूल्यः ₹199