किताब: धरा अंकुराई
लेखक: असगर वजाहत
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
कीमत: 400 रुपये (पेपरबैक)
'हम एक ऐसे बिंदु पर थे, जहां तर्क, बुद्धि, मर्यादा, शिष्टाचार, लोकलाज किसी प्रकार के अंतर का ज्ञान समाप्त हो जाता है. अचानक वह झटके से अलग हो गई और मुझे लगा कि मैं जाग गया हूं. उसकी आंखों में कुछ ऐसा था, जो पहले कभी नहीं देखा. न तो खुशी, न दुख, न उदासी, न उत्तेजना और न घृणा. वह मुझे देखती रही. मैं आगे बढ़ना चाहता था, लेकिन जमीन ने पैर पकड़ लिए और एक क्षण के अंदर वह सब लौट आया, जो याद ना था. उसी वक्त अनु मेरे कमरे में आई और नाजो उससे लिपट गई.' खूबसूरत अहसासों को अपने में समेटे हुए ये शब्द हैं असगर वजाहत की किताब 'धरा अंकुराई' के. यह उपन्यास असगर वजाहत के उपन्यास त्रयी का अंतिम भाग है. उपन्यास त्रयी के प्रमुख किरदारों में से एक हैं पत्रकार सैयद साजिद अली.
सैयद साजिद अली एक कामयाब पत्रकार हैं, लेकिन अचानक उन्हें जिंदगी में खालीपन-सा लगने लगता है और इसी खालीपन को भरने और सुकून की तलाश में साजिद अली उसी छोटी-सी जगह जाते हैं, जहां से वो कहीं खो गए थे. जद्दोजहद भरी जिंदगी का मतलब जानने पत्रकार साजिद गांव में अपने पुश्तैनी घर मल्लू मंजिल आते हैं. उस छोटी-सी जगह के सामाजिक परिवेश को लेखक ने बड़ी ही खूबसूरती से रू-ब-रू करवाया है. साजिद की पत्नी नूर हैं, जो लंदन में अपने बेटे के साथ रहती हैं और कभी-कभी भारत आती हैं. फिलहाल साजिद के साथ अनु रहती है, जिनके रिश्ते को समाज मान्यता नहीं देता. साजिद के मल्लू मंजिल में आने के बाद साजिद की मुलाकात होती है नाजो से. दरअसल नाजो सल्लो की पोती है. वही सल्लो, जिससे जवानी में साजिद को प्यार हो जाता है. सल्लो साजिद के घर खाना पकाने वाली बुआ की बेटी थी. साजिद से सल्लो की शादी नहीं हो पाती, क्योंकि अपने कायरपन के कारण साजिद घरवालों से बात नहीं कर पाता. इसका नतीजा होता है कि सल्लो की शादी एक रिक्शेवाले से हो जाती है. अब इतने सालों बाद साजिद को नाजो में वही सल्लो नजर आती है.
ऊपर किताब की जिन लाइनों का जिक्र है, वो साजिद और नाजो से जुड़ी हैं. साजिद नाजो को पढ़ाता-लिखाता है, लेकिन अपने बुढ़ापे के बावजूद वो नाजों में सल्लो को ही ढूंढता है. इसी बीच, कहानी में एक नया मोड़ आता है. साजिद का बेटा हीरा लंदन से लौटता है और पहली ही नजर में उसे नाजो से प्यार हो जाता है. बस कुछ इसी तरह की जिंदगी की कशमकश बयां करती है ये किताब.
किताब दो किस्सों में आगे बढ़ती है. एक किस्से में साजिद समाज से जुड़ते है, वहीं दूसरी तरफ उनकी पर्सनल जिंदगी जुड़ी होती है. किताब की शुरुआत आपको बांधे नहीं रखती, लेकिन जैसे-जैसे साजिद की पहले की लाइफ का जिक्र होता है, आपकी उत्सुकता बढ़ती जाएगी. किस्से की शुरुआत में साजिद कई सवालों के जवाब देते नजर आते हैं.
इसके बाद बारी आती है मल्लू मंजिल को ठीक कराने की. एक मुस्लिम परिवार में पले-बढ़े साजिद मल्लू मंजिल सही कराने के बाद शहर का जायजा लेते हैं और कई समस्याओं पर नजर डालते हैं. साजिद गांव में कई अच्छे बदलाव करवाता है. गांव में आकर साजिद वहां की कूड़े की समस्या के समाधान के लिए काफी कोशिशें करता है. गांव के बच्चों को इंगलिश सिखाता है. पत्रकार होने के नाते आज से जुड़ी कई समस्याओं को भी वह नजरअंदाज नहीं कर पाता. गांव में बिजली की समस्या पर वो सोचता है कि छोटे शहरों से लाइट गायब कर बड़े शहरों को दी जाती है. शायद गांव के लोगों को इसकी आदत पड़ गई है, इसके अलावा सहनशीलता का सीधा संबंध मजबूरी से होता है.
पिछले चार दशकों से माफिया शब्द हमारी जिंदगी इस कदर रच बस गया है कि कोई शब्द इतना प्रचलित नहीं हुआ. लेखक ने भी आज की राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि माफिया शब्द के बाद आता है घोटाला और उसके बाद आता भ्रष्टाचार. अब तो कई शब्द इजाद हो चुके हैं, जैसे शिक्षा माफिया, न्याय माफिया, दवा माफिया. इतने माफिया सक्रिय हैं कि सबका अपराधीकरण हो चुका है.
कुल मिलाकर 'धरा अंकुराई' समाज में होने वाले नए बदलाव और साजिद की जिंदगी की कशमकश का तानाबाना है.
क्यों पढ़ें यह किताब
अगर आप इंसानी जज्बातों में रुचि रखते हैं, तो ये किताब आपके लिए है. साथ ही समाज से सरोकार रखने वाले लोगों के लिए भी यह किताब फायदेमंद है.