किताब: धूप के आईने में
लेखक: किशोर चौधरी
प्रकाशक: हिन्द युग्म
कीमत: 95 रुपये
कवर: पेपर बैक
'यहां से कहां जाओगे?
मालूम नहीं!
फिर भी?
महबूब के घर!
महबूब का घर तो दिल में होता है?
मै उसी दिल को खोज रहा हूं!
मै कौन?
बंद करो अपने सवाल. मुझे घड़ी भर सांस लेने दो! और लड़का रोने लगा.'
कुछ इसी तरह किशोर चौधरी की किताब 'धूप के आईने में' मोहब्बत से उकताए लोगों की मोहब्बत में डूब जाने की हसरत का बयान है. टैरेस गार्डन की घास में जंगली बेलों की खुशबू तलाशने की एक अर्थहीन यात्रा. 'धूप के आईने में' मुख्य रूप से शहरी मध्यवर्ग के जवान 'मोहब्बतियों' की कहानियां हैं. किशोर ने बिल्कुल आज के संदर्भ उठाते हुए कहानी पिरोई है. कुल जमा छह कहानियां हैं. इस किताब में सबका केंद्रीय विषय प्रेम ही है. प्रेम में जिंदगी बिता देने को प्रतिबद्ध लोग कैसे प्राथमिकताएं बदलते ही प्रेम को बीत जाने देते हैं और फिर हैरानकुल हो कर सोचते हैं इश्क गया कहां रखा तो था सबसे भीतरी जेब में सुरक्षित. दरअसल इश्क नकचढ़े बच्चे की तरह होता है, जब तक गोद में उठाए पुचकारते रहो तब तो खुशियों के असबाब से मालामाल कर देगा, लेकिन जैसे ही गोद से उतारो, जमीन पर लेट कर चिचियाने लगेगा और आपको शर्मिंदा कर देगा. किशोर अपने पात्रों के जरिए यही कहते हैं. हालांकि किताब पढ़ते हुए कई बार ऐसा लगता है कि कोई दार्शनिक अपनी प्रेम कहानी सुनाते हुए दर्शन में खो गया हो. किशोर भी कई बार उपमाओं और शब्द चमत्कार के फेर में उलझते हैं लेकिन तुरंत लौट भी आते हैं.
क्या कहती है कहानी
कहानी के स्तर पर आपको कुछ अजूबा या नया नहीं मिलेगा लेकिन आप नया चाहते ही कब हैं. आपने तो उसे ही मकबूल किया है जो आपकी बात कह सके. मध्य वर्ग के शहरी युवा की बातें कहने में किशोर सफल रहे हैं. संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी है ये तन्हाई कैसी है. कहानी के प्लॉट के हिसाब से जो शुष्कता परोसी गई है, लाजवाब है. 'धूप के आईने में' एक खूबसूरत ब्लॉग जैसा कुछ है, कहानी में कविता सा प्रवाह. छोरी कमली रेगिस्तान के धोरों की खुशबू में लिपटा हुई है. इस कहानी से गुजरने का मन करता है मगर अंजाम की जल्दी नहीं होती. कहानी का अंजाम यूं भी थोड़ा कमजोर रह गया है. मार्च की एक सुबह प्रेम में मार्च सी ताजगी नहीं बल्कि जून की दोपहर सी खीज है. प्रेम कहानी में प्रेम के अलावा सब है और इसीलिए कहानी बेहतर हो गई है. वैसे भी आज के दौर में कितना प्रेम बच पाया है प्रेमियों में.
जो तेरा है वो मेरा है...
कहानी आसपास की है. बिंब उदाहरण पात्र सब देखे सुने से हैं, इसलिए कहानी से रिश्ता तुरंत जुड़ जाता है. लगता है जैसे अपनी ही बात हो रही हो. लेखक बस आईना दिखाता है ज्ञान नहीं झाड़ता. हम प्रेम कहानियों पर महान होने की शर्त लाद देते हैं जबकि प्रेम हम-आप जैसे प्राणी ही तो करते हैं. अपने इगो, चालबाजियों और बेवफाई के साथ. महानता से समानता का भाव नहीं आता. लेकिन इस किताब को पढ़ कर आता है. पात्र हमारी ही तरह डरे हुए हैं. सकुचाते हुए इजहार-ए-मोहब्बत करते हैं और बाद में खुद को कोसते हैं कि कितना कुछ रह गया कहने को. कमजोरी अगर कही जाए तो लेखक भी थोड़ा डरा हुआ लगता है. बकौल चचा गालिब इस 'दरिया-ए-आग' के किनारे चलने से बेहतर होता, किशोर इसमें डुबकी लगाते और हमको भी ले चलते गहरे तल की ओर, जहां मिट्टी बैठी हुई हो. क्योंकि ऊपर-ऊपर से झाड़ने-पोंछने में मोहब्बत की गर्द बहुत जमा हो गई है.
क्यों पढ़ें 'धूप के आईने में'
अगर मोहब्बत पर आपने लंबे वक्त से कुछ न पढ़ा हो. दिल को रुमानियत की खुराक देनी हो तो 'धूप के आईने में' को पढ़ आपके सीने में मोहब्बत की ठंडक पैदा होगी. किशोर चौधरी ने आपकी हमारी बातें लिखी हैं और जिक्र-ए-मोहब्बत है. जब आप इसे पढ़ेंगे तो आपको अपने अफसाने भी याद आएंगे.
क्यों न पढ़ें
अगर आप इलाज-ए-इश्क ढूंढ़ रहे हैं या इश्क के पास शरणागत की तरह जाना चाहते हैं तो इस किताब को पढ़ने की जहमत न उठाएं. फैज ने अपनी नज्म में कहा भी तो है,' और भी गम हैं जमाने में, मोहब्बत के सिवा.' तो अगर आपके पास भी जिंदगी के और गम हैं, और इश्क आपको बेकार की बात लगती है, तो इस किताब को न पढ़ें.