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बुक रिव्यू: 'क्रिकेट के भगवान' के आखिरी मैच की आंखों देखी है 'फाइनल टेस्ट: एक्जिट सचिन तेंदुलकर'

नवंबर 2013 की तारीख. मुंबई का वानखेडे स्टेडियम और क्रिकेट के महान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर का आखिरी टेस्ट. पूरा देश ठहराव की स्थिति में.

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किताब: फाइनल टेस्ट: एक्जिट सचिन तेंदुलकर (इंग्लिश)
किताब: फाइनल टेस्ट: एक्जिट सचिन तेंदुलकर (इंग्लिश)

किताब: फाइनल टेस्ट: एक्जिट सचिन तेंदुलकर (इंग्लिश)
लेखक: दिलीप डिसूजा
पब्लिशर: रेंडम हाउस इंडिया
कीमत: 299 रुपये

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नवंबर 2013 की तारीख. मुंबई का वानखेडे स्टेडियम और क्रिकेट के महान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के आखिरी टेस्ट में पूरे देश का ठहराव की स्थिति में आ जाना. सचिन के आखिरी टेस्ट मैच में स्टेडियम के स्टैंड खचाखच भरे होते हैं और ये सब नजारा ऐसे फॉर्मेट के मैच का होता है जो आमतौर पर अपने अस्तित्व के लिए इसी देश में संघर्ष करता नजर आता है.

सचिन तेंदुलकर के उस मैच के सभी लोगों के लिए अलग-अलग मायने हैं. कोई उस आखिरी मैच में एहसासों के समंदर में डूबकर अपने पसंदीदा खिलाड़ी को विदाई देता है, तो कोई इस बात पर अफसोस जताता है कि वो मास्टर ब्लास्टर को फिर कभी मैदान पर नहीं देख पाएंगे. इस हकीकत को ध्यान में रखते हुए दिलीप डिसूजा की किताब 'फाइनल टेस्ट: एक्जिट सचिन तेंदुलकर' सचिन के दीवानों के लिए एक बेहतरीन किताब है. आत्म प्रोत्साहन देने के अलावा किताब पाठकों को फ्लैशबैक मूड में ले जाती है.

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दिलीप की यह किताब सचिन के 200वें टेस्ट के पल-पल का जिक्र करने की बजाय मैच की हाईलाइट्स को बयां करती है. मैच के टर्निंग प्वाउंट्स को इसमें बखूबी बताया गया है. किताब में दिलीप चतुराई से कई जगह टेनिस उपमाओं का इस्तेमाल करते हुए क्रिकेट की मौजूदा स्थिति पर भी निशाना साधते हैं. इन मुद्दों में टी-20 क्रिकेट फॉरमेट, वर्ल्ड क्रिकेट में बीसीसीआई की बादशाहत और टेस्ट क्रिकेट का भविष्य भी शामिल है.

किताब का अच्छा पहलू ये है कि डिसूजा सचिन के आखिरी टेस्ट के दौरान उमड़ी भावनाओं में नहीं बहे और इससे विमुक्त रहे. इसके अलावा डिसूजा ने बेहतरीन तरीके से उन लोगों के लिए किताब में लिखा है, जो सचिन के उस यादगार टेस्ट के दौरान स्टेडियम में मौजूद नहीं थे. मैच के दौरान टिकट लेने से लेकर प्रेस बॉक्स में जगह पाने और समोसे खाने के अनुभव को भी डिसूजा ने शब्दों की शक्ल में पिरोया है. डिसूजा ने सचिन के 200वें टेस्ट के लिए वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम चुनने पर पैनी नजर रखते हुए कई पहलुओं को पेश किया है.

डिसूजा ने सचिन की इच्छाओं और फैसलों को भी बयां करने की कोशिश की है. 215 पन्नों की इस किताब को पढ़ने के बाद सचिन के आखिरी मैच के बारे में लुभावने अंदाज में जाना जा सकता है. इससे पहले डिसूजा की किताब 'द क्यूरियस केस ऑफ बिनायक सेन' में छत्तीसगढ़ के डॉक्टर के खिलाफ दायर केस में भेदियों का खुलासा किया था. डिसूजा की सचिन के आखिरी टेस्ट के ऊपर लिखी किताब पढ़ना अपने आप में दिलचस्प इसलिए भी हो जाता है क्योंकि इसमें सचिन, क्रिकेट के अलावा कई और बातों का जिक्र है.

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किताब की प्रस्तावना में क्रिकेट कमेंटेटर हर्षा भोगले ने दिलीप डिसूजा की किताब को बखूबी बयां किया है. हर्षा लिखते हैं,'वो सिर्फ एक क्रिकेट मैच नहीं था. वो भावनाओं के समंदर के एकजुट होने का मौका था'. सचिन के दीवानों के लिए यह एक बेहतरीन किताब है.

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