किताब का नामः गुलाम मंडी (उपन्यास)
लेखिकाः निर्मला भुराड़िया
प्रकाशकः सामयिक प्रकाशन
कीमतः 395 (हार्डकवर)
वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से लेकर ग्लोबल वार्मिंग और स्वास्थ्य को लेकर तमाम बहस होती है. एक राष्ट्राध्यक्ष दूसरे राष्ट्राध्यक्ष से मुलाकात करते हैं, दुनियाभर की समस्याओं पर चिंतन करते हैं, सुझाव देते हैं, रास्ते निकाले जाते हैं, समितियां बनती हैं और उनपर काम होता है.
दुनियाभर में अगर किसी स्कूली बच्चे से लेकर एक वयस्क नागरिक तक से पूछा जाए कि दुनिया की सबसे बड़ी समस्या क्या है, तो आमतौर पर एक जवाब आतंकवाद, ग्लोबल वार्मिंग या फिर बेरोजगारी या स्वास्थ्य हो सकता है. लेकिन इन सब से इतर ह्यूमन ट्रैफिकिंग और वैश्यावृति समाज की ऐसी बीमारी है, जिसपर चर्चा या तो लाजिमी नहीं समझी जाती या फिर उन पर खुले मुंह बात करना सामाजिक सभ्यता को नीचे की ओर ले जाता है.
ऐसा नहीं है कि इस ओर कानून और समितियां नहीं हैं. चिंतन नहीं होता, बहस नहीं होती. होती हैं, लेकिन इसे लेकर संजीदगी का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि मानव सभ्यता के साथ शुरू हुई यह बीमारी पहले से कहीं अधिक विकराल हो चुकी है और इस ओर बौद्धिक बहस के अलावा हम कहीं और नहीं पहुंच सके हैं.
समाज में एक बहस जेंडर को लेकर भी है. यकीनन भारत ने भी कानूनन देश को तीसरा जेंडर दे दिया, लेकिन इसमें भी आजादी के बाद 65 साल से अधिक का समय लगा. हालांकि कागजों में सम्मान से इतर इसकी जमीनी हकीकत कितनी दर्दनाक है यह बताने और समझाने की जरूरत नहीं है.
जाहिर तौर पर देश से लेकर विदेशों तक हमारा समाज 'गुलामी' की इसी जंजीर से जकड़ा हुआ है और पत्रकार से लेखिका बनीं निर्मला भुराड़िया की किताब 'गुलाम मंडी' इसी जंजीर में एक कड़ी है. यह कड़ी असल में एक उपन्यास है, लेकिन इसकी कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है पाठक के अंदर चिंतन का जागरण होता है.
इस मंडी में जानकी और कल्याणी नायिकाएं हैं. लेकिन इन सबके बीच जेन भी है, जो अमेरिका में चमकीली रोशनी के बीच थिरकते नंगे मांस के समूहों से हमारा परिचय करवाती है. कहानी में समाज में फैला जात-पात है, रूढ़िवाद है, खूबसूरती के समय के साथ खोने का डर है, साथ ही वह कड़वी सच्चाई भी है जो बलात्कार से पीड़ित एक लड़की को शिकार और बलात्कारी को शिकारी का तमगा देता है.
लेखिका ने बतौर उपन्यासकार अपने पात्रों के जरिए एक साथ कई विषयों को जोड़ा है. मसलन, इसमें इंसानों की खरीद-फरोख्त है. बेशर्म दुनिया की नंगी सच्चाई है, जो हमाम के सभी नंगों को सड़क पर लाने का काम करती है. यौन कुंठा व इंसान के रूप में नरभेड़ियों की शैतानी मनोदशा है तो इन सब से इतर और कहानी का एक महत्वपूर्ण भाग वह 'तीसरा जेंडर' भी है, जिसने तिरस्कार, अपमान और त्याग को समाज से जन्मजात पाया है.
यानी कहानी में बहुत कुछ है, लेकिन दिलचस्प यह भी है कि सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. 240 पन्नों की इस दास्तान में कुछ घटनाएं काल्पनिक हैं तो कई में सच्चाई का अंश भी है. साल 2006 में एक कार्यक्रम के तहत निर्मला को अमेरिका जाने का मौका मिला, वहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंसानों की खरीद-फरोख्त और रात के अंधेरों में चमकीली रोशनी के बीच नंगे मांस के पुतलों के बीच जाकर उन्होंने समस्या के नए आयामों पर चिंतन किया.
यकीनन यह अनुभव उनके लिए विचार और चिंतन के नए द्वार खोलने वाला था और बतौर लेखिका उन्होंने इसे अपने उपन्यास में जगह भी दी. यानी कुछ मायनों में 'गुलाम मंडी' वैश्विक स्तर पर देह के बाजार की कड़वी सच्चाई पर एक रिपोतार्ज भी है.
क्यों पढ़ा जाए
अगर आतंकवाद और ग्लोबल वार्मिंग से इतर कुछ और जमीनी सच्चाई से रूबरू होना चाहते हैं. अगर यह मानते हैं कि विकास की बयार और स्वच्छता के मिशन से पहले या साथ-साथ विरासत में मिली बीमारियों का सफाया करना एक जरूरत है.
अगर वाकई तीसरे जेंडर को हिजड़ा या किन्नर कहते वक्त आपको ग्लानि होती है. अगर इंसान को फल-सब्जियों और संसाधन से ज्यादा और स्त्री के शरीर को नंगे मांस से ऊपर समझते हैं. अगर वाकई सामाजिक सत्य के साथ प्रयोग से पहले इस ओर चिंतन करना चाहते हैं.
लेखिका के बारे में
लाइफ साइंस की डिग्री और प्रतिष्ठित समाचार पत्र 'नई दुनिया' से जुड़ी निर्मला भुराड़िया जीवन के जीवंत विज्ञान में गहरी रुचि रखती हैं. वह अपने साप्ताहिक स्तंभ 'अपनी बात' के जरिए विचारोत्तेजक सामग्री प्रस्तुत करती रहती हैं. उनकी छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.
इनमें उपन्यास 'ऑब्जेक्शन मी लार्ड' को साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश साहित्य परिषद द्वारा और 'फिर कोई प्रश्न करो नचिकेता' को मध्य प्रदेश साहित्य सम्मेलन द्वारा वागीश्वरी सम्मान मिल चुका है.