किताब का नाम: मृगतृष्णा
लेखिका: सुधा मूर्ति
प्रकाशक: प्रभात बुक्स
कीमत: 250 रुपये
कवर: हार्ड कवर
मानवीय संवेदनाओं को समझने की कोशिश करते कुछ किरदार और उनके बीच खुद को फंसा हुआ पाती मृदुला. सिर्फ यही नहीं हैं 'मृगतृष्णा'. कन्नड़ और अंग्रेजी की प्रसिद्ध रचनाकार सुधा मूर्ति का ये उपन्यास उनकी खुली सोच का नजारा दिखाता है. उनके मन में तमाम समसामयिक घटनाओं का ताना बाना है. वो चिंतित हैं नारी सशक्तिकरण को लेकर. उनके मन में सवाल हैं समाज, स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी को लेकर. जनहित के लिए जिन तमाम पहलुओं का ध्यान रखना होता है उनका जिक्र है 'मृगतृष्णा' में. इस उपन्यास से उन्होंने अपनी सोच साफ तौर पर दर्शा दिया कि नारी को स्वयं में विश्वास करना चाहिए.
'मृगतृष्णा' किसी एक लड़की की कहानी नहीं हैं जो तनावग्रस्त है. ये कहानी है समाज की उस हताश आधी आबादी की जो अपनी इच्छाएं दबाए बैठी हैं. जो अपने मन की बेचैनी के चलते खुद को कटघरे में खड़ा करती हैं. वो अपने आप से सवाल पूछते हैं कि उनकी जिंदगी दिशाहीन तो नहीं. उन महिलाओं को डर है कि वह पागलपन का शिकार न हो जाएं. 'मृगतृष्णा' एक संदेश है उनके हौसलों को बुलंद करने का. 'मृगतृष्णा' उपन्यास बताता है कि वो नारी समाज का एक अहम हिस्सा है. बस उसे थोड़ा आत्मविश्वास जगाना होगा.
आजकल चौतरफा नारी सशक्तिकरण का बोलबाला है. समाज की इस आधे हिस्से को मजबूत
बनाने की एक मुहीम छिड़ी हुई है. ऐसे में इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष के रूप में सुधा मूर्ति ने बहुत गंभीरता
के साथ अपने अनुभव बताए हैं. हर बार एक संदेश देने की कोशिश की है. ये उपन्यास सस्पेंस और ड्रामा से कोसों
दूर है. लेकिन सच्चाई से आपको रूबरू कराता है. ये आपको एहसास दिलाएगा कि कहीं न कहीं आप भी ऐसे
अनुभव से टकराए हैं. इस किताब को पढ़ने के बाद पाठक महिलाओं को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे.