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दो दिलों की कशमकश का किस्सा- नज़ाकत

फ्रांसीसी कथाकार डेविड फोइन्किनोस की कहानी ला डेलीकेट्स यानी 'नज़ाकत' में इस बात को बड़े ही खूबसूरत अंदाज में एक सहज किस्सागोई के अंदाज में इस तरह से जाहिर किया गया है...कि मानों वो यहीं कहीं अपने इर्द गिर्द घट रहा है. और पढ़ने वाला पाठक उस पूरे सिलसिले में खुद एक किरदार बनकर कहानी का हिस्सा हो जाता है.

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फ्रांसीसी लेखक का उपन्यास है नजाकत
फ्रांसीसी लेखक का उपन्यास है नजाकत

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वैसे कहते हैं कि किसी भी औरत का मन कोई नहीं जान सकता...उसके दिल के जज्बातों को जब तक वो खुद अपनी जुबान से न कहे...कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि उसके दिल में क्या है. इसके उलट, एक औरत बड़ी ही सहजता से इस बात का अंदाजा लगा लेती है कि उसके सामने आए शख्स के दिल में उसको लेकर क्या चल रहा है...और पाया भी यही जाता है कि ज्यादातर मामलों में औरत का अनुमान एक दम सही और सटीक होता है.

फ्रांसीसी कथाकार डेविड फोइन्किनोस की कहानी ला डेलीकेट्स यानी 'नज़ाकत' में इस बात को बड़े ही खूबसूरत अंदाज में एक सहज किस्सागोई के अंदाज में इस तरह से जाहिर किया गया है...कि मानों वो यहीं कहीं अपने इर्द गिर्द घट रहा है. और पढ़ने वाला पाठक उस पूरे सिलसिले में खुद एक किरदार बनकर कहानी का हिस्सा हो जाता है.

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फोइन्किनोस की कहानी ला डेलीकेट्स को दुनिया के उन चुनिंदा उपन्यास में शुमार किया जाता है, जिसे पढ़ने वालों को संसार में बहुत सराहा गया...और अगर उसे बाजार की जुबान में कहा जाए तो फोइन्किनोस का उपन्यास बेस्ट सेलर बन चुका है. जिसे आलोचकों और पाठकों की इस कदर सराहना मिली की दुनिया के दस बड़े पुरस्कार फोइन्किनोस की झोली में आ गए.

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हालांकि पुरस्कार मिलना ही किसी कहानी के अच्छे होने की गारंटी नहीं है क्योंकि पुरस्कार तय करने वाली जूरी ने उस कहानी को किस नजरिये से देखा, वो नजरिया लोगों की पसंद से जरूरी नहीं कि मेल भी खा जाए मगर फोइन्किनोस की कहानी और उसका ताना-बाना इतना सधा हुआ है कि पढ़ते समय पाठक खुद इतनी दिलचस्पी लेने लगता है कि कुछ ही सफों के बाद वो खुद को उस उपन्यास के किसी किरदार में ढूंढने लग जाता है.

यूरोपीय परिवेश को बताती है 'नजाकत'
इस उपन्यास का हिन्दी रूपांतर राजपाल एंड संस ने प्रकाशित किया है. सबसे अच्छी बात ये है कि यूरोपीय परिवेश और वहां की रस्मों से रचे बसे इस किस्से में ऐसे इंसानी जज्बातों को उभारा गया है. जो किसी भी हद, सरहद में बंध कर नहीं रह सकता. शायद यही वजह है कि इस किस्से को पढ़ने वाला देश और भाषा की तमाम हदों से परे निकल जाता है और उसे इंसान और इंसानी जज्बातों की भाषा ही समझ में आने लगती है. इसीलिए इस उपन्यास की नायिका और उसके जज्बातों का किस्सा किसी भी देश और समाज में आसानी से महसूस किया जा सकता है और यही वजह है कि उसे समझने के लिए कोई अलग से सोच लाने की जरूरत नहीं महसूस होती.

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फोइन्किनोस के बारे में मशहूर है कि वो अपना उपन्यास लिखते समय कई नई-नई धुनें भी तैयार कर लेते हैं. लेकिन इस उपन्यास को पढ़ते समय ऐसा महसूस होता है कि फिजा में हल्का-हल्का ऐसा संगीत गूंज रहा है जो माहौल को न सिर्फ भारी होने से बचाए हुए है बल्कि एक तरावट का अहसास देना शुरू कर देता है. ताकि नायिका के साथ घटते घटनाक्रम का अवसाद माहौल पर तारी न हो पाए.

इस कहानी का एक और दिलचस्प पहलू है और वो ये कि पाठक हर उस किस्से का अनुमान पहले से लगाने लगता है जो नायिका के साथ होने वाला होता है लेकिन इस किस्से के अंत में जो कुछ नायिका करती है या उसके साथ होता है उसका अंदाजा कोई नहीं लगा पाता. और यही बात उस रोमांच को पैदा कर देती है. जिसे पाने के लिए पाठक किसी भी उपन्यास को हाथ में उठाने से पहले कशमकश के दौर से गुजरता है. प्रकाशक राजपाल एंड संस को इस बात की बधाई भी दी जा सकती है कि उन्होंने इस कहानी का अनुवाद करवाते समय इस बात का खास तौर पर ध्यान रखा कि उपन्यास की अंतरआत्मा वही बनी रहे जो फ्रांसीसी लेखक ने अपनी भाषा और अपनी शैली में लिखते समय उपन्यास में भरी थी.

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