किताब: नेतागीरी (फिक्शन)
लेखक: साइरस ब्रोचा
प्रकाशक: रेंडम हाउस
इंडिया
कीमत: 250 रुपये
संस्करण: पेपरबैक
पेज: 241
अगर आपके दिमाग में दही जम गया है और आप उस दही की लस्सी बनाना चाहते हैं, तो आपके लिए सबसे बेहतरीन मथनी है 'नेतागीरी'. 'नेतागीरी' में आप जैसे-जैसे घुसेंगे, इसकी कहानी आपके दिमाग में जमे दही को मथना शुरू कर देगी. इस मंथन के बाद आपके मुख पर हंसी होगी या फिर एक लाइन, 'अबे ये क्या सैम्पल है.'
साइरस ब्रोचा टीवी शो के दौरान लोगों को बकरा बनाते हुए हंसाने के लिए मशहूर हैं और यही काम जब वो कोरे कागज पर लिखकर करते हैं तो 'नेतागीरी' किताब अवतरित होती है. 'नेतागीरी' किताब एक दिलचस्प काल्पनिक राजनीतिक व्यंग्य है. जिसके सभी पात्रों का वास्तिवकता से लेना देना है या नहीं. इससे किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता. वजह साफ है, किताब आपके दांत चियारने के लिए है, न कि तथ्यात्मक रूप से ऐतिहासिकता का दावा करने के लिए. किताब की कहानी शुरू होती है. दरअसल पता ही नहीं कि कहानी कब शुरू होती है और किस तरफ जाती है. साइरस खुद किताब में करीब एक दर्जन से ज्यादा बार यह कहते हैं कि कहानी अब शुरू होती है. हालांकि ये बात वो सेंस ऑफ ह्यूमर की सेंस में लिखते हैं. लेकिन कहानी में घुसने की कोशिश करता पाठक इस नायाब सेंस को नॉन सेंस की श्रेणी में रखता हुआ बाहर निकलता है.
'नेतागीरी' की कहानी कुछ यूं है कि एक काल्पनिक देश है ज्ञानदोस्तान. यह देश कहां है ये किसी को नहीं पता. लेकिन इसका एक शहर है, जिसका नाम है 'बे'. 'बे' शहर में एक खिस्की हुई 'हस्की' नामक फैमिली रहती है. जय हस्की परिवार के प्रमुख, जो एक दिन घर की खिड़की से कूदते- फांदते कही निकल जाते हैं. लौटकर आते हैं या नहीं. यह रहस्य है. ज्ञानदोस्तान देश में साइरस कुछ काल्पनिक और चटकीले किरदार गढ़ते हैं. ये किरदार अपने आप में सटके हुए होते हैं. जिनका बस चलता तो किताब से बाहर आकर आपके साथ कुछ खुराफात कर जाते. लेकिन शुक्र है कि किताब से बाहर नहीं आ सके. ज्ञानदोस्तान देश का राष्ट्रपति कर्नल जग्गी जो सद्दाम, गद्दाफी और हिटलर की पद चिन्हों पर चलने की कोशिश करता हुआ नजर आता है. लेकिन देश को लेकर वो कितना गंभीर है. इसका अंदाजा इसी बात से पता चल जाता है कि वो हर बड़ी मीटिंग में कपड़े उतारकर यानी पूर्णत: नंगा होकर जाना पसंद करता है. हां, कई बार जुराबें पहन लिया करता था.
कर्नल को गद्दी से उतारने के लिए खुद को जिम्मेदार लेकिन हकीकत में लीचड़पंती से भरे किरदार दृढ़ संकल्प करते हैं. जग्गी के प्रेसीडेंट बनने और लोगों को उसको गद्दी से उतारने की कोशिशें ही 'नेतागीरी' किताब की कहानी के रूप में बाहर आती है. राजनीति, बगावत, व्यंग्य, कन्फ्यूजन, लोल और महानता के आत्मबोध से भरे किरदार पॉल हस्की, कर्नल जग्गी, डिसूजा, रे चो, अम्मा, बेला टेरेंस, स्विम ब्रदर्स, कोलीन कोन्नोर, शैम्पू किताब में निरंतर रूप से आते रहते हैं, ज्ञान का पायरेटेड वर्जन पेश करते हैं और निकल लेते हैं. इस वर्जन से आपको हंसी भी आ सकती है और गुस्सा भी. यह आपके स्वभाव पर निर्भर करता है.
'नेतागीरी' किताब के कुछ दिलचस्प बातें
1. ज्ञानदोस्तान की संसद सत्र में प्रश्न काल में
मजेदार सवाल पूछे जाते हैं, जैसे क्या हम लंबा लंच ब्रेक ले सकते हैं. फुटबॉल मैच के दौरान
संसद में बड़ी टीवी स्क्रीन लगाई जाए. सांसदों के लिए पार्किंग स्पेस बढ़ाई जाए.
2. कर्नल
जग्गी अपने चेहरे पर डरावने और कठोर भाव लाने के लिए सद्दाम हुसैन, मुसोलिनी की वीडियो
फुटेज देखता है.
3. किताब के किरदार इसकी जान हैं. कहानी के एक हिस्से में शैम्पू
अपना अतीत बताते हुए कहता है कि वो अब से पहले सिर्फ दो बार किचन में घुसा है और दोनों
बार वो बाथरूम की तलाश के दौरान यह उपलब्धि हासिल कर पाया था. बीच-बीच में कार्टून्स के
जरिए इन किरदारों की छवि भी पेश की जाती है.
4. ज्ञानदोस्तान में 'मूनशाइन' नामक
अस्पताल होता है. जिसका इमरजेंसी वॉर्ड सातवीं मंजिल पर होता है. क्योंकि बिल्डिंग के ग्राउंड
और चार फ्लोर्स पर शॉपिंग मॉल होता है.
5. 'नेतागीरी' हमें एक सीख भी देती है. अगर
आपका पार्टनर और आप एक दूसरे की भाषा समझ नहीं पाते हैं. तो यह आपके रिश्ते के लिए
बेहतर है. लड़ाइयों के दौरान प्रतिद्वंदी पार्टनर की भाषा समझ न आना रिश्तों के लिए बेहतर
रहता है.
क्यों न पढ़ें 'नेतागीरी'
अगर आपका इंग्लिश में हाथ टाइट है तो यह किताब
आपके लिए नहीं है. इंग्लिश किताब है जी, डिक्शनरी पास हो तो काम बन सकता है. 'नेतागीरी'
किताब की शुरुआत बेहद ही पकाऊ है. किताब की कहानी को समझने की कोशिश करता पाठक,
कई बार साइरस के मजाक को नहीं समझ पाता है. इसी वजह से शुरुआत के कुछ पन्ने पढ़कर
किताब को पूरा पढ़ने का फैसला करने वाले लोग इसे न पढ़ने का फैसला कर सकते हैं. किताब
के कुछ हिस्सों में किस्सों को घसीटा गया है, खासतौर पर डिसूजा की बातों के मतलब बताने
में. हालांकि अगर आप जैसे-तैसे इस किताब के एक चौथाई हिस्से को खत्म कर देते हैं, तो यह
भी तय है कि बाकी की किताब आप तेजी से पढ़ेंगे और यह आपके चेहरे पर हंसी भी लाने में
सफल होती है. आप अगर गंभीर कहानियों और किताबों के शौकीन हैं, तो माफ कीजिएगा, यह
किताब आपके लिए नहीं है.
क्यों पढ़ें 'नेतागीरी'
'नेतागीरी' एक औसत हंसाने वाली किताब
है. लेकिन साइरस ने बेहतरीन तरीके से किताब के किरदारों का नामकरण और उनको पेश किया
है. किताब पढ़ने के दौरान आपका मन इन किरदारों के कान ऐठने का कर सकता है. कहानी में
जान फूंकने का काम भी इन किरदारों के जरिए साइरस ने किया है. इसके अलावा अगर आपने
आज तक कोई ढंग की सेंस ऑफ ह्यूमर से भरी किताब नहीं पढ़ी है, तो यह किताब आपके
लिए ही है. साइरस बेहतरीन सेंस ऑफ ह्यूमर वाले हैं. इसकी झलक 'नेतागीरी' में भी दिखी है.
हंसने की तमन्ना लिए लोगों में अगर उपरोक्त गुण हैं तो वो 'नेतागीरी' को एक बार पढ़ सकते
हैं. यह चौपट तरीके से ही सही लेकिन राजनीतिक समझ भी पैदा करती है कि एवरीथिंग इज
फेयर इन लव, वॉर एंड 'नेतागीरी'.