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बुक रिव्यू: मीडिया की बारीक समझ के लिए कीजिए 'समय से संवाद'

हिट्स और टीआरपी की दौड़ में लोकतंत्र का चौथा खंबा कहे जाने वाली पत्रकारिता की नींव आज हिलने सी लगी है. योगेश मिश्र की किताब 'समय से संवाद' पत्रकारिता से जुड़े ऐसे ही महत्वपूर्ण अनुभवों को बयां करती है.

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समय से संवाद किताब का कवर
समय से संवाद किताब का कवर

किताब: समय से संवाद
लेखक: योगेश मिश्र
कीमत: 495 रुपये
पेज: 256
पब्लिशर: सामयिक प्रकाशन

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पत्रकारिता के मायने आज बदल चुके हैं. टारगेट ऑडिएंस की हिसाब से मीडिया समूह काम कर रहे हैं. हिट्स और टीआरपी की दौड़ में लोकतंत्र के चौथा स्तंभ पर भी सवाल उठने लगे हैं. फिर भी पत्रकारिता के खालिस तौर-तरीके आज भी मौजू हैं. योगेश मिश्र की किताब 'समय से संवाद' पत्रकारिता से जुड़े ऐसे ही अहम अनुभवों को बयान करती है.

पत्रकारिता में 24 साल के अनुभव वाले योगेश मिश्र ने 'समय से संवाद' किताब में अपने प्रोफेशनल अनुभवों को साझा किया है. योगेश ने पत्रकारिता के बदलते मापदंडों का जिक्र तो किया ही है, साथ ही उन पेशेवर स्थितियों को भी सामने रखा है, जिनसे एक पत्रकार को गुजरना पड़ता है.

अच्छी बात यह है कि समाज को संदेश देने से इतर अखबारों में विज्ञापन की भूमिका पर भी योगेश बात करते हैं. 'आज की पत्रकारिता' में योगेश लिखते हैं, 'हम तमाम तांत्रिकों का विज्ञापन क्यों छापते हैं. 'मीठे रिश्ते बनाएं, दोस्ती करें' जैसे विज्ञापन समाज में अश्लीलता का जो ताना-बाना पत्रकारिता द्वारा बुना जा रहा है. क्या उसके लिए पत्रकारिता को समाज दोषमुक्त मान सकता है?'

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'बहुत से अखबारों में गलत बातें छपती हैं. उन पर विश्वास मत करो: महात्मा गांधी, 1929'

योगेश ने विभिन्न संगोष्ठी और आयोजनों में अपने विचार रखे थे. उन विचारों को भी इस किताब में संकलित किया गया है. 'यहां की माटी को फिर चाहिए कुशल कारीगर' लेख में लेखक ने आजमगढ़ के गिरमिटिया मजदूरों का इतिहास बयान किया है कि किस तरह औरंगजेब ने राजा विक्रमजीत सिंह को सेना भेजकर मरवा दिया था.

कुछ मीडिया रपटों का दावा  है कि यह किताब इस साल लखनऊ पुस्तक मेले की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में थी. योगेश पत्रकारिता के गिरते मूल्यों की चर्चा करते हुए 'गिरेबां में झांकने' की बात भी करते हैं. टीवी की टीआरपी के इस दौर में एंकर्स को किस तरह की दिक्कतें आती हैं. ये किताब उसे भी सामने रखती है. प्रवचन की तरह खबर पढ़े जाने जैसे तंज भी योगेश किताब में करते हैं.

क्यों पढ़ें...
अगर आपकी दिलचस्पी पत्रकारिता क्षेत्र में है या आप इसके स्टूडेंट हैं, तो ये किताब आपको जरूर पढ़नी चाहिए. पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाली दिक्कतों को समझने में मदद मिलेगी. इससे इतर मौजूदा दौर में एक दर्शक या पाठक होने के नाते भी मीडिया को लेकर आपकी समझ बेहतर होगी.

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