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बुक रिव्यू: आम चुनाव पर संपूर्ण किताब है 'मोदी Live'

साल 2014 के आम चुनाव और मोदी यह दो मुख्य बिन्दु और हर बिन्दु से जुड़ी अनेकानेक शंकाएं और उनके समाधान सभी कुछ समाविष्ट हैं 'मोदी live' में. देश की स्वाधीनता से लेकर 2014 तक के चुनावों तक के प्रत्येक घटनाक्रम, तत्कालीन राजनीति, राजनैतिक दलों की कार्यप्रणाली सभी को बखूबी उभारा है संजय द्वेदी ने पुस्तक 'मोदी live' में.

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कवर पेज 'मोदी Live'
कवर पेज 'मोदी Live'

किताब का नाम: मोदी live
लेखक का नाम: संजय द्विवेदी
प्रकाशक: मीडिया विमर्श
मूल्य: 25 रुपये

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साल 2014 के आम चुनाव और मोदी यह दो मुख्य बिन्दु और हर बिन्दु से जुड़ी अनेकानेक शंकाएं और उनके समाधान सभी कुछ समाविष्ट हैं 'मोदी live' में. देश की स्वाधीनता से लेकर 2014 तक के चुनावों तक के प्रत्येक घटनाक्रम, तत्कालीन राजनीति, राजनैतिक दलों की कार्यप्रणाली सभी को बखूबी उभारा है संजय द्विवेदी ने पुस्तक 'मोदी live' में.

जन नायक से जन-मानस की अपेक्षाएं, 2014 के चुनाव, नायक का चुंबकीय व्यक्तित्व, उसकी कार्यशैली, जनता की जागरुकता, करवट लेती राजनीति और लोकतंत्र की शक्ति सभी कुछ अति रोचक और प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया गया है 'मोदी live' में. मोदी अनायास ही जनता के नायक नहीं बने बल्कि घटनाक्रम से संजय द्विवेदी ने यह सिद्ध किया है. हर घटनाक्रम पर संजय की पैनी नजर रही है. जनता के साथ सीधा जुड़ाव और उनके मन में उम्मीदों के पूरा होने का विश्वास जगाना आसान नहीं होता. लेखक ने स्पष्ट किया है मोदी के उदाहरण से कि जनतंत्र में यदि नायक की जनता के साथ संवेदनहीनता है तो सत्ता पलटते देर नहीं लगती.

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मोदी जनता से निरंतर जुड़े रहे और यही जुड़ाव उन्हें विजयी बना गया. मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व और संचार माध्यमों का सही इस्तेमाल यही पर्याप्त नहीं थे मोदी को महानायक बनाने के लिए. मोदी के साथ केवल सपने नहीं थे बल्कि उन्हें साकार करने के लिए दृढ़ संकल्प थे और सुनियोजित कार्यशैली भी. संजय द्विवेदी ने बीजेपी, संघ और मोदी पर विशेष दृष्टि रखी है. कोई भी घटनाक्रम संजय की पकड़ से अछूता नहीं रहा है. कांग्रेस की विफलता और उस विफलता के कारणों पर भी बेबाक टिप्पणी की है संजय ने.

संघ और बीजेपी का जुड़ाव और संघ के ही द्वारा नरेंद्र मोदी को नायक के रूप में प्रस्तुत करना अनायास नहीं बल्कि बड़ी कुशलता से संजय ने यह दर्शाया है कि नायक वही होता है जिसके पास दूरदर्शिता होती है और जन-जन की समस्याओं के सामाधान भी. यही कारण था कि बीजेपी की ऐतिहासिक जीत, बीजेपी की नहीं बल्कि मोदी के नाम पर पूर्ण बहुमत से सरकार बनी क्योंकि लीक से हटकर नया और सार्थक कर दिखाने का मोदी में हौसला है.

लेखक संजय द्विवेदी ने देश के विभाजन से लेकर 2009 तक के चुनाव परिणाम और उनके कारण व 2014 के चुनाव में बीजेपी की जीत का निष्पक्ष विश्लेषण किया है. संजय ने स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति विशेष के विरोध में सभी राजनैतिक दलों के एक हो जाने से विजय नहीं मिलती बल्कि जनता के दिल में विश्वास पैदा करने से विजय मिलती है. संसदीय लोकतंत्र को भी लेखक संजय द्विदी ने बखूबी परिभाषित किया है. पंडित नेहरू के समय जहां विरोध मर्यादित था, वहीं आज राजनैतिक विरोध को आलोचना मानकर संसद में अमर्यादित व्यवहार देखने को मिलता है.

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लेखक संजय द्विवेदी ने लोकतंत्र की शक्ति को भी उजागर किया है कि अनेक राजनैतिक दलों के बावजूद भी हम सफल हैं और जन-जन की आवाज को दरकिनार नहीं किया जा सकता. संजय ने वाणी और कर्म में एकता पर विशेष जोर देने की बात की है क्योंकि इसी से जनता के मन में विश्वास पैदा होता है. मीडिया की सहभागिता को लेखक ने विशेष महत्व दिया है. लेखक के अनुसार आज का समय वास्तव में मीडियामय समय है. मीडिया की ही बदौलत हम आज हर राजनीतिज्ञ को जानते और पहचानते हैं. 2014 का चुनाव अगर ऐतिहासिक था तो मीडिया की ही बदौलत. मोदी ने भी अपने एक साक्षात्कार में यह स्पष्ट किया है, 'यदि सोशल मीडिया ना होता तो आम आदमी की क्रिएटीविटी का पता नहीं चलता.'

चुनाव अभियान के प्रत्येक घटनाक्रम पर संजय द्विवेदी की पैनी नजर रही है. एक जागरूक और जिन्दादिल पत्रकार बनकर संजय सामने आए हैं. 'मोदी live' किताब अपने आप में संपूर्ण है, कोई भी घटनाक्रम और राजनैतिक विमर्श संजय की दृष्टि से बच नहीं पाया है. विश्वास है कि संजय द्विवेदी की पुस्तक 'मोदी live' ना केवल प्रत्येक पाठक के मन को झकझोरेगी बल्कि उन्हें सपनों को साकार करने के लिए एक नई दिशा देगी ताकि उनका नायक लोकतंत्र के आकाश में एक ऊंची बहुत ऊंची उड़ान भरकर देश को आगे ले जाए. संजय द्वेदी को शुभकामनाएं.

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