संजय सिन्हा की तीसरी रचना 'समय' अनूठी है. समय की उपादेयता का जैसा वर्णन उदाहरण सहित पुस्तक में उपलब्ध है वह संजय सिन्हा के ही वश की बात है. समय-चक्र गतिमान है उसके साथ चलें तो श्रेयस्कर और यदि पिछड़ गए तो जीवन को आप केवल ढोएंगे उसे जी नहीं पाएंगे. अगर जीने की ललक है तो फिर समय के साथ सामंजस्य बिठाइए और आशातीत सफलता प्राप्त कीजिए. संजय ने अति सरलता से बड़ी बात पुस्तक में स्पष्ट कर दी है कि समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता. अगर आगे बढ़ना है तो समय के साथ कदम मिलाकर आगे बढ़िए वरना जिन्दगी रुक जाएगी और समय आगे निकल जाएगा.
समय-समय पर लेखक संजय सिन्हा के जीवन में घटनाएं घटित होती हैं और उन्हें आगाह कराती जाती हैं कि जीवन में हमें पर्याप्त समय मिलता है हर काम की तैयारी के लिए लेकिन हम संभवत: उसका सदुपयोग नहीं कर पाते और बाद में समय निकल जाने के बाद केवल सोचते ही रह जाते हैं कि अगर दोबारा मौका मिले तो हम छूटे हुए कार्य को पूरी कुशलता के साथ कर सकते थे. लेकिन समय निकल जाने पर हमारे सामने पश्चाताप के अतिरिक्त दूसरा कोई रास्ता नहीं रह जाता. और फिर जो भी प्राप्त हो हम उसे भाग्य मान लेते हैं.
पुस्तक में लेखक संजय सिन्हा ने खुद का और बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान का उदाहरण दिया है यही सिद्ध करने के लिए कि 1988 में दोनों साथ-साथ टहलते थे और एक ने पूरी तैयारी की और जीवन में अस्सी फीसदी पाया और दूसरा सब जानते हुए भी चालीस फीसदी पर रह गया. कारण स्पष्ट है जो पूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ते हैं वह जंग जीत लेते हैं.
समय की गंभीरता को समझना अति आवश्यक है. जिसने पहचान लिया वह समय चक्र के साथ तालमेल बैठा लेता है और जीवन की दौड़ में आगे ही आगे बढ़ता जाता है. 'समय' पुस्तक हमें जीना सिखाती है, हमें अनुशासित होने की प्रेरणा देती है. जीवन में हर पल घटने वाली घटना हमें सोचने पर विवश करती है. बचपन में मां द्वारा सुनाई गई कहानियों को संजय ने जीवन की पाठशाला माना है क्योंकि प्रत्येक कहानी में कोई न कोई संदेश अवश्य छिपा होता है. इन्हीं संदेशों को बड़े होने पर यदि हम अपने जीवन में उतार लें तो व न केवल हम आने वाले संकट को पहले से भांप लेते हैं बल्कि उस संकट से खुद को बचा भी पाते हैं. संजय सिंहा जिन्दगी में रिश्तों को बहुत अहमियत देते हैं. यही बात उनकी पुस्तक 'समय' में भी देखने को मिलती है. संजय के ही शब्दों में "अकेले हम मुस्कुरा सकते हैं लेकिन रिश्तों के बीच हम ठहाके लगाते हैं."
आज आगे बढ़ने की दौड़ में इंसान बहुत अकेला हो गया है. अपने मन की बात किसी से साझा नहीं कर पाता. संजय ने महाभारत के संजय की तरह अपनी पारखी नजरों से यह भांप लिया है कि सुविधा और संचार के सारे कृत्रिम साधनों से 'तन' का हस्तिनापुर हरा-भरा रहेगा लेकिन वह 'मन' का कुरूक्षेत्र हार जाएगा क्योंकि संवाद करने के लिए उसे कोई नहीं मिलेगा. समय रहते रिश्तों की खुशबू पहचान लीजिए क्योंकि रिश्ते होते हैं सदा के लिए. संजय ने छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से कुलीनता और संस्कारों की भी पहचान करा दी है. और यही सीख दी है कि समय का एक ही पल होता है और वह होता है वही पल जिसे आप जी रहे होते हैं. भरोसे में बहुत ताकत होती है इसलिए जीवन में कितने ही उतार-चढ़ाव आएं भरोसा कभी टूटना नहीं चाहिए. संजय बहुत ही आशावादी दृष्टिकोण रखते हैं और समय के हर पल को पूरी तन्मयता से जीते हैं और जीवन की हर घटना के संदेश को जीवन में उतार लेते हैं. संजय की यही सोच उन्हें एक ऐसा व्यक्तित्व प्रदान करती है जो सबसे अलग है. हर व्यक्ति से उनका आत्मीयता का रिश्ता शायद इसीलिए जुड़ जाता है.
मानव जीवन क्षण भंगुर है इसीलिए यह जानने की भी संजय ने वकालत की है कि जो भी संसार में घटित होता है उसका कोई न कोई प्रयोजन अवश्य होता है. यदि यह हम भली-भांति सोच लें तो संभवत: समझ जाएंगे कि समय बड़ा बलवान होता है. समय रहते हुए यदि हम मानव स्वभाव के स्वाभाविक दोषों से अपने को मुक्त कर लें तो खुशियों का संसार हमारे सामने होगा. हमारा 'अहं' समाप्त हो जाएगा और विनम्रता हमें सभी का आत्मीय बना देगी और हम विवेक से नीर और क्षीर को अलग कर पाएंगे. हमारा जीवन में जिससे भी मिलना होता है वह किसी विशेष प्रयोजन से होता है. यह हमारे उपर निर्भर करता है कि ग्रहण क्या करते हैं. संजय ने मन की दृढ़ता पर अधिक जोर दिया है. कमजोर मन से हम जीती हुई बाजी भी हार जाते हैं लेकिन मन का विश्वास हमें कभी हारने नहीं देता.
'समय' को संजय सिन्हा ने बड़ी कुशलता, साफगोई से परिभाषित किया है. यह समय की आंधी ही थी कि इंदिरा गांधी जैसी लौह महिला भी उसका शिकार हो गईं. और उनके कुछ पक्षधर उनके धुर विरोधी बन गए. पर विरोध करते समय यह भी ध्यान रखाना जरूरी है कि विरोध का स्वरूप क्या होगा. यह समय चक्र ही था कि इंदिरा गांधी ने समय के साथ खुद को परिष्कृत किया. और पुन सत्ताशीन हुईं. समय के साथ खुद को मांजना आवश्यक हो जाता है. साथ ही यह भी आवश्यक है कि हम अति विश्वास के शिकार न हों. अन्यथा पतन हमारा ही होगा. ना ही अपने इर्द-गिर्द कोई किसी दृष्ट व्यक्ति को संरक्षण प्रदान करे अन्यथा एक दिन वह हमें ही अपना शिकार बनाएगा.
संजय सिन्हा का दृष्टिकोण बड़ा व्यापक है. हर घटना ने उन्हें एक नई दिशा दी है. प्रेम और धर्म को भी संजय ने बड़ी सरलता से स्पष्ट किया है. मन में ईश्वर के प्रति आस्था ही हमें मनुष्यता प्रदान करती है ऐसा मानना है संजय का. मानव जीवन अनमोल है. हमें दुखों का साहस के साथ मुकाबला करना चाहिए. अगर दुख है तो उसके निवारण का मार्ग भी है. निवारण का उपाय भी संजय ने सुझाया है. समय के साथ अगर आपने सामंजस्य बैठा लिया है तो आपका जीवन सार्थक है. समय के ही संदर्भ में स्विट्जरलैंड का उल्लेख संजय ने किया है. जो न केवल एक बेहद खूबसूरत देश है बल्कि समय का भी पाबंद है. समय की इज्जत से ही आपकी इज्जत है बस उम्मीद कभी मत छोड़िए. जहां उम्मीद है वहीं जीवन है. किसी चीज को शिद्दत से चाहकर देखिए, वह आपको अवश्य मिलेगी.
संजय ईश्वर के प्रति भी बहुत आशावान हैं. उनका मानना है कि जिनके साथ भगवान होते हैं अमोध बाण भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. सच्चाई, ईमानदारी, रिश्तों का महत्व संजय की पहली दोनों किताबों की तरह समय में भी है. बहुत ही कम समय में संजय सिन्हा की ये तीसरी किताब है. तीनों किताबों ने खूब प्रशंसा बटोरी है. इतना तेज लेखन और उसका पाठकों पर सकारात्मक प्रभाव संजय की लेखन प्रतिभा और फेसबुक से रिश्तों को जोड़ने में उनकी सक्रियता को सार्थक बनाता है. हम न कुछ लेकर आए थे न लेकर जाएंगे बस हमारा व्यवहार, हमारी विन्रमता हमारे साथ जाएगी. यही तो सिखाया था संजय को उनकी मां ने. संजय भी मानते हैं कि महिला आपके जीवन में चाहे जिस रूप में हो, उसमें एक मां छुपी ही रहती है.
पुस्तक - समय
लेखक - संजय सिन्हा
प्रकाशक - प्रभात प्रकाशन
मूल्य - 245 रुपये