किताबः द कंट्री इज गोइंग टू द डॉग्स
लेखकः अनुराग माथुर
पब्लिशरः रूपा पब्लिकेशन्स इंडिया
कवरः पेपरबैक
दामः 195 रुपये
देश की राजधानी दिल्ली के बारे में तमाम तरह की कहानियां, किस्से और लोगों के अनुभव हैं लेकिन अब एक लेखक ने इस महानगर का एक नया चेहरा अपने थ्रिलर के माध्यम से दिखलाने की कोशिश की है. यह स्याह चेहरा तमाम बुराइयों को अपने साथ समेटे हुए है. लेखक ने इस थ्रिलर के माध्यम से सच्चाई की परतें उधेड़ दी हैं और बताया है कि यह शहर मुंबई की तरह ही सेक्स और ड्रग के बहुत बड़े रैकेट का हिस्सा बन चुका है. इस थ्रिलर के लेखक हैं अनुराग माथुर जो अपनी पिछली किताब ‘द अनस्क्रूटेबल अमेरिकन’ के कारण सुर्खियों में आए थे. लेकिन इस बार उन्होंने अपने नए थ्रिलर ‘द कंट्री इज गोइंग टू द डॉग्स’ के माध्यम से महानगर में फैले सेक्स और ड्रग के बड़े रैकेट के बारे में बताने का एक साहसिक प्रयास किया है.
इस उपन्यास का मुख्य पात्र है एक रिटायर्ड और विधुर सरकारी अफसर राधे राधे कुमार जो इस शहर में अपने बेटे-बहू से दूर एकाकी जीवन जी रहा है. वह लड़कियों के एक कॉलेज के पास रहता है. अपने घर से वह उन्हें देखता रहता है और बदलते हुए तौर-तरीकों व आधुनिक कपड़ों से चिढ़ता है. उसके शांतिपूर्ण जीवन में एक दिन भूचाल आ जाता है जब कॉलेज की प्रिंसिपल उसे बुलाकर एक अजीबोगरीब काम थमा देती है. यह काम है कॉलेज की पूर्व छात्रा और प्रसिद्ध ऐक्ट्रेस फिफू का चुपचाप पता लगाना जो एक रात एक पार्टी से गुम हो गई थी. इस काम के लिए कॉलेज के ट्रस्टी और डेली टाइम्स अखबार के मालिक गोबर्धन उन्हें धन देते हैं और उन्हें अपने क्राइम रिपोर्टर अनवर से मदद भी दिलवाते हैं.
इस काम को हाथ में लेने के बाद तो राधे राधे यानी आरआर की जिंदगी ही बदल गई. वह एक शौकिया प्राइवेट डिटेक्टिव की भूमिका निभाने निकल पड़े. इस अनोखे और रोमांचक अभियान में उनका साथ देते हैं अनवर, जो डेली टाइम्स अखबार के क्राइम रिपोर्टर हैं और इस कारण से वह बहुत ही महत्वपूर्ण लोगों से जुड़े हुए हैं. यहां से आरआर चरणबद्ध तरीके से फिफू की तलाश में निकल पड़ते हैं. अपनी इस रोमांचक यात्रा में वह एक नई दुनिया और नया भारत देखते हैं. इस काम में उनके सहयोगी अनवर इस नई काली दुनिया के नए पहलुओं से उन्हें रूबरू कराते हैं जिसे देखने के बाद राधे राधे के मुंह से भी निकल पड़ता है- द कंट्री इज गोइंग टू द डॉग्स यानी देश नरक में जा रहा है.
अपनी यात्रा के दौरान वह पुलिस वालों, हत्यारों, दलालों, वेश्याओं, हिजड़ों, कॉल गर्ल्स, गे, लेस्बियन्स और आखिर में ड्रग के विदेशी व्यापारियों से मिलते हैं. यानी इस महानगर में चल रहे तमाम तरह के सेक्स रैकेट और काले धंधों से वह रूबरू होते हैं. देखते हैं कि कैसे समाज में कितना बदलाव आया है और सेक्स रैकेट किस तरह से फल-फूल रहे हैं. उन्हें यह देखकर सदमा लगता है कि कैसे वाइफ-स्वैपिंग जैसी खतरनाक बीमारी महानगर में फैल गई है, जो परिवारों को नष्ट कर रही है. एक रिटायर्ड सरकारी अफसर के लिए यह अनुभव न केवल हैरान कर देने वाला था बल्कि जबर्दस्त शॉक देने वाला भी था. लेकिन उन्हें सबसे बड़ा धक्का तो तब लगता है जब उन्हें फिफू जी मिल जाती हैं जिनकी तलाश में वह न जाने किन गलियों की खाक छानते फिरे. लेकिन उसके पहले उन्हें ड्रग के विदेशी सौदागरों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें पुलिस का मुखबिर समझकर ड्रग के इंजेक्शन लगाकर बेहोशी की हालत में छोड़ जाते हैं. होश में आने के बाद रहस्य की परतें खुलने लगती हैं और एक नया ड्रामा सामने आता है कि फिफू दरअसल पाकिस्तान जा पहुंची थी. जहां उसने एक राजनीतिक ड्रामे में बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा निभाया और उसके उस ड्रामे के कारण ही देश की हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी चुनाव में पराजित हो गई. यह उपन्यास का कमज़ोर पहलू है क्योंकि इस पर सहज रूप से विश्वास नहीं होता.
आरआर का क्राइम की इस काली दुनिया का रोमांचक सफर बहुत ही दिलचस्प और चौंकाने वाला है. बहुत से लोगों को शायद यकीन न हो लेकिन यह सच है कि दिल्ली का चरित्र बहुत बदल गया है. लेखक ने बहुत ही आसान तरीके और सरल भाषा में इस प्लॉट को सुलझाने की कोशिश की है. इस कहानी में प्रवाह है और वह तेजी से आगे बढ़ती है. लेखक ने हर एपिसोड को बांधकर रखने की कोशिश की है और किसी को भी अनावश्यक रूप से लंबा खिंचने नहीं दिया है. एक अच्छे थ्रिलर की तरह इसमें लेखक ने पात्रों को बांधकर रखा है. आरआर को बदली हुई दुनिया का यह रूप दंग कर देता है. इस यात्रा में वह खुद सेक्स की फैंटेसियों से गुजरने तक लग जाते हैं. फिफू की तलाश में उनका हर पड़ाव उन्हें एक नए रहस्य का पर्दा उठाने को विवश कर देता है जिसे जानने के बाद वह हैरत से भर जाते हैं. उन्हें इस रोमांचक यात्रा में साथ देने वाला अनवर सब कुछ जानते हुए भी चुप रहता है. उसकी पीड़ा है कि इस देश में मुसलमानों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है लेकिन इसके बावजूद वह बहुत दुखी नहीं होता है और अपने काम में पूरी शिद्दत से लगा हुआ है.
रूपा पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास थ्रिलर को पसंद करने वालों के लिए काफी दिलचस्पी का विषय हो सकता है. इसकी पूरी कहानी तेज गति से चलती है, बस अंत थोड़ा अस्वाभाविक लगता है क्योंकि एक क्राइम और सेक्स थ्रिलर का अंत राजनीतिक जैसा हो तो बात हजम नहीं हो पाती है. बहरहाल यह उपन्यास उन्हें जरूर पसंद आएगा जो इस तरह के थ्रिलर पसंद करते हैं.