किताब: द डेथ अॉफ मिताली दत्त्तो (इंग्लिश फिक्शन)
लेखक: अनिर्बान बोस
कीमत: 350 रुपये
एडिशन: पहला, पेपरबैक
पेज: 314
पब्लिशर: हार्पर कॉलिन्स
अनिर्बान बोस की कहानियां ज्यादा खूबसूरत हो जाती हैं, अगर वो कहानी मेडिकल पेशे, अस्पतालों और डॉक्टरों से जुड़ी हुई हो. अनिर्बान बोस खुद डॉक्टर हैं, ऐसे में वो पेशे से जुड़े जरूरी पहलुओं को अच्छे से समझते हैं. डॉक्टरी पेशे से जुड़ी चुनौतियों, सफलताओं, भावनाओं के इर्द-गिर्द ही 'द डेथ ऑफ मिताली' की कहानी घूमती है.
अनिर्बान की बॉम्बे रेन्स, बॉम्बे गर्ल्स और माइस इन मैन नॉवेल को पढ़ने के बाद अनिर्बान की लेखनी की काबलियत को लोग जान गए हैं. अनिर्बान में पाठकों को बांधे रखने और सरप्राइज देने की विचित्र कला है. बॉलीवुड फिल्मों की तरह अनिर्बान की कहानियों में भी अचानक ट्विस्ट आ जाता है. नॉवेल के मुख्य किरदार डॉ. नील देव रॉय अमेरिका छोड़कर दिल्ली के अस्पताल अडेलफिया हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर को ज्वाइन करते हैं. नील एक आदर्शवादी युवा सर्जन हैं, जिसने जिंदगी को जीने के लिए कुछ उसूल बनाए हैं. इन आदर्शों से नील कभी भी पीछे नहीं हटता है.
आदर्शों के बीच जीते हुए नील को अस्पताल में तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. परिस्थतियों का सामना करते हुए नील अस्पताल अथॉरिटी, राजनेताओं, डॉक्टरों के खिलाफ सच की लड़ाई लड़ता है. अस्पताल में आए ब्रेन डेड के एक केस में मिताली दत्तो नाम की बच्ची के फीस न चुकाए जाने पर नील को मिताली के पक्ष में लड़ते हुए दिखाया गया है. इस मरीज को अस्पताल में फीस न दिए जाने पर मरीज को मारने की भी कोशिश की जाती है.
पिता से मिले आदर्शों, स्वभाव और दृढ़ संकल्प को नील अस्पताल में सर्जरी के अलावा निजी जिंदगी में भी फॉलो करता है. जिंदगी और अस्पताल में जब परिस्थितियां बिगड़ने लगती हैं तो नील इसके खिलाफ आवाज उठाता है.
नॉवेल में अनेस्थीसिया, सर्जरी और मेडिकल से संबंधित बातों को समझाने में नॉवेल अपनी गति खो देता है. बहरहाल, नॉवेल की दिलचस्प कहानी आम जिंदगी के सच समेटे हुए है. नॉवेल की पढ़ना रोचक इसलिए भी है, क्योंकि यह कहानी बताती है कि कैसे डॉक्टर को कई बार अपनी जान को जोखिम में डालकर कठिन फैसले लेने पड़ते हैं.
किताब के आखिर में कहानी पाठक को अच्छे-बुरे और सही-गलत के बीच जीतने के एहसास और विवेक के साथ छोड़ जाएगी.