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बुक रिव्‍यू: द इलिसिट हैपिनेस ऑफ अदर पीपल

अपने पहले ही नॉवल 'सीरियस मेन' के लिए कई सारे पुरस्‍कार जीतने वाले मनू जोसेफ की यह दूसरी किताब 'द इलिसिट हैपिनेस ऑफ अदर पीपल' डार्क कॉमेडी और ट्रैजिडी से भरपूर एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है.

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द इलिसिट हैपिनेस ऑफ अदर पीपल का कवर
द इलिसिट हैपिनेस ऑफ अदर पीपल का कवर

किताब: द इलिसिट हैपिनेस ऑफ अदर पीपल (अंग्रेजी)
लेखक: मनू जोसेफ
प्रकाशक: हार्पर कॉलिन्‍स
एडिशन: हार्ड बाउंड (कुल पन्‍ने: 352)
कीमत:
499
अपने पहले ही नॉवल 'सीरियस मेन' के लिए कई सारे पुरस्‍कार जीतने वाले मनू जोसेफ की यह दूसरी किताब 'द इलिसिट हैपिनेस ऑफ अदर पीपल' डार्क कॉमेडी और ट्रैजिडी से भरपूर एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है. कॉमेडी, ट्रैजिडी, रहस्‍य और रोमांच का डेडली कॉम्बिनेशन ही इस नॉवल की खासियत है. इस नॉवल में भरपूर सस्‍पेंस है जो आपको अपने साथ बांधे रखेगा और यही वजह है कि यह मेरी पसंदीदा किताबों में से एक बन गई है.

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1980 के मद्रास की पृष्‍ठभूमि में लिखे गए इस नॉवल के केंद्र में है उन्‍नी चाको, जो कहानी के शुरू होने से पहले ही मर चुका है. 17 साल का उन्‍नी दुनिया के प्रति अपनी समझ और सच की तलाश को कार्टून बनाकर जाहिर करता है. लेकिन एक दिन उन्‍नी अपनी बिल्डिंग से कूदकर आत्‍महत्‍या कर लेता है. वह अपने पीछे न तो कोई सुसाइड नोट छोड़ता है और न ही किसी करीबी को उसके इस कदम के बारे में कुछ पता होता है.

उन्‍नी की मौत के तीन साल बाद उसके शराबी और पेशे से असफल पत्रकार पिता के हाथ उसकी एक कॉमिक्‍स लगती है, जिसके बाद वह फिर से उन्‍नी की आत्‍महत्‍या का रहस्‍य सुझलाने में जुट जाता है. उसके दिमाग में हर समय एक ही सवाल घूमता रहता है कि आखिर उन्‍नी ने खुद को क्‍यों मारा. जैसे-जैसे नॉवल आगे बढ़ता है पाठक उन्‍नी की जिंदगी, उसके विचारों, उसके दोस्‍तों, उसके बनाए हुए बेहतरीन कार्टून्‍स और आखिर में उसकी मौत की वजह से रू-ब-रू होते हैं.वहीं, उन्‍नी की मां मरियम्‍मा को एक ऐसी महिला के तौर पर दिखाया गया है जो अपने बच्‍चों से बेहद प्‍यार करती है. लेकिन बचपन में हुए एक हादसे की वजह से उसका बर्ताव थोड़ा सा अजीब हो जाता है. वह अकसर रसोई की पीली दीवारों से बात करती है और अपनी फ्रस्ट्रेशन निकालती है. मरियम्‍मा चर्च की मदद से घर के लिए राशन का इंतजाम करती है और खाली वक्‍त में अपने पति यानी कि ऑसेप चाको की मौत की योजना बनाती है.

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उन्‍नी का एक छोटा भाई भी है, जिसका नाम है थोमा. थोमा उम्र के उस दौर से गुजर रहा है जब हर लड़का जल्‍दी से बड़ा होकर ढेर सारे पैसे कमाना चाहता है. वह बड़ा घर, बड़ी गाड़ी और सुंदर सी बीवी के सपने देखता है. थोमा का कैरेक्‍टर काफी मजेदार है और वह पड़ोस में रहने वाली ब्राहम्‍ण लड़की मिथिली से प्‍यार करता है, जो उम्र में उससे बड़ी है. नॉवल में जब भी थोमा का जिक्र आता है पाठक हंसे बिना नहीं रह सकते.

लेखक मनू जोसेफ ने उन्‍नी के चरित्र को उसके दोस्‍तों, स्‍कूल टीचर, न्‍यूरोसाइंटिस्‍ट डॉक्‍टर आयंगर, मरियम्‍मा, थोमा और मिथिली के शब्‍दों में बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया है. उन्‍नी जिंदा तो नहीं हैं, लेकिन फिर भी पाठक को उससे प्‍यार हो जाता है. इस नॉवल की एक खास बात यह भी है कि मन्‍नू जोसेफ ने दिमाग के मनोविज्ञान को समझाने के लिए काफी रिसर्च की है. हालांकि यह काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन इस वजह से कहानी कई बार खिंची हुई सी लगती है.

कहानी में कई गूढ़ मनोवैज्ञानिक बातें है, लेकिन निजी तौर पर मेरे लिए छोटी-छोटी चीजें ज्‍यादा मायने रखती हैं. कहानी के दौरान एक बार ऑसेप चाको अपने बेटे के दोस्‍त से मिलता है, जो उसे उन्‍नी के बारे में बताना शुरू करता है. तभी ऑसेप मन में सोचता है कि उसे अपने ही बेटे को जानने के लिए किसी और की मदद लेनी पड़ रही है. उसका मन अपने बेटे के लिए मचल उठता है. उसे याद नहीं आता कि उसने कब अपने बेटे को गले लगाया था. लेकिन उस वक्‍त वह अपने बेटे को गले से लगाना चाहता है, उसे चूमना चाहता है. पूरे नॉवेल में ऑसेप भले ही एक गैर-जिम्‍मेदार और बेफिक्र पिता के रूप में नजर आया हो, लेकिन यहां पर पाठक को उसके प्रति सहानुभूति होने लगती है.

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इस नॉवल में लेखक ने केरल की खूबसूरती और मद्रास के मोहल्‍ले की छोटी-बड़ी बातों को बहुत बारीकी से पेश किया है. एक-एक शब्‍द में इतनी जान है कि ऐसा लगता है मानो सब कुछ आपके सामने ही हो रहा हो और आप किसी कोने में मूकदर्शक बनकर खड़े हों.

बहरहाल, आखिर में उन्‍नी की मौत से पर्दा उठता है. कहानी का अंत जानकर आप हैरान रह जाएंगे. अगर मैं अपनी बात करूं तो जब मैंने यह नॉवल खत्‍म किया तो उन्‍नी की मौत की वजह पढ़कर लगा कि मुझे एक बार और यह नॉवल पढ़ना चाहिए.

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