किताब: द सुनील गावस्कर ओमनिबसः सनी डेज, आइडल्स, वन डे वंडर्स
प्रकाशन: रूपा पब्लिकेशन
लेखक: सुनील गावस्कर
कीमत: 395 रुपये
कवर: पेपरबैक
2015 क्रिकेट वर्ल्ड कप चल रहा है और यह क्रिकेट के चाहने वालों के लिए लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर की तीन किताबें एक साथ पढ़ने का बेहतरीन मौका भी है. सुनील गावस्कर की तीन किताबें रूपा पब्लिकेशन एक कथासंग्रह के रूप में लेकर आया है. इसमें गावस्कर की तीन लोकप्रिय किताबें ‘सनी डेज’, ‘आइडल्स’ और ‘वन डे वंडर्स’ शामिल की गई हैं.
जहां सनी डेज़ के पन्नों पर गावस्कर ने बचपन से लेकर अपने पूरे क्रिकेट करियर को क्रमवार उकेरा है. वहीं ‘आइडल्स’ को उन्होंने दुनिया भर के 31 अपने समकालीन क्रिकेटरों को समर्पित किया है. तो ‘वन डे वंडर्स’ टीम इंडिया की सबसे यादगार वन डे जीत का शानदार संग्रह है.
सन्नी डेज़
इस किताब की यह खासियत है कि ये सिर्फ क्रिकेट के मैदान से जुड़ी घटनाओं का संकलन न हो कर उनके जीवन से जुड़े कई पहलुओं को बयां करती है. इसके पहले पन्ने पर ही गावस्कर ने अपने
जीवन की सबसे विचित्र घटना का जिक्र किया है. यह घटना उनके जन्म से जुड़ी है. गावस्कर जन्म के अगले दिन ही अस्पताल के कर्मचारियों की वजह से एक मछुआरन मां के बच्चे से बदल गए.
गावस्कर ने इस घटना पर आगे लिखा कि क्या होता अगर वो तब वापस नहीं मिले होते!
हालांकि अपने कवर ड्राइव की टाइमिंग के लिए जाने जाने वाले गावस्कर की इस किताब के प्रकाशन के मामले में थोड़े कच्च रह गए. जब इस किताब का प्रकाशन किया गया तब वो सर डॉन ब्रैडमैन के 29 शतकों के रिकॉर्ड की बराबरी करने की दहलीज पर थे. वेस्टइंडीज के खिलाफ अगली सीरीज खेली जानी थी और इसी दौरान उन्होंने न केवल अपनी सर्वश्रेष्ठ टेस्ट पारी (नाबाद 236 रन) खेलते हुए इसकी बराबरी की बल्कि अगले ही टेस्ट में इस रिकॉर्ड को तोड़ भी डाला. इस सीरीज के 6 टेस्ट मैचों में उन्होंने 50.50 की औसत से 505 रन बनाए. सीरीज में उनके इस शानदार प्रदर्शन की बदौलत उनके किताब की बिक्री काफी बढ़ गई.
क्रिकेट की ही तरह गावस्कर लेखन कला में भी बहुत निपुण हैं यह उन्होंने अपनी इस पहली किताब आत्मकथा सनी डेज में बखूबी बता दिया.
आइडल्स
पहली किताब सनी डेज की सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने अगली किताब ‘आइडल्स’ लिखी. नाम के अनुसार गावस्कर ने इसमें तात्कालिक बेहतरीन क्रिकेटरों का व्यक्तिगत आंकलन किया. इस किताब
का प्रत्येक अध्याय एक क्रिकेटर को समर्पित है. इसमें इंग्लैंड से ज्योफ बायकॉट, डेरेक अंडरवुड, एलेन नॉट, इयान बॉथम और जॉन स्नो शामिल किए गए हैं. ऑस्ट्रेलिया से डेनिस लिली, ज्योफ थॉमसन,
रोडनी मार्श और चैपल बंधुओं को जगह दी गई है. पाकिस्तान से जहीर अब्बास, जावेद मियांदाद, आसिफ इकबाल और इमरान खान हैं. जबकि वेस्टइंडीज से सर गैरी सोबर्स, रोहन कन्हाई, एंडी राबर्ट्स
और क्लाइव लॉयड जैसे क्रिकेटर हैं.
यहां यह बात हैरान करने वाली है कि जहां विदेशी टीमों से अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को उन्होंने जगह दी वहीं जिन 10 भारतीय क्रिकेटरों को उन्होंने अपनी इस किताब में रखा उनमें से केवल आठ ही टेस्ट मैच खेल सके. आठ टेस्ट प्लेयर्स स्पिन तिकड़ी बेदी, प्रसन्ना और वेंकटराघवन के साथ अपने बहनोई गुंडप्पा विश्वनाथ, कपिल देव, मोहिंदर अमरनाथ और सयैद किरमानी उनकी इस प्रतिष्ठित किताब में जगह बना सके. जबकि किताब में शामिल आश्चर्यचकित करने वाले दो क्रिकेटर बॉम्बे के पद्माकर शिवालकर और हरियाणा के राजिंद्र गोयल है.
वैसे सही मायने में इस किताब के कंटेंट में नया कुछ भी नहीं था. यानी जो कुछ भी लिखा गया उसमें क्रिकेट की दुनिया को हिला कर रख देने की क्षमता नहीं थी. गावस्कर ने इस किताब में शामिल प्रत्येक खिलाड़ी की बतौर व्यक्ति और क्रिकेटर दोनों ही रूप में प्रशंसा की है. हालांकि इस किताब में उन्होंने अपने क्रिकेट जीवन के सबसे विवादास्पद घटना का भी जिक्र किया है. यह घटना 1980 में खेले गए मेलबर्न टेस्ट की है जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वो मैदान छोड़ कर चले गए थे. गावस्कर ने किताब में इस पूरी घटना का जिक्र किया.
वो लिखते हैं, ‘जब लिली की गेंद पर मुझे आउट देने के निर्णय को अंपायर ने नहीं पलटा तो मुझे बहुत गुस्सा आया क्योंकि बॉल मेरे बल्ले के भीतरी किनारे को लेने के बाद पैड पर लगी थी.’ उन्होंने आगे लिखा, ‘जब मैं चेतन (चौहान) के पास से गुजर रहा था तब मैंने लिली को उनके एक अपशब्द कहते सुना. इसे सुनते ही मैंने अपना आपा खो दिया और चेतन को मेरे साथ मैदान से बाहर ले आया.’
हालांकि गावस्कर ने यह स्वीकार किया, ‘यह उनके जीवन की सबसे अफसोसजनक घटना थी. आज मैं यह महसूस करता हूं कि तब मेरे व्यवहार का वो कोई सटीक कारण नहीं था और एक खिलाड़ी और टीम के कप्तान के रूप में मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था.’
वन डे वनडर्स
सुनील गावस्कर की यह किताब ऑस्ट्रेलिया में खेली गई बेंसन हेजेस सीरीज के दौरान फील्ड एक्शन के साथ ही इस दौरान हुई विभिन्न घटनाओं का बेहतरीन संकलन है. गावस्कर ने इस किताब को इस
ढंग से लिखा है कि आप इसे बार-बार पढ़ने को विवश हो उठेंगे. इसे पढ़ना शुरू करने के साथ ही साथ ही आप इसमें खो जाएंगे. जिन लोगों ने गावस्कर को क्रिकेट खेलते देखा है या आज की तारीख में
इंटरनेट पर उसके वीडियो देखें हैं इस किताब को पढ़ते समय उन्हें ऐसा जरूर लगेगा कि टीम इंडिया उनकी आंखों के सामने ही खेल रही है.
गावस्कर ने इस किताब में इस बात का जिक्र किया है कि कैसे हमारे देश में कस्टम डिपार्टमेंट विदेशी क्रिकेटरों को वरीयता देती है और उनके पासपोर्स पहले चेक किए जाते हैं जबकि भारतीय टीम के खिलाड़ियों को विदेशों में इंतजार करना पड़ता है.
गावस्कर ने कई मजेदार पलों को भी इसमें समेटा है. उन्होंने दौरे पर विकेटकीपर सदानंद विश्वनाथ कैसे चीज़ को सेलोफैन रैपर के साथ ही खा लेते थे इसका बहुत ही शानदार वर्णन किया है. एक और मजेदार घटना उस मैच की है जो न्यूजीलैंड के खिलाफ खेला गया. इस मैच में स्लॉग ओवर्स के दौरान न्यूजीलैंड के बैट्समैन ब्रूस ब्लेयर ने बॉल को बहुत ऊंचा दे मारा, श्रीकांत ने उस आसान कैच को ड्रॉप कर दिया. अगली गेंद पर ब्रूस ने फिर कैच उछाला, गेंद फिर श्रीकांत के पास गई लेकिन श्रीकांत इस बार भी चूक गए. तब कप्तान गावस्कर ने गुस्से में श्रीकांत को मैदान के दूसरे सिरे पर भेज दिया. ठीक अगली गेंद पर फिर ब्रूस ने गेंद को फिर दे मारा और गेंद फिर श्रीकांत के पास ही पहुंची लेकिन इस बार नहीं चूके.
इस किताब में शारजाह में खेली गई 1985 चैंपियंस ट्रॉफी के उस फाइनल मैच का भी जिक्र है जिसमें इमरान खान के 14 रनों पर 6 विकेट की बदौलत टीम इंडिया 126 पर ऑल आउट हो गई थी और फील्डिंग करने के लिए उतरते समय कप्तान कपिल देव ने कहा, ‘चलों उन्हें लड़ने के लिए मजबूर करें.’ इसके बाद टीम इंडिया ने पूरी पाकिस्तानी टीम को 87 रनों पर ऑल आउट कर दिया.
इस किताब आज भी क्रिकेट के चाहने वालों के बीच बहुमूल्य धरोहर के रूप में लोकप्रिय है. ‘टीम भावना के साथ कैसे खेलें’ इसकी बहुत ही अनुपम गाइड को मैं सभी क्रिकेट फॉलोअर्स को पढ़ने के लिए सलाह देता हूं.