किताब का नाम: क्लीन चिट
लेखकः योगिता यादव
प्रकाशकः भारतीय ज्ञानपीठ
कीमतः 180 रुपये
स्त्री को केंद्र में रख रची गई ये कहानियां पढ़ने में आसान, लेकिन गहरे तक छूने वाली हैं. कहानीकार योगिता यादव के इस कहानी संग्रह के विषय विशिष्ट हैं. स्त्री को केंद्र-बिंदु मानकर अधिकतर कहानियों के विषय उसी का अंदाज बयान करते हैं, लेकिन ये विषय आम कहानियों की तरह नहीं हैं. स्त्री के अंतर्मन की उथल-पुथल और उसी कशमकश में उसके साहसिक चरित्र को बड़ी सहजता के साथ उकेरा गया है. प्रस्तुत कहानियों में कनेक्शन पॉइंट भी है और जिस शैली में इन्हें लिखा गया है, वह समझने और पढ़ने दोनों में काफी सहज है.
कहानी 'कतअ ताल्लुक' में खुर्शीद अपने परिवार से ताल्लुक न रखने वाले मौलवी के फरमान की धज्जियां उड़ा देती है. ये पंक्तियां स्त्री के अस्तित्व को बयान करती हैं, 'जिन होंठों ने उसे देखकर कभी सुब्हान अल्लाह नहीं कहा था, आज उसकी चाल और प्रतिरोध पर फब्तियां कसने के अलावा कुछ नहीं कर सके.' नेपथ्य को अलग ही श्रेणी में रखा जा सकता है. स्वतंत्र भारत की कल्पना को इसमें खूबसूरती से रेखांकित गया है, लेकिन लगभग नाटकीय अंदाज में.
'पायल' मार्मिकता का पुट लिए हुए है. वैवाहिक जीवन की जो कल्पना कथा की नायिका स्नेह ने की थी, वह जल्द टूट जाती है. पायल की रुनझुन पर मर-मिटने वाली स्नेह ने हालात से समझौता किया और पायल ही पांव से उतार दी. उसका दर्द कुछ यूं बयान होता है, 'स्नेह नीचे उतरी, अपने कमरे में दाखिल हुई और अपनी सबसे पसंदीदा पायल खोलकर चुपचाप अलमारी में रख दी...'
साल 1984 के दंगों पर लिखी 'क्लीन चिट' आतंक के साथ-साथ पारिवारिक संबंधों के झूठे दिखावे को भी उजागर करती है. कहानी का अंत 1984 के दंगों में दो और लोगों को दी गई क्लीन चिट से होता है और झकझेर देता है कि कैसे एक घटना के बीत जाने के बाद भी उसका साया पीछा नहीं छोड़ता. 'ग्रह टल गए' कहानी इस सत्य को व्यक्त करती है कि हम चाहे कितने भी शिक्षित क्यों न हो जाएं, अंधविश्वास हमारा पीछा नहीं छोड़ता.
'क्लीन चिट' की हर कहानी समाज की सच्चाई से पाठकों को रूबरू कराती है. 'भेड़िया' कहानी बेटियों की सुरक्षा के लिए मन में छिपे डर को जाहिर करने के साथ समाज की सच्चाई का आईना भी दिखाती है. इन कहानियों में लेखिका का पत्रकार भी नजर आता है इसलिए कहानियों की डिटेलिंग मजेदार है.
भले ही यह योगिता का पहला कहानी संग्रह है, लेकिन साहित्य जगत के लिए यह पहला प्रयास अपार संभावनाओं से परिपूर्ण है. भाषा और शिल्प की दृष्टि से भी संग्रह अनूठा है. लेकिन यह भी सच है कि बहुत से उभरते कहानीकार टिमटिमाते जुगनुओं की तरह लुप्त हो जाते हैं. उम्मीद करें, योगिता अपवाद सिद्ध हों.