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बुक रिव्यूः कामनाओं की लाश पर बैठ जीवन की शवसाधना करती मीरा

पाठक मीरा की कहानी के बीहड़ में घुसने को आतुर हो जाता है. मीरा, गुजरात के एक पारंपरिक परिवार की लड़की. पिता से डरती. मां से चिपटती और भाई में अपना दोस्त तलाशती. मगर पारंपरिकता के तार तब उलझने लगते हैं, जब यही मीरा अपने भाई कार्तिक के साथ देह की शुरुआती पहेलियां सुलझाने की कोशिश करती है.

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Sita's Curse
Sita's Curse

किताबः सीताज कर्स (सीता का श्राप)
भाषाः इंग्लिश
लेखिकाः श्रीमोई पियू कुंडू
पब्लिशरः हैचेट इंडिया
कीमतः 350 रुपये (पेपरबैक एडिशन)

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अक्सर आप किताबें खोजते हैं. कई बार किताबें आपको खोजने की साजिश रचती हैं. खूबसूरत, अलहदा साजिश. सिलसिला कुछेक हफ्ते पहले शुरू हुआ. विचारों के दंगल वाली हमारी इंग्लिश वेबसाइट डेली ओ पर एक आर्टिकल पढ़ा. एक लड़की की कहानी. जो बुल्टू को बताती है कि वह उसे नंगा क्यों नहीं देख सकती. ये बिल्कुल अलग था. परंपरागत लेखन से, तथाकथित तमीज और तहजीब से. खालिस आदिम, अट्टहास से भरा, जंगल सा बीहड़ और इसी वजह से बेहद असल आर्टिकल. राइटर का नाम था श्रीमोई पियू कुंडू. उत्सुकता जगी, तो जानकारी जुटाई. फिर पता चला कि इन्हीं मोहतरमा ने सीताज कर्स भी लिखी है. नजर के फेर से कुछेक बार गुजरी थी ये किताब. नाम के चलते जेहन भी अटका सा था. मगर फिर बात आई गई हो गई थी. मगर भला हो बुल्टू लेख का, किताब पढ़ने का संयोग आ गुजरा.

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बहरहाल, अब बात किताब पर. इसकी शुरुआत भारतीय संदर्भों में सनसनीखेज है. फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे की याद दिलाती. एक निम्न मध्यवर्ग परिवार की महिला, सुबह सवेरे, अपने बेडरूम में हस्तमैथुन कर रही है. एक काश सी याद से चोटिल हो खुद को सहलाती. और फिर दरवाजे पर उसके पति और सास की चोट और आवाज टकराती है.

इस प्रस्तावना के बाद पाठक मीरा की कहानी के बीहड़ में घुसने को आतुर हो जाता है. मीरा, गुजरात के एक पारंपरिक परिवार की लड़की. पिता से डरती. मां से चिपटती और भाई में अपना दोस्त तलाशती. मगर पारंपरिकता के तार तब उलझने लगते हैं, जब यही मीरा अपने भाई कार्तिक के साथ देह की शुरुआती पहेलियां सुलझाने की कोशिश करती है. मगर फिर एक हादसा घटता है और कार्तिक एक टीस भरी याद बनकर उसकी यौनिकता, उसके अनुभवों से चिपट जाता है. जब तब जोंक की तरह अपने हिस्से का खून चूसता.

मीरा एक बार फिर नए सिरे से जिंदगी को सहलाना शुरू करती है. फिर उसकी शादी हो जाती है मुंबई में रहने वाले एक युवक मोहन के साथ. मगर शादी के बाद भी मीरा की दुनिया के हिचकोले खत्म नहीं होते. मोहन अपनी महाधार्मिक मां, भाई बंसी और उसकी पत्नी वृंदा के साथ मुंबई में रहता है. मीरा इन लोगों के बीच अपनी जगह बनाने की कोशिश करती है. लेकिन उसका पति मोहन तो एक विचित्र किस्म की यौन ग्रंथि का शिकार है. वह अपनी दैहिक जरूरतों के लिए तो तत्पर है. मगर मीरा को वह हमेशा अधूरा अतृप्त ही छोड़ देता है. जिस्मानी तौर पर भी और दिमागी तौर पर भी. इन्हीं सबके बीच मीरा को उसकी सास अपने गुरु के हवाले कर देती है. यहां मीरा को एक अलग ही लोक के दर्शन होते हैं.

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इन सबके बाद जब मीरा की जिंदगी कुछ पटरी पर आती दिखती है, तभी फिर एक हादसा हो जाता है और सब कुछ उलट पलट. इसके बाद मीरा भी अपने तईं खुशियां खोजने निकल पड़ती है. सीताज कर्स सिर्फ एक औरत की यौन आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति भर नहीं है. यह हमारे समाज के दोहरे रवैये की पोल खोल है. यह किताब कई जगह बेहद हिम्मत के साथ हमारी छद्म नैतिकता को आंखें तरेर बयान देती है, सवाल पूछती है, ठहाके मारती है. और इसीलिए इसका नाम सीताज कर्स रखा गया है. तमाम तरहों से अच्छा बने रहने के बावजूद आखिर में ठोकर खाना. दुत्कार पाना. अपनी कामनाओं की लाश पर बैठ जीवन की शवसाधना करना.

लेखिका श्रीमोई पियू कुंडू ने पूरे नॉवेल में एक अदृश्य तनाव को बनाए रखा है. केंद्रीय किरदारों के नाम मीरा और मोहन भी इसी का नतीजा हैं. इसके अलावा उन्होंने बारीक ब्यौरों के जरिए सीन को आंखों के सामने सशरीर खड़ा करने में भी कामयाबी पाई है. पहले उपन्यास के हिसाब से ये सारी कोशिशें बिलाशक जबर तारीफ की हकदार हैं. नॉवेल की भाषा भी सरल है. हिंदी के पाठक भी इस उपन्यास को बिना हिचक उठा सकते हैं. आसाराम प्रकरण और मुंबई की बाढ़ का कहानी में अच्छा इस्तेमाल किया गया है.

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किताब में कुछ चीजें और भी बेहतर हो सकती थीं. मसलन, इसकी लंबाई कुछ कम रखी जा सकती थी. उत्तरार्ध में पाठक अंत तक पहुंचने के लिए कुछ अधीर हो सकता है. गुरु के साथ संसर्ग या फिर सेक्स चैट जैसी तमाम बातें कथानक का हिस्सा है, मगर कई बार वे फिफ्टी शेड्स की तरह ही लंबी खिंचती लगती हैं. सीताज कर्स की मीरा से आपको जरूर मिलना चाहिए. मीरा, हमारे आसपास की लड़की. पारंपरिक ढंग से पाली पोसी गई. देह, प्रेम, शादी और संबंध को लेकर तमाम कामनाओं और डरों से रची पगी बनी.

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