scorecardresearch
 

बुक रिव्यूः 'स्वाहा' होने की कगार पर खड़ी दुनिया को बचाने की जंग

वेस्टलैंड से छपी प्रतीक कामत की किताब भी भारतीय मिथकों पर आधारित है. यह मानवता को बचाने की जंग है. इस कहानी की नायक एक 19 साल की लड़की है. जो देवतों की मदद से मानव जाति के अस्तित्व की रक्षा करती है.

Advertisement
X
'स्वाहा' का मुखपृष्ठ
'स्वाहा' का मुखपृष्ठ

किताबः स्वाहा
लेखकः प्रतीक कामत
प्रकाशकः वेस्टलैंड
कवरः पेपरबैक
मूल्यः 350 रुपये

Advertisement

पूरी दुनिया के आस्थावान किसी ना किसी सर्वशक्तिमान में विश्वास रखते हैं और पूजते हैं. भारतीय पुराणों में सर्वशक्तिमान देवताओं का जिक्र आता है, जो समय समय़ पर मानवता और पृथ्वी को बचाते हैं. वेस्टलैंड से छपी प्रतीक कामत की किताब भी भारतीय मिथकों पर आधारित है. यह मानवता को बचाने की जंग है. इस कहानी की नायक एक 19 साल की लड़की है. जो देवतों की मदद से मानव जाति के अस्तित्व की रक्षा करती है.

प्रतीक कामत लेखक और कलाकार (किस तरह के कलाकार है, इसका जिक्र उनके परिचय में नहीं है) है. उन्होंने अपना करियर म्यूजिक संवाददाता के रुप में शुरू किया था और आजकल वे एक एडवरटाइजिंग एजेंसी के लिए क्रिएटिव राइटर के बतौर काम कर रहे हैं.

'स्वाहा' की कहानी में सोमाली डाकू हैं जिन्होंने 'ब्रह्मास्त्र' टाइप के भयानक हथियार खोज निकाले है. जिससे वे धरती को दहलाने वाले हैं. इसके अलावा द्रविड़ साधु है जो सर्वशक्तिमान के हर आदेश का पालन करता है और अपनी आस्था को हर मोड़ पर परखता चलता है. दूसरी ओर इस कहानी में मुंबई भी है और आज के जमाने के टीनएजर भी.

Advertisement

अब इतने किरदार है तो आप समझ ही गए होंगे कि कहानी क्या है. कहानी पुरातनकाल के दैत्यों से दुनिया को बचाने की लड़ाई है. सब तो बर्दाश्त करने लायक है कल्पनाओं पर आधारित इस कहानी में, लेकिन जिस तरह सोमाली डाकुओं का चित्रण नकारात्मक भूमिकाओं में हुआ है. वो बात पचती नहीं है.

पुरातनकालीन जिन नकारात्मक भूमिकाओं को लिखा गया है उनमें सोमाली डाकू है जिनसे पूरी दुनिया को खतरा है. सोमाली लोगों का इस तरह का चित्रण कितना सही है. क्या पुरातनकालीन दैत्य सोमालिया के लोगों की तरह ही थे. दरअसल यह सोच नस्लवादी दिखती है. जैसा कि हॉलीवुड फिल्मों में होता है मानवता और धरती को बचाने वाला हमेशा श्वेत अमेरिकन या यूरोपीय होता है.

किताब में 64 पाठ है छोटे छोटे.. इससे ऐसा लगता है कि आप तेजी से पढ़ रहे हैं. भाषा आसान है. कुछ दशक पहले भारतीय घरों में वेद, पुराण, रामायण और महाभारत जैसे पवित्र ग्रन्थ होते थे, अब रखे होते है या नहीं, गारंटी नहीं ली जा सकती. लोग पढ़ते थे और सीखते थे. लेकिन उदारवाद के बाद पैदा हुई पीढ़ी ने महाभारत और रामायण नहीं पढ़ा, तो वह ट्रिलोजी पढ़ती है, यह शिवा ट्रिलोजी भी हो सकती है और स्वाहा भी.

Advertisement
Advertisement