ये उस वक्त की बात है जब हमारे वक्त के तीनों सुपरस्टार शाहरुख, आमिर और सलमान अपनी आया से लंगोट बंधवा रहे थे. रेलवे कॉन्ट्रैक्टर परिवार का एक लड़का उन दिनों थिएटर करता था. और फिर अपनी स्पोर्ट्स कार में फिल्म स्टूडियो के चक्कर भी लगा लेता था. कि शायद कहीं कोई ब्रेक मिले. उस लड़के को फिल्मफेयर मैगजीन के अपने किस्म के इकलौते एक्टिंग मुकाबले में जीत के जरिए मौका मिला. और फिर सफर शुरू हुआ, तो हिंदी सिनेमा को अपना पहला सुपरस्टार मिला. जतिन, जो पर्दे पर राजेश खन्ना के नाम से मशहूर हुआ.
राजेश खन्ना महज तीन साल के अंतराल में एक्टर से सुपरस्टार बन गए. हालत ये कि घटिया से घटिया फिल्म भी उनके होने के चलते सुपरहिट हो गई. लगातार 17 फिल्में प्रॉड्यूसर की जेब भारी करती गईं. और जिस तेजी से ये सब हुआ था, उसी तेजी से भाटा यानी पानी का उतार शुरू हो गया. आनंद में जिस लड़के को राजेश बाबू झिड़क दिया करते थे, उसी अमिताभ ने उन्हें सिंहासन से उतारा . जिन सलीम जावेद को सिप्पी स्टोरी डिपार्टमेंट की गुमनामी से राजेश खन्ना ने बाहर निकाला. बाद में उन्हीं ने अमित के आरोहण की पटकथा लिखी.
उसके बाद राजेश ने भरपूर कोशिश की. मगर वो जादू दोबारा कायम नहीं हुआ. डिंपल से शादी नहीं चली. टीना मुनीम से प्यार नहीं चला. फिल्मों के बाद सियासत भी की. एक बार सांसद भी रहे. मगर वहां भी उतना नहीं मिला, जितना चाहा. कमबैक भी कुछ कमाकर नहीं दे पाया. और आखिर में एक दिन बरसात की शाम बालकनी में खड़े हो समंदर को घूरते राजेश खन्ना ने खुदा से पूछा. और कितने इम्तिहान लेगा तू. मगर जवाब तो राजेश अपने शबाब के दिनों में खुद ही दे चुके थे. जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं, जो मुकाम, वो फिर नहीं आते.
पत्रकार गौतम चिंतामणि ने राजेश खन्ना के इस जीवन के कई पहलुओं को रोचक और दार्शनिक ढंग से जुटाया और बताया है अपनी किताब ‘द लोनलीनेस ऑफ बीइंग राजेश खन्ना- डार्क स्टार’ में. इस किताब की बहुत सारी खूबियां हैं. पहली. ये बहुत भारी भरकम नहीं है. इसके चैप्टर बहुत बड़े और फैले नहीं हैं. दूसरी, इसके बावजूद ये राजेश की कमोबेश हर फिल्म और उस दौर की दशा दिशा पर बात करती है. यानी किताब पढ़ते पढ़ते आप राजेश की फिल्मोग्राफी, बल्कि उस दौर के दूसरे सिनेमा से भी नजरें दो चार कर लेते हैं. किताब की भाषा सरल है. यानी यह सिर्फ हार्डकोर इंग्लिश रीडर के लिए नहीं है. चेतन भगत कैटिगरी की इंग्लिश पढ़ने वाला भी इसे सहजता से पढ़ सकता है.
किताब में रोचकता कूट कूट कर भरी है. इसका एक नमूना हम आपको आखिर में कुछ किस्से सुनाकर करेंगे. मगर किताब सिर्फ किस्सों तक ही महदूद नहीं है. ये राजेश खन्ना नाम के सुपरस्टार की नियति और त्रासदी का गंभीर विवेचन भी है. वह राजेश जिसे जब आशीर्वाद मिला, तो इतना कि कहावत बन गई. ऊपर आका, नीचे काका. और जब पतन हुआ तो ऐसा कि उन्हें राकेश सावंत की बी ग्रेड पॉर्ननुमा नजर आती फिल्म में लैला खान के साथ सेक्स सीन करने पड़े.
मगर अंत में जब पैकअप हुआ. तब लाखों लोग मुंबई की सड़कों पर अपने इस सुपरस्टार को विदाई देने उमड़े. सोचना तो बनता है. एक एक्टर जो सत्तर के दशक की शुरुआत में अपने चरम पर रहा हो. पिछले कई दशकों से सीन से गायब हो. उसके लिए ऐसी दीवानगी. गौतम इसका भी जवाब मुहैया कराते हैं. गानों के पुनरुत्थान के इस दौर में नई पीढ़ी नए सिरे से आरडी बर्मन, किशोर कुमार, आनंद बख्शी और राजेश खन्ना की चौकड़ी से मुखातिब होती है. नए सिरे से आनंद, बावर्ची और नमक हराम जैसी फिल्में देखती हैं. और बिना किसी बोझ के राजेश खन्ना नाम के एक्टर से मुखातिब होती है.
गौतम ने किताब में कुछ चीजों का खास ख्याल रखा है. इधर फिल्मी पत्रकारिता तैरने के नाम पर जिस नाली में गोते लगा रही है, उससे वह दूर रहे हैं. महज बेचने के नाम पर उन्होंने सेंसेशनल और प्रायः निराधार गॉसिप या किरदारों की पालकी नहीं ढोई है. उन्होंने राजेश खन्ना के कई निजी विवादों का बस जिक्र कर छोड़ दिया. क्यों, क्योंकि अव्वल तो उनकी सही तहकीकात और बयान देने वाला कोई नहीं. जो हैं, वे सुनी सुनाई बातें. दूसरा, इससे सिनेमा और शख्स, दोनों को समझने में कुछ और भ्रांतियां आड़े आ जातीं.
किताब में रफ्तार है और सरलपन भी. इसे लिखने के दौरान राजेश खन्ना के परिवार के करीबी सदस्य तो कन्नी काट लिए. डिंपल, ट्विंकल, अक्षय जैसे लोगों ने बात नहीं की. मगर परिवार के दूरस्थ सदस्यों और दोस्तों ने खूब बातें की. जमकर बातें बताईं. उन्हीं सबके आधार पर और राजेश के सिनेमा को नए सिरे से गहरे पैठ और देख गौतम ने किताब लिखी है. हिंदी सिनेमा में पर्दे के इतर जरा भी दिलचस्पी रखने वालों को इसे जरूर पढ़ना चाहिए. उनकी समझ भी समृद्ध होगी और महफिलों में सुनाने के लिए कई किस्से भी मिलेंगे.
1. मां-बाप ने नाम रखा, जतिन. घर में सब प्यार से बुलाते थे काका. बाद में इंडस्ट्री में भी यही नाम चला. शक्ल मां चंद्राणी पर गई थी. चाचा चुन्नीलाल और चाची लीलावती ने छुटपन में ही गोद ले लिया था.
2. एक नाटक में काम करने के दौरान निक्की यानी अंजू महेंद्रू से मिले. दोनों में प्यार हुआ और पूरी मुंबई को कुछ ही बरसों में इसकी खबर हो गई. झगड़े भी खूब हुए. और ऐसे ही एक शाम राजेश खन्ना ने डिंपल से शादी का फैसला किया.
3. थिएटर के दिनों में रवि कपूर से दोस्ती हुई. रवि को पहले ब्रेक मिल गया. उसने स्क्रीन पर वह नाम चुना, जो जतिन ने अपने लिए सोच रखा था. जितेंद्र. ऐसे में जतिन खन्ना को जब ब्रेक मिला, तो उसने अपने लिए राजेश नाम चुना.
4. राजेश खन्ना फिल्मफेयर यूनाइटेड प्रॉड्यूसर्स कंबाइंड कंटेस्ट जीतकर हीरो बने. फाइनल में छह लोग थे. उनका विनोद मेहरा से करीबी मुकाबला हुआ और एक प्वाइंट से जीत मिली. फीमेल कैटिगरी में फरीदा जलाल विनर और लीना रनर अप रहीं.
5. पहली बड़ी कामयाबी मिली, शक्ति सामंत की फिल्म आराधना से. सामंत अपने फेवरेट स्टार शम्मी कपूर के साथ फिल्म बना रहे थे. मगर शम्मी की पत्नी गीता बाली का देहांत हो गया. फिल्म रुक गई तो टाइम पास के लिए शक्ति ने आराधना बना दी. फिल्म सुपर डुपर हिट हुई और राजेश के पैर जम गए.
6. राज कपूर की तबीयत खराब थी. सबको लगा कि अब चला चली की वेला आई. ऐसे में उन्हें श्रद्धांजलि देने की खातिर ऋषिकेश मुखर्जी ने आनंद लिखी. फिल्म में किशोर कुमार आनंद का लीड रोल करने वाले थे. मगर किशोर और ऋषि के बीच गलतफहमी हो गई. और रोल राजेश खन्ना की झोली में गिरा.
7. सलीम खान और जावेद अख्तर नाम के दो लड़के सिप्पी फिल्म्स स्टोरी डिपार्टमेंट में नौकरी करते थे. राजेश खन्ना से उनकी पहली मुलाकात फिल्म अंदाज के सेट पर हुई. राजेश ने उन्हें फिल्म हाथी मेरा साथी का स्क्रीनप्ले दुरुस्त करने को कहा. बदले में उन्हें पर्दे पर पहला क्रेडिट और बड़ी रकम दिलवाई. यानी वह ब्रेक दिया, जिसके लिए सब मुंबई में खटते हैं.
8. आनंद के बाद दो बार और अमिताभ और राजेश खन्ना की किस्मत टकराई. ऋषि दा की फिल्म नमक हराम में राजेश को रईस मिल मालिक के बेटे विकी का रोल ऑफर किया गया था. गरीब दोस्त सोमू को आखिर में मरना था. यह जान राजेश ने सोचा कि उन्हें वह रोल करना चाहिए, जिसे जनता की सहानुभूति मिले. वह सोमू के रोल में आ गए और अमिताभ को विकी का रोल ऑफर कर दिया गया.
9. यश चोपड़ा दीवार फिल्म राजेश खन्ना के साथ बनाना चाहते थे. राजेश बनते विजय तो उनके छोटे भाई रवि का रोल करते नवीन निश्चल. मगर फिल्म के राइटर सलीम जावेद ने विजय के रूप में अमिताभ बच्चन को सोच रखा था. उसके बाद जो हुआ, वह इतिहास है. इसका उलटा हुआ दसेक बरस के बाद. जब डायरेक्टर मोहन कुमार ने फिल्म अवतार में अमिताभ बच्चन का नाम फाइनल करने के बाद राजेश खन्ना को लिया और फिल्म सुपरहिट हो गई.
10. ऐसी ही एक फिसलन राज कपूर के साथ भी हुई. राजेश खन्ना उन्हें बहुत मानते थे. राज साहब सत्यम शिवम सुंदरम में राजेश खन्ना को फाइनल कर चुके थे. मगर कपूर के बेटे अड़ गए. ऐसे में राजेश खन्ना के जन्मदिन के रोज पार्टी शुरू करने से कई घंटे पहले राज गुलदस्ता लेकर पहुंचे और बोले, काका मैं बच्चों के सामने हार गया.