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बुक रिव्यू: पत्थरदिल पिता और भावुक बेटी का द्वंद्व है 'उत्तराधिकारिणी'

‘हम लोग’ वाले मनोहर श्याम जोशी को एक अलग शैली में पढ़ना चाहते हों तो पढ़ें. रिश्तों की उलझन के बीच भाषा की धारा में बहना पसंद हो तो पढ़ें.

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Uttaradhikarni
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किताबः उत्तराधिकारिणी
लेखक: मनोहर श्याम जोशी
पब्लिशरः
वाणी प्रकाशन
कीमतः 95 रुपये (पेपरबैक संस्करण)

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पुनर्रचना हिंदी साहित्य के लिए नई विधा रही है. मनोहर श्याम जोशी ने ‘उत्तराधिकारिणी’ को हेनरी जेम्स के 'वाशिंगटन स्क्वायर' उपन्यास की पुनर्रचना बताया है. यह उपन्यास इसलिए भी महत्व रखती है क्योंकि यह मनोहर श्याम जोशी का पहला पूर्ण उपन्यास माना जाता है. पुस्तक की भूमिका में उनकी पत्नी भगवती जोशी ने लिखा है, 'कई अर्थों में उत्तराधिकारिणी जोशी जी का पहला सम्पूर्ण उपन्यास है. 1970 के दशक के आरंभिक वर्षों में अपने तीन अधूरे उपन्यासों से ध्यान हटाकर उन्होंने इसे लिखा था और तब ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में इसका प्रकाशन भी हुआ था.'

पिता बेटी के रिश्ते में उतार-चढ़ाव की कहानी
डॉक्टर बी.डी.राज शहर के सबसे बड़े डॉक्टर हैं. लोग मानते हैं उन्हें कोई सिद्धि प्राप्त है. डॉक्टर राज भावुक हैं नहीं, अवैज्ञानिक बातों से नफरत करते हैं. मंत्री पद ठुकरा चुके हैं. घर पर एक बेटी है. दूर के रिश्ते की एक भांजी शन्नो है, जो बेटी की आया से लेकर अध्यापिका तक है.

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डॉक्टर राज की पत्नी डिलीवरी के दौरान चल बसी सो उसकी याद में बेटी का भी वही नाम कामिनी रख दिया. डॉक्टर राज की से अपनी बेटी से बनती नहीं. उनके अनुसार वो कूड़-मगज है सो बेटी से बातें कम और व्यंग्य ज्यादा होते हैं. कामिनी की नीरस जिन्दगी में उतार-चढ़ाव शुरू होते हैं जब उनके जीवन में मनमथ नाथ आते हैं. डॉक्टर साहब को मनमथ उनकी बेटी की आड़ में लाखों की संपत्ति पर नजर गड़ाए लगता है. उपन्यास यहीं से रोचक होने लगता है कामिनी के नए तेवर दिखते हैं. मनमथ नाथ और बी.डी.राज के रिश्तेदारों के दांव-पेंच हैं.

चौंकाती है कहानी
डॉक्टर राज की मृत्यु के बाद कहानी में आए मोड़, मरने के पहले डॉक्टर राज का कामिनी से मनमथ नाथ से विवाह करने को कहना. कामिनी के फैसले. वो सब कुछ है जो आपको अंत तक बांधे रहता है.

क्यों पढ़ें
मनोहर श्याम जोशी वो लेखक रहे जिन्होंने हमें टेलीविजन देखना सिखाया. शुरुआत में टेलीविजन विलासिता का सामान माना जाता था. 'हम लोग' में आम सी बातें कहकर मनोहर श्याम जोशी ने आम लोगों को टेलीविजन से जुड़ने का मौक़ा दिया. ‘कसप’ और ‘नेताजी कहिन वाले’ मनोहर श्याम जोशी को एक अलग शैली में पढ़ना चाहते हों तो पढ़ें. रिश्तों की उलझन के बीच भाषा की धारा में बहना पसंद हो तो पढ़ें.

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