किताब: विवेकानंद की आत्मकथा
लेखक: मणि शंकर मुखर्जी (शंकर)
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
अनुवाद: सुशील गुप्ता
दाम: 250 रुपये
कवर: पेपरबैक
स्वामी विवेकानंद से जुड़ी तमाम पुस्तकें बाजार में उपलब्ध हैं और उनके विषय में जितना भी पढ़ो कम है. ऐसे में अगर उनके जीवन के अनछुए पहलुओं को पढ़ने का मौका मिले तो क्या बात है. ऐसा ही कुछ है बांग्ला के मशहूर लेखक शंकर द्वारा संपादित पुस्तक 'विवेकानंद की आत्मकथा' में. मूल रूप से बांग्ला में लिखी गई यह किताब पहली बार 2009 में प्रकाशित हुई. लेखक ने स्वामी जी की जुबानी उनकी जीवनगाथा कहने की कोशिश की है.
इस किताब में स्वामी विवेकानंद की जिंदगी से जुड़े कई ऐसे पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है जिससे हिंदी का पाठकवर्ग अनजान रहा होगा. जितना रोचक स्वामीजी के बचपन के बारे में जानना है उतनी ही दिलचस्प उनके रामकृष्ण परमहंस से मिलने कहानी है जो पढ़ने वाले को बांध लेती है.
पुस्तक के पहले अध्याय में विवेकानंद के बचपन से पाठक रूबरू होता है और जानता है कि कैसे उनका बचपन अन्य बच्चों की ही तरह सामान्य होते हुए भी अलग था. दूसरा अध्याय और भी रोचक है जिसमें ये बताया गया है कि कैसे विवेकानंद का उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस से परिचय हुआ. जैसे-जैसे गुरु शिष्य का संबंध आगे बढ़ता है, पुस्तक और भी रोचक होती जाती है.
स्वामी विवेकानंद का जिक्र हो और 1893 में शिकागो में आयोजित धर्म महासभा का जिक्र ना हो ऐसा कैसे संभव है. इस पुस्तक में महासभा के साथ ही स्वामीजी की अमेरिका यात्रा का विवरण उनकी ही जुबानी कुछ इस तरह पेश किया गया है कि पाठक खुद को उससे जुड़ा महसूस करेंगे. मसलन अमेरिका में उनकी मन:स्थिति क्या थी, एक वक्त ऐसा भी था जब उनके पास विदेश में पैसे लगभग समाप्त होने वाले थे, उस वक्त वो क्या सोच रहे थे इत्यादि.
पुस्तक के कुछ रोचक अंश...
स्वामी विवेकानंद अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस से पहली बार मिले तो बातों ही बातों में पूछ बैठे, 'महाशय, क्या आपने ईश्वर को देखा है?'
उन्होंने छूटते ही जवाब दिया, 'हां देखा है. जैसे मैं तुम लोगों को देख रहा हूं, तुम लोगों से बातचीत कर रहा हूं, ठीक उसी तरह उन्हें भी देखा जा सकता है, उनसे बातें की जा सकती हैं. लेकिन इसकी चाह किसे है? लोग तो पत्नी-पुत्र, धन-संपत्ति वगैरह के शोक में आंसू बहाते हैं, लेकिन ईश्वर के लिए कौन अधीर होता है? उन्हें पाने के लिए अगर कोई व्याकुल होकर पुकारे, तब वे अवश्य उसे दर्शन देते हैं.'
ऐसे ही कई रोचक तथ्य पाठक को इस पूरी पुस्तक में मिलते हैं और वो भी खुद विवेकानंद की जुबानी. तो पढ़ें, स्वामी विवेकानंद के चमत्कारिक व्यक्तित्व से रूबरू हों और उनकी आत्मकथा से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में उसका लाभ उठाएं.
लेखक का परिचय
बांग्ला के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लखकों में शुमार शंकर किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. शंकर का पूरा नाम मणि शंकर मुखर्जी है. शंकर का सबसे चर्चित और सफल उपन्यास है 1962 में प्रकाशित 'चौरंगी' जिसे भारत ही नहीं बल्कि पश्चिम में भी खूब सराहा गया. चौरंगी का हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और 1968 इसपर बांग्ला में फिल्म भी बन चुकी है. सीमाबद्ध और जन अरण्य उनके ऐसे उपन्यास हैं जिनपर मशहूर फिल्मकार सत्यजीत रे ने फिल्में बनाई. स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा भी शंकर का एक बेहतरीन संकलन है.