किताब: जिंदगी मेरी नजर में
कवि: वीरेंद्र कुमार मन्सोतरा
कीमत: 100 रुपये
जिंदगी वह शब्द है जिसकी व्याख्या सबने अपने-अपने तरीके से की है. एक लंबे अनुभव के बाद आप ही आप जीवन के बारे में कोई राय बना पाते हैं. इसलिए जीवन और उसकी विडंबनाओं के बारे में हर रचनाकार की अभिव्यक्ति आकर्षित करती है. ऐसी ही अभिव्यक्ति का ईमानदार प्रयास है वीरेंद्र कुमार मन्सोतरा की किताब 'जिंदगी तेरी नजर' में.
सीमा सुरक्षा बल में उप-कमांडेंट रह चुके वीरेंद्र शौकिया तौर पर कविताएं लिखते हैं. अपनी कविताओं में वह निरंतर संघर्ष करने, हार न मानने, दुख को सुख की तरह गले लगाने और जीवन में गतिशील बने रहने का संदेश देते हैं. लेकिन रमजान और ईद पर लिखी उनकी कविता खास तौर पर काबिल-ए-जिक्र है.
कविता: मेरी नजर में रमजान
रमजान के ये दिन हैं मेरे लिए त्योहार
सुबह सवेरे उठकर खुदा को लूं पुकार
नजदीक आ जाता है मेरा परवरदिगार
रमजान के ये दिन हैं मेरे लिए त्योहार
सुबह की मैं नमाज दूं अल्लाह के नाम की
मौला करीम अल्लाह वली के नाम की
बाकी की रह जाती हैं फिर नमाजें और चार
रमजान के ये दिन हैं मेरे लिए त्योहार
दूसरी फिर तीसरी चौथी नमाज दूं
जी चाहता हर एक घड़ी मैं तो नमाज दूं
फिर पांचवीं नमाज का करता हूं इंतजार
रमजान के ये दिन हैं मेरे लिए त्योहार
पढ़कर नमाज पांचवी दिल हल्का कर लिा
अल्लाह को जैसे मैंने दामन में भर लिया
खोलूंगा मैं तो रोजा लेकर के इफ्तार
रमजान के ये दिन हैं मेरे लिए त्योहार
तीस दिन रमजान बाद ईद आई है
खुशियां जमाने भर की मैंने आज पाई हैं
लगता मैंने कर लिया खुदा का है दीदार
रमजान के ये दिन हैं मेरे लिए त्योहार