किसी भी चीज की ज्यादती अच्छी नहीं है. फिर चाहे लालच हो, कारोबार हो या फिर टेक्नोलॉजी. इस बात को स्कॉटिश इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने अपनी नई किताब 'दी एनार्की' में समझाने की कोशिश की है. उनका कहना है कि जिस तरह कॉरपोरेट लालच ने ईस्ट इंडिया कंपनी को खत्म कर दिया, उसी तरह 2G और कोयला घोटाले ने कांग्रेस की सत्ता खत्म कर दी.
इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने अपनी किताब 'दी एनार्की' में ईस्ट इंडिया कंपनी के उदय और उत्थान से लेकर उसके खत्म होने तक की पूरी कहानी बयां की है. उन्होंने बताया कि लंदन की कारोबारी ईस्ट इंडिया कंपनी ने किस तरह मुगल सत्ता पर कब्जा कर लिया और इतनी शक्तिशाली बन गई.
ईस्ट इंडिया ने मुगल साम्राज्य खत्म कर सत्ता हथियाई
उन्होंने बताया कि भारतीय महाद्वीप में कारोबार करने के लिए साल 1600 में लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई. इस कंपनी का विस्तार इतना हुआ कि इसने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से, दक्षिण पूर्व एशिया के उपनिवेशित हिस्से और किंग चाइना के साथ युद्ध के बाद हांगकांग में कब्जा कर लिया. इस कंपनी ने हिंदुस्तान में शक्तिशाली मुगल साम्राज्य को खत्म करके सत्ता अपने हाथ में ले लिया.
विलियम डेलरिम्पल ने अपनी किताब 'दी एनार्की' में इस धारण का भी खंडन किया कि भारत का उपनिवेशीकरण ब्रिटेन के राष्ट्रीय प्रोजेक्ट की शुरुआत थी. दरअसल, ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना का मकसद प्राइवेट ज्वॉइंट स्टॉक कंपनी के जरिए कॉरपोरेट फायदे को बढ़ाना था, जो आगे चलकर भारत के उपनिवेशीकरण का कारण बन गई. विलियम डेलरिम्पल ने कहा कि हम कॉरपोरेट फायदे के लालच में अक्सर इतिहास और नुकसान को भूल जाते हैं.
कैसे मारवाड़ी और जैन बैंकरों ने की ब्रिटिश कंपनी की मदद
विलियम डेलरिम्पल ने कहा कि जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई तो बंगाल के मारवाड़ी और जैन बैंकरों की मदद से अपने कामकाज को शुरू किया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने मारवाड़ी और जैन बैंकरों की सहायता से अपने कामकाज को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया. इसके पटना और बनारस के हिंदू बैंकरों ने भी ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद की. इस तरह भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी को बढ़ाने में भारतीयों ने मिलकर मदद की.
मुगल सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए पैसे की पेशकश
उस समय के सबसे अमीर भारतीय बैंकर जगत सेठ ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए ब्रिटिशों को उकसाया था. साथ ही ऐसा करने के लिए 20 लाख यूरो देने की पेशकश की थी. ईस्ट इंडिया कंपनी जानती थी कि भारतीय सिपाहियों और पैसे से मुगलों को हराया जा सकता है.
अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या हिंदू कारोबारियों के दिल में मुस्लिम शासकों के प्रति नफरत थी, जिसके चलते उन्होंने मुगल शासन को खत्म करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को पैसा दिया? उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह सच नहीं हैं. उनका कहना है कि जगत सेठ को लगता था कि उनका पैसा मुगलों की बजाय ईस्ट इंडिया कंपनी के पास ज्यादा सुरक्षित है. यह बेहद दिलचस्प है कि किस तरह कॉरपोरेट हिंसा ने मुगल साम्राज्य को खत्म कर दिया.
कैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर कर लिया कब्जा?
विलियम डेलरिम्पल ने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने 31 दिसंबर 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना को मंजूरी दी. इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी उम्मीदों से भी ज्यादा तेजी से आगे बढ़ी. इसके जरिए क्षेत्र के कारोबार में ब्रिटेन का प्रभुत्व स्थापित हो गया. इसके बाद कंपनी का सत्ता में दखल बढ़ने लगा और धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने सत्ता, कानून व्यवस्था और पूरे देश में कब्जा कर लिया. कंपनी ने कानून बनाना और युद्ध तक लड़ना शुरू कर दिया.
ईस्ट इंडिया कंपनी से छिन गई हिंदुस्तान की सत्ता
डेलरिम्पल के मुताबिक ज्यादातर इतिहासकार मुगलकाल और फिर स्वतंत्रता संग्राम पर ज्यादा फोकस करते हैं, वो ईस्ट इंडिया कंपनी पर ज्यादा फोकस नहीं करते हैं. हालांकि उस समय का इंग्लैंड कॉरपोरेट लालच के बढ़ते खतरे से वाकिफ था. अगर उस समय के ब्रिटिश अखबार को उलटकर देखा जाए, तो उस समय की मीडिया ने इसकी आलोचना भी की थी.
विलियम डेलरिम्पल का कहना है कि कॉरपोरेट लालच को लेकर ब्रिटिश संसद में बहस भी हुई थी, जिसमें इस बात की चर्चा की गई थी कि किस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी ने इतने बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया. इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रिटिश संसद में अपना विश्वास खो दिया और ब्रिटिश सरकार ने भारत की सत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी से छीनकर अपने हाथ में ले लिया.
लालच में सत्ता से टकराने लगता है कॉरपोरेट
विलियम डेलरिम्पल ने कहा कि कॉरपोरेट ज्यादा फायदा पाने से ज्यादा लालची हो जाता है. इसके बाद वह सरकार और सत्ता से टकराने लगता है. उन्होंने कहा कि ऐसा ही यूपीए के शासन में 2G और कोयला घोटाले हुए, जिसका खामियाजा यह हुआ कि कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. विलियम डेलरिम्पल की 'दी एनार्की' सिर्फ इतिहास की किताब ही नहीं है, बल्कि बेलगाम कॉरपोरेट से होने वाले नुकसान की याद दिलाता है. हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी फ्लाइट पर इस किताब को पढ़ते नजर आए थे.