किताबः क्रिकोनॉमिक्स (एवरीथिंग यू वांटेड टू नो अबाउट वनडे क्रिकेट)
लेखकः सुरजीत एस. भल्ला और अंकुर चौधरी
प्रकाशकः रूपा पब्लिकेशंस
कीमतः 295 रुपये
कवरः पेपरबैक
मौजूदा वर्ल्ड कप 2015 में अब तक सभी टीमों ने कम से कम दो मैच खेल लिए हैं. और क्वार्टर फाइनल की हल्की-हल्की तस्वीर उभरनी शुरू हो गई है. क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल में ही टीमों की ताकत का असली अंदाजा लगेगा. हालांकि क्रिकेट आंकड़ों का खेल है और आंकड़ों के दम पर लोग आसानी से यह अनुमान लगा सकते हैं कि कौन सी टीम बेहतर पोजिशन में है. उसके खिलाड़ियों का प्रदर्शन कैसा है और उनके जीतने की संभावना कितनी है. आंकड़ों के आधार पर इन्हीं सब पहलुओं का अध्ययन कर एक संभावित तस्वीर बताती है सुरजीत एस. भल्ला और अंकुर चौधरी की किताब क्रिकोनॉमिक्स, जिसे प्रकाशित किया है रूपा पब्लिकेशंस ने.
माना जा रहा है कि इस बार जिस फॉर्मेट में टूर्नामेंट में खेला जा रहा है. वह इस प्रतिस्पर्धा को सबसे कठिन बनाता है. सुपर 6 और सुपर 8 का फॉर्मेट वर्ल्ड कप के लिए अपनाया जाता रहा है. इसमें पहले राउंड रोबिन आधार पर मैच खेले जाते हैं और फिर नॉकआउट दौर आता है. इसके बाद सेमीफाइनल के मुकाबले खेले जाते हैं. सुपर 6 और सुपर 8 का अपना प्लस प्वाइंट होता है, जो दर्शकों के बीच उत्साह और रोमांच पैदा करता है.
हालांकि इस तरह के फॉर्मेट में उलटफेर भी बहुत होते हैं. 2003 में खेले गए वर्ल्ड कप में दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, और वेस्टइंडीज को पहले ही दौर में बाहर होना पड़ा था. इसके साथ ही इस तरह के फॉर्मेट में एक नाउम्मीद टीम को भी सेमीफाइनल खेलने का मौका मिल जाता है, जिसे भारत सेमीफाइनल में आसानी से हराने के बाद ऑस्ट्रेलिया से फाइनल हार जाता है. आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इसकी वजह से आईसीसी ने टूर्नामेंट के प्रारुप में बदलाव किया और यह तय किया कि क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल मुकाबलों में टीमों की असली परीक्षा हो सके.
क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है और 'क्रिकेटएक्स' मॉडल के आधार पर सुरजीत और अंकुर ने डाटा एनालिसिस के जरिए क्रिकेट वर्ल्ड कप से जुड़े पहुलुओं पर आकलन पेश किया है. इसे क्रिकेट वर्ल्ड कप का ओपिनियन पोल भी कहा जा सकता है. हालांकि यह सौ फीसदी सही होगा, ये नहीं कहा जा सकता है. हालांकि औसत रूप से तकरीबन यह सही परिणाम के करीब है.
क्रिकोनॉमिक्स की माने तो इस वर्ल्ड कप में होम एडवांटेज महत्वपूर्ण होने जा रहा है. और इसका असर कोई कम नहीं होगा, यह असर बहुत प्रभाव पैदा करेगा. दो समान रूप से ताकत टीमों के मैच में यह घरेलू टीम की ओर से झुकता हुआ 60-40 का हो जाता है. 2011 का उदाहरण आपके सामने है, जब भारत के पास एक अच्छी टीम थी और टीम इंडिया ने टूर्नामेंट जीत लिया. टीम इंडिया की जीत में पिच के योगदान को कम नहीं किया जा सकता.
हालांकि सुरजीत और अंकुर के आकलन को मौजूदा वर्ल्ड कप के बीच में टीमों के प्रदर्शन से तुलना करना ठीक नहीं होगा. टूर्नामेंट से पहले सुरजीत और अंकुर टीम इंडिया को कमजोर आंक रहे थे, जिसने साउथ अफ्रीका को पटखनी दे दी है. जिसे वो खिताब के प्रबल दावेदार के रूप में देख रहे थे और पुल बी में भारत को दक्षिण अफ्रीका से नीचे रख रहे थे.
क्रिकोनॉमिक्स के मुताबिक इस बार घरेलू टीमों के पास वर्ल्ड कप जीतने का 50-50 चांस है. कई कोणों से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच फाइनल खेले जाने की संभावना बन रही है, तो साउथ अफ्रीका भी फाइनल में पहुंच सकता है. हालांकि इसकी संभावना न्यूजीलैंड के फाइनल में पहुंचने के मुकाबले कम है. न्यूजीलैंड अब तक 6 बार वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में पहुंचा है, जबकि साउथ अफ्रीका सिर्फ तीन बार ऐसा कर पाया है.
दूसरी ओर चूंकि फाइनल मुकाबला मेलबर्न में खेला जाना है, लिहाजा होम टीम एडवांटेज ऑस्ट्रेलिया के साथ है. अगर ऑस्ट्रेलिया इस बार वर्ल्ड कप जीतने में कामयाब रहता है, तो यह उसकी पांचवीं खिताबी जीत होगी. कंगारुओं के मौजूदा फॉर्म को देखते हुए लगता है कि शायद ही कोई टीम उन्हें खिताब जीतने से रोक पाए.