2012 के नोबेल पुरस्कार विजेता चीनी लेखक मो यान का उपन्यास 'चेंज' अब हिंदी में आ रहा है. इस किताब का नाम होगा 'हम, तुम और वो ट्रक.' 'यात्रा बुक्स' की इस पेशकश का हिंदी अनुवाद प्रोफेसर पुष्पेश पंत ने किया है. किताब की रिलीज से पहले हम इसका एक्सक्लूसिव हिस्सा खास आपके लिए लाए हैं.
'हम तुम और ट्रक' से एक अंश
खेलने वालों में एक गणित के अध्यापक लिउ त्यांग-ग्वांग थे—नाटे इंसान जिनका मुंह आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा था. हमने सुना था कि वह अपनी बंधी मुट्ठी अपने मुंह में समा सकते हैं हालांकि हममें से किसी ने उन्हें ऐसा करते देखा नहीं था. उनकी एक दर्शनीय छवि, जो अक्सर मेरे मस्तिष्क में कौंधती रहती थी, मंच पर खड़े, खुले मुंह से जम्हाई लेने वाली थी.
उनका एक नाम ‘हिप्पो’ था. अब हममें से किसी ने ये जीव देखा नहीं था, जिसे चीनी भाषा में ‘हेमा’ कहते हैं जो सुनने में कुछ-कुछ ‘हामा’ लगता है- मेंढक की एक ऐसी प्रजाति जिसका मुंह बहुत बड़ा होता है. अतः ये स्वाभाविक ही था कि हम लोगों ने उन्हें मेंढक लिउ कहना शुरू कर दिया. यह मेरा आविष्कार नहीं था, पर पूछ्ताछ के बाद लिउ मास्साहब ने ये तय कर लिया था कि ये मेरी ही कारगुज़ारी थी. स्कूल की क्रांतिकारी समिति के उपाध्यक्ष एक शहीद के बेटे का मेंढक लिउ के रूप में नामकरण ऐसा जघन्य अपराध था, जिसके लिए मुझे स्कूल से निकाला जाना और स्कूल के अहाते से बाहर खदेड़ना तर्कसंगत और अवश्यम्भावी था.
इस सारी बकबक का मकसद है आगे आने वाले नाटकीय दृश्य के लिए मंच तैयार करना: अपना मुंह खोल लिउ मास्टर ने टॉप स्पिन लगाते गेंद उछाली जिसे वेनली ने सीधे-सीधे लौटा दिया पर मानो वह चमकीली गेंद अपनी आंखों से राह देखती, सीधे खुले मुंह में जा घुसी. हम भी स्तंभित रह गए. फिर हंसी का फव्वारा छूटा. मा नाम के अध्यापक का चेहरा, जो पहले से ही लाल था. अब मुर्गे की कलगी की तरह सुर्ख हो गया. वेनली जिसने मुंह लटका रखा था, जोर से चहक उठी. मैं ही अकेला था, जो हंसा नहीं. विस्मित यह देखता रहा कि हो क्या गया है? मुझे गांव के दादा वांग गुई से सुनी एक कहानी याद आ गई. जब एक बार जियांग जिया नाम का बेकार इशान आटा बेच रहा था. हवा का तेज़ झोंका इसे उसके हाथ से निखरा गया. फिर उसने कोयला बेचने की कोशिश की. पर इस बार जाड़ा पड़ा ही नहीं. जब उसने आसमान की ओर देखते आह भरी तो चिड़िया उसके मुंह में बीट कर गई.
बीस साल बाद 1999 के पतझड़ में जब मैं मेट्रो से अखबार के दफ्तर जा रहा था अखबार बेचने वाले ने मेरा ध्यान आकर्षित किया: ‘पढ़िए! पढ़िए! महायुद्ध का बड़ा अजूबा—सोवियत तोप से दागा गोला सीधा जर्मन तोप की नाल में घुस गया!’ मुझे अचानक वह दिन याद आ गया, जब वेनली की पिंगपोंग की गेंद लिउ मास्साब के मुंह में घुस गई थी. इसके बाद जो हुआ, उससे सबको लगा कि उन्हें हंसना नहीं चाहिए. एकाएक सब चुप हो गए. आप सोच रहें होंगे कि लिउ ने गेंद थूककर उगल दी होगी और कुछ मजाकिया चुटकी ली होगी—वह विनोदी स्वाभाव के थे—वेनली ने शर्मिंदगी महसूस करते हुए माफ़ी मांगी होगी. मगर आपका ऐसा सोचना गलत होगा. गेंद थूकने की जगह लिउ ने अपनी गर्दन खींची, आंखें और भी फैला लीं और गेंद निगलने की कोशिश की—हम सबने यह देखा. फिर उसने अपने हाथ छटपटाए और गले से घरघराहट वाली आवाज़ निकाली. वह उस चूजे जैसा नज़र आ रहा था, जिसने कोई ज़हरीला कीड़ा निगल लिया हो.
हम लोग भौचक्के असहाय खड़े थे. सिर्फ अध्यापक झांग को छोड़कर. जो दौड़कर लिउ के पास पहुंचे और उनकी पीठ पर थपकी मारने लगे. फिर यु नाम के दुसरे अध्यापक दौड़कर लिउ के पास पहुंचे और उन्होंने अपने हाथ उनकी गर्दन के नीचे डाल दिए. दक्षिणपंथी अध्यापक वांग मेडिकल कोलेज के स्नातक थे और जानते थे कि क्या करना चाहिए. वह दौड़कर आए उन्होंने झांग और यु को धकियाकर हटाया. अपनी बानर जैसी लंबी भुजाओं को लिउ की कमर के गिर्द लपेटा और हाथों से शरीर के मध्यभाग में झटका दिया. गेंद लिउ के मुंह से छटक उड़ती हुई मेज़ पर जा गिरी, जहां उसने दो-चार टप्पे खाए और ज़मीन पर गिरकर बिना एक इंच लुढ़के चिपक सी गई. वांग ने लिउ को छोड़ दिया, जो घुटती चीख के साथ ऐसे भुरभुरा कर पसर गया जैसे मिट्टी का बना हो. लू वेनली ने अपना बल्ला मेज़ पर फेंक दिया, अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया और रोती हुई भाग निकली. वांग ने ज़मीन पर पड़े मास्साब की तब तक मालिश की, जब तक वह सहारा लेकर उठ खड़े नहीं हो गए. जैसे ही वह खड़े हो सके उन्होंने इर्द-गिर्द निगाहें दौड़ाई और भरी गले से कहा: ‘कहां है लू वेनली? उस शैतान ने तो मुझे मार ही डाला था !’