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यूसुफ खान से दिलीप कुमार बनने की कहानी है यह किताब

एक शख्स जिसने एक बेमिसाल निजी और सार्वजनिक जिंदगी जी हो, उसके लिए अपनी कहानी की शुरुआत करना दुविधा का मसला तो है ही. इसलिए देश के महानतम फिल्म एक्टर्स में से एक दिलीप कुमार साहब अपनी ऑटोबायोग्राफी एक शेर से शुरू करते हैं. उनकी जिंदगी की तरह उनकी बायोग्राफी भी दिलचस्प किस्सों से भरी पड़ी है.

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Dilip Kumar's Autobiography
Dilip Kumar's Autobiography

किताब: दिलीप कुमार- द सब्सटेंस एंड द शैडो (ऑटोबायोग्राफी)
भाषा: अंग्रेजी
नैरेटर: उदयतारा नायर
प्रकाशक: हे हाउस इंडिया
पृष्ठ: 456
कीमत: 699 रुपये

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मुझे तो होश नहीं आप ही मशविरा दीजिए,
कहां से छेड़ूं फसाना कहां तमाम करूं

एक शख्स जिसने एक बेमिसाल निजी और सार्वजनिक जिंदगी जी हो, उसके लिए अपनी कहानी की शुरुआत करना दुविधा का मसला तो है ही. इसलिए देश के महानतम फिल्म एक्टर्स में से एक दिलीप कुमार साहब अपनी ऑटोबायोग्राफी इस शेर से शुरू करते हैं. उनकी जिंदगी की तरह उनकी बायोग्राफी भी दिलचस्प किस्सों से भरी पड़ी है.

यह किताब पिछले सप्ताह मुंबई में रिलीज हुई थी. इसे लिखा है उदयतारा नायर ने. इस किताब में दिलीप कुमार के फिल्मी सफर और निजी जिंदगी के किस्सों की भरमार है. ये सब प्रामाणिक हैं क्योंकि नयनतारा ने दिलीप साहब से बातचीत के आधार पर ही यह किताब लिखी है. किताब में दिलीप ने मधुबाला से रिश्ते, एक्टिंग की शुरुआत, सायरा बानो से पहली मुलाकात से लेकर बाद तक के कई वाकये सुनाए हैं. हम बता रहे हैं आपको उनकी किताब के 10 दिलचस्प किस्से.

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1. पहली फिल्मः मेरी पहली फिल्म थी ज्वार भाटा. मैं इसकी स्क्रीनिंग के लिए हॉल में पहुंचा. जब खुद को पर्दे पर देखा, तो एक सवाल पूछा. अगर आगे भी मुझे काम मिलता रहा तो क्या मैं ऐसे ही एक्टिंग करूंगा. जवाब था, नहीं. मुझे महसूस हुआ कि एक्टिंग करना इतना आसान काम नहीं है. अगर मुझे ये करियर जारी रखना है, तो अपना तरीका ईजाद करना होगा. तब अगला सवाल सामने आया, कैसे.

2. मधुबाला से प्यारः क्या मुझे मधुबाला से प्यार था, जैसा कि उस वक्त के अखबार और मैगजीन बार बार रिपोर्ट करते थे. हां, मैं उनकी तरफ आकर्षित था. निस्संदेह वह बहुत अच्छी एक्ट्रेस थीं. उनमें एक औरत के तौर पर भी ऐसी बहुत सी खूबियां थीं, जो मेरी उस वक्त की चाह के करीब थीं. अजीब सा चाव था उनकी शख्सियत में. उन्हीं की वजह से मैं अपने शर्मीलेपन से बाहर आया.

दिलीप कुमार की ऑटोबायोग्राफी लॉन्च की तस्वीरें

3. जब हुआ मधुबाला से अलगावः हम फिल्म मुगल ए आजम के लिए पर्दे पर अमर प्रेम निभा रहे थे, तभी असल जिंदगी में हमारे रिश्ते खत्म हुए. फिल्म आधी ही बन पाई थी और हालत ये थी कि हम आपस में बात तक नहीं करते थे. मुगल ए आजम के एक प्रेम दृश्य को सर्वकालिक महान प्रेम दृश्यों में गिना जाता है. जब सलीम की गोद में अनारकली सिर रख लेटी है. बैकग्राउंड में उस्ताद तानसेन का आलाप चल रहा है. और सलीम अभिसार के लिए अनारकली के चेहरे पर एक पंख घुमा रहा है. पर असल जिंदगी में हम उस वक्त बात तो छोड़िए रस्मी दुआ सलाम भी नहीं करते थे.

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4. क्यों ठुकराई मदर इंडियाः मैं मदर इंडिया से पहले दो फिल्मों में नर्गिस का हीरो रह चुका था. ऐसे में उनके बेटे के रोल का प्रस्ताव जमा नहीं. जब महबूब खान ने मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई तो मैं अभिभूत हो गया. मुझे लगा कि यह फिल्म हर कीमत पर बनाई जानी चाहिए. फिर उन्होंने नरगिस के एक बेटे का रोल मुझे ऑफर किया. मैंने उन्हें समझाया कि मेला और बाबुल में उनके साथ रोमांस करने के बाद यह माकूल नहीं होगा.

5. हमारी पंजाबी और उनकी बंगालीः मुझे मधुमती फिल्म की आउटडोर शूटिंग का एक किस्सा याद आ रहा है. उस वक्त वहां पर मैं, प्राण, जॉनी वॉकर, डायरेक्टर बिमल रॉय और उनके असिस्टेंट ऋषिकेश मुखर्जी मौजूद थे. किसी भी दिन पैकअप के बाद असल मजा शुरू होता था. मैं और प्राण पंजाबी में बात करते तो बिमल और ऋषि दा बंगाली में बतियाने लगते. बीच में किस्सों और शायरी का भी दौर चलता. उधर खानसामा हमारे लिए उम्दा पकवान बनाने में मशगूल रहता. मैं दाद देना चाहूंगा प्राण साहब की. शूटिंग के बाद की ये यारी काम के दौरान उनके चेहरे से नदारद थी. फिल्म में वह उग्र नारायण का किरदार निभा रहे थे, जो ग्रे शेड लिए था.

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6. क्यों करता था रिहर्सल मैं: देविका रानी ने जब मुझे समेत कई एक्टर्स को बॉम्बे टॉकीज में नौकरी दी, तो साथ में इसके लिए भी ताकीद किया कि रिहर्सल करना कितना जरूरी है. उनके मुताबिक एक न्यूनतम लेवल का परफेक्शन हासिल करने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है. फिर ये सीख मेरे साथ शुरुआती वर्षों तक ही नहीं रही. बहुत बाद तक मैं मानसिक तैयारी के साथ ही सेट पर शॉट के लिए जाता था. मैं साधारण से सीन को भी कई टेक में और लगातार रिहर्सल के बाद करने के लिए कुख्यात था.

7. बहन ने डांटा मेरे हज्जाम कोः मेरे हज्जाम को मेरे बालों से हमेशा दिक्कत होती थी. उसे लगता था कि ये कम्बख्त कुछ ज्यादा ही तेजी से बढ़ते हैं. हर 15 दिन में कटवाने की नौबत आ जाती थी.  वह बार बार उन्हें संवारता, मगर वे अपनी जगह पर ही नहीं ठहरते. एक बार का किस्सा याद आ रहा है. हज्जाम बाल काटने के लिए घर आया. मैं कहीं शूटिंग में मसरूफ था. मैंने उससे कह रखा था कि अगर घर पर न मिलूं, तो इंतजार करना. जब मैं वापस आया तो देखा अलग ही नजारा. वह साहब मेरे ड्राइंगरूम में बैठ गए थे. ये मेरी बड़ी बहन को इतना नागवार गुजरा कि वह लगीं उसको डांट पिलाने में. मैंने फौरन अपने हज्जाम से इसके लिए माफी मांगी. बाद में मेरी सकीना आपा से इस बात को लेकर झड़प भी हुई.

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8. जब सायरा की मुहब्बत में गिरफ्त हुआः ये 1966 के 23 अगस्त की शाम थी. सायरा बानो अपने नए घर के बगीचे में खड़ी थीं. मैं जैसे ही कार से उतरा, नजर उन पर ठहर गई. चकित हो गया. अब तक मैं उन्हें एक लड़की के तौर पर सोचता था. इसीलिए उनके साथ फिल्में करने से भी बचता था. मगर यहां तो एक बेहद खूबसूरत औरत खड़ी थी. वह हकीकत में मेरी सोच से भी ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही थीं.

9. सितार बजाना कब सीखाः 1960 में मेरी एक फिल्म आई थी कोहिनूर. ये फिल्म मेरे लिए खास है क्योंकि मैंने एक्टिंग के अलावा भी इसके लिए बहुत कोशिशें कीं. सितार सीखने के लिए मैं घंटों अभ्यास करता था. इसी दौरान मेरी मीना कुमारी से दोस्ती भी मजबूत हुई. हम दोनों ही पर्दे पर अपने इमोशनल ड्रामा के लिए मशहूर थे. मगर इस फिल्म में दोनों ही कॉमेडी कर रहे थे.

10. अमिताभ दिलीप साहब का कौन सा सीन देखते थेः अभी कुछ दिनों पहले की बात है. मैं और अमिताभ गुफ्तगू कर रहे थे. तब उन्होंने मुझे ये किस्सा सुनाया. जब वह इलाहाबाद में थे और स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे. तब मेरी फिल्म गंगा जमुना वह बार बार देखते थे. यह बात उन्हें बहुत गहरे से छू गई थी कि एक पठान यूपी के एक युवा का किरदार कितनी सहजता से निभा रहा है. वहां की बोली को कितने यकीनी तौर पर बोल रहा है.

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