आरुषि-हेमराज मर्डर केस में विशेष सीबीआई जज को अंग्रेजी में टाइप करने वाले स्टेनोग्राफर को ढूंढने में परेशानी हुई. इस वजह से उन्हें अपने वकील बेटे से फैसले के कुछ शुरुआती पन्ने टाइप करवाने पड़े. इस बहुचर्चित हत्याकांड पर अविरक सेन की किताब 'आरुषि' में रोचक तथ्यों का जिक्र किया गया है.
यह किताब महज मर्डर के मुकदमे के बारे में नहीं है, बल्कि यह उसके परे जाते हुए भारत में न्याय प्रक्रिया और जांच की प्रक्रिया की बारीकी से पड़ताल करती है. पुस्तक मामले की सुनवाई प्रक्रिया और इससे जुड़े कई लोगों के साथ लेखक के साक्षात्कार पर आधारित है.
जज श्यामलाल ने 25 नवंबर , 2013 को आरूषि के माता-पिता नूपुर और दीपक तलवार को इस मामले में दोषी ठहराया था. उन्हें अगले दिन आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. अभी वे दोनों गाजियाबाद के डासना जेल में बंद हैं. इसके खिलाफ उनकी अपील अभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है.
जज के बेटे आशुतोष के मुताबिक , आरूषि मामले में स्थिति अलग थी. हमें निर्णय में कुछ अच्छे शब्दों का प्रयोग करना था. हमें उन पेजों को बार-बार देखना पड़ा, ताकि कोई गलती न रही जाए. लिहाजा उसमें कुछ समय लगा. एक पेज को टाइप करने में दस मिनट का समय लगा.
उन्होंने बताया कि टाइपिस्ट को हासिल करना एक मुश्किल काम था. गाजियाबाद में सभी टाइपिस्ट केवल हिन्दी में काम करते हैं. अंग्रेजी में टाइप करने वाले केवल एक या दो स्टेनो हैं. हमें विशेष प्रबंध करना पड़ा. 210 पेज के फैसले में शुरूआती दस पेज खुद टाइप करना पड़ा.