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प्रेम कविताओं की वसुंधरा है चार खंडों का यह वृहद कविता संचयन

हर पीढ़ी प्रेम को अपनी नजर से निरखती परखती है. डॉ सुमन सिंह के संचयन में सर्वभाषा ट्रस्ट से चार खंडों में प्रकाशित काव्य-संकलन 'सदानीरा है प्यार', 'प्रेम तुम रहना', 'प्रेम गलिन' और 'खिल गया जवाकुसुम' प्रेम को अनूठे रूप में व्यक्त करता है

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डॉ सुमन सिंह द्वारा चार खंडों में संचयित और संपादित काव्य संग्रह के आवरण-चित्र
डॉ सुमन सिंह द्वारा चार खंडों में संचयित और संपादित काव्य संग्रह के आवरण-चित्र

मौजूदा कोरोना काल में प्राय: जीवन के अनेक क्रियाकलाप तो स्थगित रहे ही, रचनात्मकता भी बहुत बाधित हुई. किन्तु रचनात्मकता के इस दुर्भिक्षकाल में भी कवियों, लेखकों की सक्रियता मानीखेज़ रही है. फेसबुक पर तो कविताओं का प्रवाह उत्तरोत्तर तीव्र हुआ ही, छपाई के सिकुड़ते संजाल के बीच भी अपनी पूंजी लगा कर रचनात्मकता के अश्व रचनापथ पर अग्रसर रहे. इसी सक्रियता का एक साक्ष्य है प्रेम कविताओं का एक बहुखंडीय संचयन जिसे संपादित किया है वाराणसी की सुधी युवा कवयित्री डॉ. सुमन सिंह ने. जब बड़े-बड़े प्रकाशकों के यहां रिप्रिंट्स और नई पुस्तकों की आमद बहुत ही कम रही, महीनों प्रकाशकीय कार्यालय बंद रहे, मशीनें ठप रहीं, कुछ नए प्रकाशक अपने दुस्साहस का परिचय देते हुए इस दिशा में योजनाबद्ध ढंग से कार्यरत रहे और कुछ बेहतरीन पुस्तकें आ सकीं. प्रेम कविताओं के चार खंडों के इस संचयन का प्रकाशन सर्वभाषा ट्रस्टु, राजापुरी, उत्तम नगर नई दिल्ली ने किया है. इन खंडों के नाम हैं: 1. सदानीरा है प्यार (75 कवि), 2. प्रेम तुम रहना (76 कवि), 3. प्रेम गलिन से (86 कवि),  और 4. खिल गया जवाकुसुम (92 कवि). चारों खंड सुविस्तृत हैं तथा हर कवि की यहां दो-दो कविताएं सहेजी गयी हैं. चारों खंडों में कुछ 329 कवियों की कविताएं संग्रहीत हैं. इस तरह अपने आयाम में यह बहुत ही वृहद् प्रेम-कविता संचयन कहा जा सकता है. यों तो प्रेम कविताओं के पहले और भी संग्रह प्रकाशित हुए हैं. एक जमाने में 'आधुनिक हिंदी कवियों-कवयित्रियों के प्रेमगीत' नामक संचयन क्षेमचंद्र सुमन ने किया था. किन्तु मदन सोनी द्वारा संपादित 'प्रेम के रूपक' को अब तक की बेहतरीन कविताओं का संग्रह कहा जा सकता है, यद्यपि उसमें केवल नई कविता को प्रमुखता दी गयी है.

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जहां तक प्रेम कविताओं का संबंध है, सदियों से प्रेम कविताएं लिखी जाती रही हैं क्योंकि मानवीय प्रवृत्ति्यों में प्रेम की एक अनिवार्य जगह है. न बिना प्रेम के यह सृष्टि संभव है, न बिना प्रेम के उच्चतर मनुष्यता का निर्माण. प्रेम अपने विस्तार में केवल प्रेम का एकांतिक इज़हार भर नहीं है यह जड़ चेतन के प्रति हमारे शाश्वत संबंधों का निरूपण है. हम अपने चारों ओर प्रकृति देखते हैं जो स्वयं में एक हरी भरी कविता की तरह खिलखिलाती मिलती है. यह हरीतिमा मरुथल होते संबंधों और कुदरत के बीच एक स्नेहसेतु है. कभी नीरज ने लिखा था-
'प्यार अगर थामता न पथ में
उंगली इस बीमार उमर की
हर पीड़ा वेश्या बन जाती
हर आंसू आवारा होता.
सारा जग बंजारा होता.
आधुनिक कवियों में कबीर, रसखान, जायसी, पदमावत, रत्नाकर, मीरा ये सभी प्रेम के ही तो कवि हैं. कबीर के ढाई आखर में प्रेम की पूरी पारिभाषिकी समाई हुई है तो मीरा के इस कथन - हे री मै तो प्रेम दीवानी- में वह दीवानगी जो प्रेम को परंपरा और सामाजिक जकड़न के परे मानती है तथा अपने आप में विद्रोह का आगाज करती है. प्रेम कथानकों के चरित्रों रोमियो जूलियट, पेरामिस और थिसबे, हीर-रॉंझा, विक्रम और उर्वशी इस बात के प्रमाण हैं कि प्रेम के बिना यह संसार निस्सार है. जायसी प्रेम के अनुगायक रहे.
यह तन जारै क्षार कै कहौ कि पवन उड़ाय.
मकु तेहि मारग ह्वै पड़ै कंत धरै जँह पांव-
कह कर उन्होंने प्रेम को मानवीयता के उच्च सूचकांक पर टांग दिया. रसखान का प्रेम उनके सवैयों में झलकता है. उनके ब्रजवर्णन में झलकता है. कृष्णा और राधा के प्रेम को व्यंजित करते हुए रत्नाकर प्रेम के पक्ष में खड़ी गोपिकाओं से उद्धव को वह डॉंट पड़वाते हैं कि उनके ज्ञान की धज्जियां बिखर उठती हैं.

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यही प्रेम आधुनिक युग के कवियों में थोड़ा संभ्रांत सा नजर आता है गो कि आदिम प्रवृत्तियों में प्रेम का स्वरूप आज भी वही है. प्रेम में मिलन, विछोह, संयोग, विप्रलंभ, उलाहने, नोक-झोंक, अनुभूति, संवेदना, त्याग, मोह, आसक्ति, वासना सभी तत्व समाए हुए हैं. प्रेम केवल समर्पण की कला नहीं है, न ही वह नवधा भक्ति का उदाहरण. प्रेम तो मानवीय संबंधों को उदात्त बनाने की प्रक्रिया है. किसी कवि ने कहा है, सौ सौ जनम प्रतीक्षा कर लूँ प्रिय मिलने का वचन भरो तो. यह प्रेम की पराकाष्ठा है. यों तो सारी कविता जो मनुष्यता के पक्ष में लिखी जाती रही है, प्रेम की ही कविता है. उसमें सीधे प्रेम का बखान हो न हो. प्रेम में समर्पण को पराजय नहीं माना जाता, विनम्रता प्रेमी या प्रेमिका के बड़प्पन की कुंजी है. यह अहं का विलयन है जो प्रेम में ही संभव है. जितना यह विलयन महत्तम होता है, उतना ही प्रेम की सघनता प्रगाढ़ होती है. घनानंद ने तभी तो कहा है कि अति सूधो सनेह को मारग है तहं नैकु सयानप बांक नहीं
तँह सांचे चलें तजि आपनपौ झिझकें कपटी ने निसांक नहीं.
प्रेम की सदियों से चली आती पारिभाषिकियों के बावजूद इसका रूप निरंतर नया होता चलता है. हर आने वाली पीढ़ी अपने प्रेम को अपनी नजर के आईने में निरखती परखती है.  

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सुमन सिंह ने संचयन के चौथे खंड की भूमिका में लिखा है, ''ध्यान की अविचल, लवलीन, एकात्म अवस्था ही प्रेम की वास्तविक अवस्था होगी, अन्यथा कबीर कैसे कह पाते- संतो सहज समाधि भली, साईं ते मिलन भयो जा दिन तें सुरत न अंत चली.- कबीर की वाणी को ओज देते और स्वयं की मौलिक नवीन परिकल्पनाएं और परिभाषाएं गढ़ते कई कई संतों ने इस ढाई आखर का महात्म्य सिद्ध किया और पीढ़ियों ने जाना कि कितना विराट और कितना बहुआयामी आयाम समेटे है यह ढाई आखर कि हर काल खंड के लिए चिर नूतन और रहस्यमय ही बना रहा.'' (खिल गया जवा कुसुम, भूमिका) इन चारों खंडों में कुल लगभग तीन सौ कवियों को समाहित किया गया है जिनमें हर पीढ़ी के कवि कवयित्रियां शामिल हैं. ब्‍लर्व पर प्रेम के कथ्य पर प्रकाश डालते हुए सर्वभाषा ट्रस्ट के निदेशक एवं विद्वान केशव मोहन पांडेय लिखते हैं, ''प्रेम एक रसायन है, यह यंत्र नहीं, द्रष्टा और दृष्टि का विलयन है, सौंदर्य के दृश्य रसायन होने के कारण ही द्रष्टा की दृष्टि में विलयित हो पाते हैं. यही अवस्था प्रेम की अवस्था होती है. ... सौंदर्य मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है और प्रेम उस सौंदर्य में समाहित रहता है.''

प्रेम उदासियों के विरुद्ध एक हस्तक्षेप है. यह पट-परिवर्तन है एकरसता का. नरेश सक्सेना की कविता कहती है-

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तनिक देर और आसपास रहें
चुप रहें, उदास रहें
जाने फिर कैसी हो जाए यह शाम. (खिल गया जवा कुसुम, पृष्ठ 17)

अशोक वाजपेयी तो प्रेम के पुरोधा कवियों में रहे हैं. निज के प्रेम के अनेक नए नए बिम्ब उनकी कविताओं में आते हैं. यों तो उनका पहला ही संग्रह 'शहर अब भी संभावना है'- प्रेम कविताओं की ताजगी का एक अनन्य उदाहरण है जिसमें प्यार करते हुए सूर्य-स्मरण जैसी तेजस्वी कविता है पर वे अभी तक प्रेम कविताओं से ऊबे नहीं हैं, जैसे यह संसार प्रेम करता हुआ अब तक नहीं ऊबा है. प्रेम की यह अनन्तता उनके काव्य में आद्यंत विद्यमान है. यहां उनकी दो कविताएं 'विदा' और 'प्यार करते हुए सूर्य-स्मरण' संकलित हैं. नंद किशोर आचार्य गांधीवादी अज्ञेयवादी रचनाकार हैं, सो प्रेम के अनेक मनोहर बिम्ब उनके यहां मौजूद हैं. उनकी छोटी-छोटी कविताओं में प्रेम की गहरी छुवन प्राय: हर चौथी कविता में दिखती है. इस तरह यह मरुथलवासी कवि अपनी कविताओं में जैसे प्रेम के जवाकुसुम खिलाने वाला कवि है. मोहन कुमार डहेरिया का तो एक संग्रह ही प्रेम कविताओं को समर्पित है. 'मुझे प्यार करना' यहां संकलित उनकी बेहतरीन कविताओं में एक है. इधर की प्रेम कविताओं की केंद्रीय कवयित्रियों में नीदरलैंड की कवयित्री पुष्पिता अवस्थी का नाम आता है, जिनकी दो कविताएं 'सजल उर मित्र' और 'मैं जानती हूँ' अपनी ओर ध्यानाकर्षण करती हैं. यह प्रेम कविताओं का ही माहात्‍म्‍य है कि बरसों पहले ज्ञानेंद्रपति की कविता 'ट्राम में एक याद' प्रेम कविताओं का एक ऐसा आइकन बन गयी कि आज कई संग्रह आने और मौजूदा समय के कथ्य के एक बड़े कवि होने के बावजूद उन्हें इस कविता के जरिए ही बहुधा याद किया जाता है. आनंद गुप्ता की कविताओं में संवेदना की धरा बहुत उर्वर दिखती है, यहां शामिल 'अनकहा' और 'हमारे बीच' कविताएं उनके इस संवेदन की गवाही देती हैं. यहां 'प्रेम गिलहरी दिल अखरोट' तथा 'उदासी मेरी मातृभाषा है' संग्रहों के लिए ख्यात बाबुषा कोहली व लवली गोस्वामी की कविताएं हैं तथा सुलोचना वर्मा, लीना मल्होत्रा, उपासना झा, पूनम अरोड़ा, श्रुति कुशवाहा, ज्योति शोभा जैसी चर्चा में उभरी कवयित्रियां भी जिनकी कविताओं में हिंदी की अलक्षित काव्य‍ संवेदना विकसित हुई है और गौरव गुप्ता सरीखे युवा कवि भी- इस अर्थ में प्रेम कविताओं में चारों खंड हिंदी कविता के मौजूदा समय में प्रेम की गरिमा को एक नया अर्थ विस्तार देते हैं. प्रेम के असमंजस में घिरे संसार में इसे युवा कवि गौरव गुप्ता किस बारीकी से नया अर्थ देते हुए लगते हैं ***

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प्रेम में बिन पतझड़ झड़ सकते हैं पत्ते
बिन बसंत खिल सकता है अमलतास
प्रेम में कोई हो सकता, मन के बेहद पास
एक ओस की बूंद गिरते ही भीग सकता है मन
प्रेम में बहुत कोशिशों की जरूरत नहीं होती. (वही, पृष्ठ 367)

बाबुषा कोहली प्रेम को कुछ इस रूप में देखती हैं --

उठो
तुम भी उठो
शहर की सबसे ऊंची मस्जिद की अज़ान पर उठो
प्रिय के नाम को कंठ पर उठाओ
नमाज़ हो जाओ. (वही, पृष्ठ 236)

तो प्रेम की ही एक अन्य विलक्षण कवयित्री लवली गोस्वामी प्रेम के अभिज्ञान को कुछ इस तरह पहचानने का यत्न करती हैं-
प्रेम तुम्हारी चंचल आंखों की ताब नहीं है
यह मेरी नज़र का मान भी नहीं है
यह कामनाओं के उपवन में उगी अवांछित पौध नहीं
जो जरूरत से सींच कर उगाया गया अलंकरण भी नहीं
यह चाय बागान में लगाया गया सिल्वर ओक है
वह विश्राम स्थल जो हमारी निरीहता के पलों में
खुद टूट कर हमारी आत्मा  को निराशा की तेज धूप
और हकीकतों की उत्ताल हवा से बचाता है. (वही, पृष्ठ 242)

प्रेम कविताओं के ये चयन बताते हैं कि हर देश काल और परिस्थिति में प्रेमी पैदा होते रहेंगे, प्रेम की वसुंधरा सदैव प्रणय के बीज को अपनी कामनाओं में बसाए रहेगी, कविताएं लिखी जाती रहेंगी और हिंसा, बर्बरता, नस्ल भेद, रंगभेद और हर तरह की संकीर्णताओं के पार प्रेम कविताओं की वसुंधरा सदैव अपनी अभिव्यक्ति के लिए समुत्सुक रहेगी. आज के युवा प्रेम को किस दृष्टि से देखते हैं, और किस तरह की उम्दा प्रेम कविताएं इनदिनों भी लिखी जा रही हैं, उनको समझने और पढ़ने के लिए ये संग्रह उपयोगी हैं.
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समीक्षित पुस्‍तक  
1. सदानीरा है प्यार (75 कवि)
2. प्रेम तुम रहना (76 कवि)
3. प्रेम गलिन से (86 कवि)
4. खिल गया जवाकुसुम (92 कवि)
चयन एवं संपादन: सुमन सिंह
भाषाः हिंदी
विधाः कविता
मूल्यः क्रमश: ₹300, ₹350, ₹350 एवं ₹400 रुपए.
प्रकाशक: सर्वभाषा ट्रस्ट, जे 49, स्ट्रीट नं. 38, राजापुरी,
              उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059.
***
# डॉ ओम निश्चल हिंदी के सुधी आलोचक कवि एवं भाषाविद हैं. आपकी शब्दों से गपशप, भाषा की खादी, शब्द सक्रिय हैं, खुली हथेली और तुलसीगंध, कविता के वरिष्ठ नागरिक, कुंवर नारायण: कविता की सगुण इकाई, समकालीन हिंदी कविता: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य व कुंवर नारायण पर संपादित कृतियों 'अन्वय' एवं 'अन्विति' सहित अनेक आलोचनात्मक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं. आप हिंदी अकादेमी के युवा कविता पुरस्कार एवं आलोचना के लिए उप्र हिंदी संस्थान के आचार्य रामचंद शुक्ल आलोचना पुरस्कार, जश्ने अदब द्वारा शाने हिंदी खिताब व कोलकाता के विचार मंच द्वारा प्रोफेसर कल्या‍णमल लोढ़ा साहित्य सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं.  संपर्कः जी-1/506 ए, उत्तम नगर, नई दिल्ली- 110059, मेल dromnishchal@gmail.com

 

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