किताब: रिश्ते
लेखक: संजय सिन्हा
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
कीमत: 245 रुपये
फेसबुक आज जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है लेकिन कुछ लोगों को मानना है कि फेसबुक ने आत्मीयता समाप्त कर दी है. अब लोग विशेष अवसरों पर घर जाकर एक-दूसरे से नहीं मिलते, बस फेसबुक पर भावों को अंकित किया और दूरस्थ व्यक्ति तक पहुंच गया संदेश. इसमें कहां रहा रिश्तों का अपनापन? लेकिन ‘रिश्ते’ किताब में कहानीकार संजय सिन्हा ने सभी को सोचने और अपनी धारणा बदलने को बाध्य ही कर दिया है. संजय सिन्हा की किताब ‘रिश्ते’ अद्भुत है. सीधी, सरल और मन में उथल-पुथल मचाने वाली भाषा में अभिव्यक्ति ने किताब को विशिष्ट बना दिया है. फेसबुक पर अंकित किए गए लेखक के हर दिन के विवरण ने उन्हें सैकड़ों लोगों से अटूट रिश्ते में बांधा है. इन्हीं संबंधों को 'रिश्ते' के जरिए किताब की शक्ल दी गई है.
‘रिश्ते’ किताब जीना सिखाती है. रिश्तों को लेकर पैदा होते डर को दूर भगाती है. अनजान को अपना बनाने का संदेश देती है. अपनेपन को बढ़ाती है. प्यार पैदा करती है और अवसाद अकेलेपन से आपको रिश्तों की महकती बगिया का खूबसूरत प्यारा पुष्प बनाती है. फेसबुक के जरिए संजय हर वर्ग और हर आयु के व्यक्ति से जुड़े और इसी जुड़ाव ने अनूठे इंसानी रिश्ते कायम किए, जो लेखक ने धरोहर की भांति ‘रिश्ते’ में समेटने की कोशिश की है. इन्हीं रिश्तों में हजारों मित्र, भाई, संरक्षक और आत्मीय स्वजन हैं और कहीं–कहीं रचनाओं के सृजन के लिए अनायास मिल जाने वाले पात्र.
‘रिश्ते’ रचना में अधिकतर आपबीती है तो कहीं जगबीती भी है. रिश्तों की परख, गहराई और उनकी ऊष्मा को दिल से जिया है लेखक संजय सिन्हा ने. पुस्तक से ही स्पष्ट है कि रिश्ते खून के ही नहीं होते बल्कि पल दो पल का सच्चा साथ भी कभी ना टूटने वाली रज्जु की भांति मजबूती से हमें बांध लेता है और आाजीवन हम उसे जीते हैं. रचना में यह स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है कि फेसबुक के जरिेए जुड़े कितने ही पराए नितांत अपने से लगते हैं. फेसबुक ने मां उर्मिला श्रीवास्तव, बड़े भाई जवाहर गोयल, पवन चतुर्वेदी, अमित चतुर्वेदी, बहन रंजना त्रिपाठी, दोस्त मोनिका गुनेटा और सखी स्वधा शर्मा के रूप में एक पूरा परिवार बना दिया है.
रिश्ते, जीवन में सबसे महत्वपूर्ण हैं. रिश्ते ही हमें संबल देते हैं तो कभी सोचने को विवश करते हैं. कभी मन को झकझोर देते हैं तो कभी अंतर्मन के किसी कोने में अमिट छाप छोड़ देते हैं. यह रिश्ते ही तो हैं जो जीवन में नया उजाला भर देते हैं और मन का कोना-कोना जगमग हो उठता है. इन्हीं रिश्तों की बेहद खूबसूरत बानगी है किताब रिश्ते. ‘रिश्ते’ रचना में रचनाकार के जीवन के अनुभवों की स्पष्ट छाप दिखाई देती है. रचनाकार संजय सिन्हा ने जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे. संवेदनाओं से परिपूर्ण रचनाकार संजय सिन्हा का हृदय कहीं अंदर तक भीग उठता है और हर दिन फेसबुक पर कोई न कोई ऐसा विवरण मिलता है जो रचनाकार के कोमल अंतर्मन से परिचित कराकर पूरे दिन में कभी ना कभी रिश्तों के गगन में विचरण करने पर बाध्य अवश्य करता है.
‘रिश्ते’ हमें सोचने के लिए विवश करती है कि कैसे व्यक्ति एक अनाम रिश्ते में अपूर्व सुकून महसूस करता है. फेसबुक पर जुड़ते–जुड़ते कैसे कोई रिश्ता जीवन भर के लिए अटूट बन जाता है. दिल में गहराई से उतरे यह रिश्ते कभी किसी नितांत अपरिचित के दुख में हमारी आंखे भिगो देते हैं और कभी हम इन रिश्तों के सुख में आह्लादित होते हैं. यह अनाम अपरिचित रिश्ते ही हमें प्रेरणा देते हैं, संघर्षों से जूझने का हौसला देते हैं. यह रिश्ते ही जीवन का आधार होते हैं. मानवीय भावनाओं से ओत-प्रोत ‘रिश्ते’ किताब अपने आप में अनूठी है. अगर आप भी रिश्तों की कद्र करते हैं तो यह किताब आपके लिए है. यह किताब आपको रिश्तों को सोचने का नया नजरिया देगी.