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इस किताब से जानिए टीवी न्यूज मीडिया का 'ए टु जेड'

पत्रकारिता का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए के लिए ही नहीं बल्कि अध्यापकों के लिए भी इस पुस्तक से उनके अनुभव में और इजाफा होगा.

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TV Samachar ki duniya
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किताब: टीवी समाचार की दुनिया
लेखक: कुमार कौस्तुभ
प्रकाशक: किताब घर
कीमत: 500 रुपये

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अगर टीवी खबरों की दुनिया में आना चाहते हैं तो यह किताब आपकी मदद करेगी. लेखक कुमार कौस्तुभ ने ‘टीवी समाचार की दुनिया' किताब में समाचार के स्वरूप से लेकर प्रसारण की बारीकियों और उसके प्रोडक्शन की प्रक्रिया की बारीकियों को सरलता से स्पष्ट किया है.

बदलते परिदृश्य में आज मानव ज्यादा जिज्ञासु ही नहीं बल्कि जागरूक भी हुआ है. जनसंचार के अनेकानेक माध्यम आज हमारे सामने हैं. इसमें भी सबसे आगे हैं 24 घंटों के खबरिया चैनल. किसी भी घटना के ब्योरे को संवेदनशील तरीके से लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इन चैनलों की ही है. यही वजह है कि जनसंचार के सभी माध्यमों में रेडियो और टीवी ने अखबारों को काफी पीछे छोड़ दिया है.

वजह बड़ी सरल है कि देश-दुनिया की खबरों को सनसनीखेज अंदाज में पेश किया जाता है कि दर्शकों की रुचि बनी रहती है. टीआरपी की दौड़ में चैनल अच्छी बातों को ज्यादा नहीं दिखाते. लेखक कुमार कौस्तुभ पुस्तक के माध्यम से यही स्पष्ट रूप से बताना चाहते हैं कि टीवी पत्रकारिता को और अच्छा और निष्पक्ष बनाया जा सकता है.

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कौस्तुभ ने विभिन्न समाचार और मनोरंजन चैनलों के उद्भव, विकास और कई चैनलों के समापन पर प्रकाश डाला है. किताब में कौस्तुभ ने बड़े-बड़े दिग्गज पत्रकारों के बल-बूते कुछ चैनलों की डूबती नैया पर भी प्रकाश डाला गया है. बात जब समाचार चैनलों की हो तो दूरदर्शन आज भी खबरों की विश्वसनीयता को बनाए हुए है. दूसरे समाचार चैनलों में डेस्क के लेखक या प्रोड्यूसर और संपादक भले ही कितने भी पारदर्शी क्यों न हों, लेकिन बहुत बार उन पर दबाव रहता है और खबरों का वह स्वरूप वह नहीं रह पाता जो होना चाहिए. लेकिन आज का दर्शक भी जागरुक है और मसालेदार खबरों से प्रभावित नहीं होता.

निजी समाचार चैनलों और डीडी न्यूज की खबरों और संवाददाताओं की कार्यप्रणाली पर भी कौस्तुभ ने प्रकाश डाला है. डीडी न्यूज के संवाददाता खबरों के प्रति ज्यादा उत्सुक और संलग्न कम ही दिखे लेखक को जबकि निजी चैनलों के संवाददाताओं के लिए खबर निकाल लाना और चैनल तक शीघ्रातिशीघ्र पहुंचाना बहुत अहम है. यही है दोनों की कार्यप्रणाली का अंतर.

देश के सबसे अच्छे प्रसारण उपकरण भले ही दूरदर्शन के पास हैं लेकिन उनका सार्थक उपयोग डीडी नहीं कर पा रहा है. डीडी के संपादकीय विभाग को विशेष आचार संहिता का भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है. टीवी पत्रकारिता के व्यावहारिक पहलुओं की भी बड़ी सुंदर और विशद व्याख्या प्रस्तुत की है कौस्तुभ ने. अपना पसंदीदा क्षेत्र न मिलने पर भी दूसरे क्षेत्र में मेहनत से प्रतिभा को निखारना भी आवश्यक है. नजरिया तीक्ष्ण हो और व्यवहार में आक्रामकता है तो आप समाचार चैनल में अपनी जगह बना सकते हैं. यही मूल संदेश दिया है लेखक कुमार कौस्तुभ ने अपना पुस्तक में.

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टीवी न्यूज में डेस्क किसी भी चैनल की धुरी है. योग्य प्रोड्यूसरों पर पर ही चैनल को चलाने की का उत्तरदायित्व होता है. चाहे वह पर्दे के पीछे रहकर काम करें और आवश्यकता पड़ने पर लाइव प्रसारण में खबरों के विश्लेषण की भी शानदार क्षमता प्रदर्शित करें. कौस्तुभ ने ऐसे ही कुछ विशिष्ट संपादकों और एंकर्स के नाम बताए हैं.

खबरों के स्रोत और संवाददाताओं की भूमिका काफी अहम है. रिपोरटर्स या संवाददाताओं का काम बहुत चुनौतीपूर्ण है. अपने तथ्य और तर्कों से कई बार खबरों से जुड़ी हस्तियों की बोलती बंद कर देते हैं संवाददाता और एंकर्स.

कुमार कौस्तुभ ने 'टीवी समाचार की दुनिया' में समाचार का कोई भी पक्ष या पहलू नहीं छोड़ा. समाचार के स्वरूप, उसका किस प्रकार निर्माण होता है, संपादन होता है, और तब जाकर उसका प्रसारण किया जाता है इसकी विस्तृत तस्वीर किताब में पेश की गई है.

पुस्तक 'टीवी समाचार की दुनिया' भले ही बाहरी तौर पर बहुत आकर्षक न लगे और चमक-दमक वाली भी न लगे लेकिन असलियत में इसमें बहुत मेहनत है. तीक्ष्ण दृष्टि, आक्रामक तेवर, भाषा पर अच्छी पकड़, स्क्रिप्ट लिखना, कैमरे के माध्यम से खबर को शूट करना, समाचारों का संपादन, सभी बहुत मेहनत, ऊर्जा और विश्वसनीयता से किए जाने वाले कार्य हैं. तभी प्रसारण सफल और प्रभावी बनता है. यह सब बहुत ही सहज और सरल रूप से किताब में स्पष्ट किया है.

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पत्रकारिता का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए के लिए ही नहीं बल्कि अध्यापकों के लिए भी इस पुस्तक से उनके अनुभव में और इजाफा होगा. पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सरल और रोचक है. कहीं-कहीं भाषा शैली चुटीली है किंतु रोचक भी. सबसे प्रभावशाली और महत्वपूर्ण बात यह है कि लेखक कौस्तुभ ऐसी बारीकीयों को सामने लाए हैं जिन पर ध्यान देकर छात्र अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई को निखार सकते हैं.

लेखक ने अपने अनुभवों के आधार पर जो तथ्य प्रस्तुत किए हैं. भले ही कहीं-कहीं वह चैनलों की कार्यशैली पर व्यंग्य करते प्रतीत हों, लेकिन सच्चाई को भी उजागर करते हैं और यही उनकी सफलता है. कुमार कौस्तुभ इस अर्थ में बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने किताब के रूप न केवल टीवी समाचार का समग्र रूप प्रस्तुत किया बल्कि एक नई दिशा भी दी है जिसका अनुसरण कर सफलता के झंडे गाड़े जा सकते हैं.

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