साहित्य आजतक कोलकाता 2024 का पहला दिन काफी बढ़िया रहा. ये दूसरी बार है जब कोलकाता में साहित्य आजतक हो रहा है. इस इवेंट में फेमस एक्टर जीत ने शिरकत की. जीत ने मॉडरेटर श्वेता सिंह से बातचीत की. यहां उन्होंने अपने एक्टिंग करियर, बंगाली सिनेमा समेत कई मुद्दों पर अपने विचार रखे.
कहां से देखा एक्टिंग का सपना?
टॉलीवुड का बादशाह सेशन में जीत से पूछा गया कि आपका एक्टर बनने का सपना कहां से शुरू हुआ? उन्होंने जवाब में कहा- ये ऊपर वाले का आशीर्वाद था. उन्होंने किस्मत में लिखा था तो मैं यहां आया. 1996-97 में मैंने कुछ विज्ञापन किए थे. फिर मेरे शुभचिंतकों ने कहा मुंबई चले जाओ. मुंबई में मैं चार-पांच साल था. फिर मैं बंगाल में वापस अपने घर आ गया. 2002 में मुझे फिल्म बनी और उसके बाद से मुझे कभी पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. आगे चलकर भी हम प्यार बटोरते रहेंगे.
हर किरदार कैसे कर लेते हैं जीत?
पूरा सफर आपका देखें तो जीत ने भोजपुरी फिल्म भी की है. 2008 के आसपास उन्होंने ये फिल्म की थी. बांग्ला फिल्मों में ऐसा कोई किरदार नहीं है जो जीत ने ना किया हो. इसपर उन्होंने कहा कि ये सब लोगों का प्यार है. मैं अपने हर किरदार को ईमानदारी के साथ करने की कोशिश करता हूं. कोई भी काम होता है वो चाहे बतौर अभिनेता, पुत्र हो, पति हो, बाप हो, भाई हो वो पूरी निष्ठा के साथ निभाने की कोशिश करते हैं. अपने क्रम को ठीक से करने में जीत विश्वास करते हैं.
जीत ने बताया कि वो अपने हर किरदारों को बखूबी इसलिए निभाते हैं क्योंकि वो चीजों अच्छे-से अब्जर्व करते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी एक्टिंग की ट्रेनिंग नहीं ली है. उन्होंने कुछ थिएटर प्ले किए हैं. लेकिन कभी कड़ी ट्रेनिंग नहीं ली. साथ ही उन्होंने खुद में ईगो ना होने पर भी बात की.
जीत में क्यों नहीं है ईगो?
उन्होंने कहा कि देखिए किताबी भाषा में ईगो का मतलब बताया गया है कि जब हम अंग्रेजी में आई लिखते हैं तो हम एक सीधी लकीर खींचते हैं. जब आप लोगों के बीच एक लाइन खींच देते हैं तो उनके बीच दीवार खड़ी हो जाती है और उसे ईगो कहते हैं. किसी भी कामयाबी को अपने आप पर हावी नहीं होने देना चाहिए. कहते हैं कि सक्सेस अपने सिर पर और फेलियर को अपने दिल पर नहीं लेना चाहिए. इसीलिए ईगो की कोई जगह नहीं है. मैं अपने घर जाता हूं कि बीवी से मिलता हूं तो समझ आ जाता है कि ईगो की कोई जगह ही नहीं है. इसके बाद जीत ने बांग्ला भाषा में गाना भी गाया.
कंटेंट है किंग
आगे जीत से पूछा गया कि बहुत लंबे टाइम हम कहते रहे कि मेनस्ट्रीम सिनेमा ही बड़ा है. लेकिन आज के समय में कंटेंट बड़ी चीज हो गई है. एक पूरा साल निकल गया जब बॉलीवुड की फिल्में हिट नहीं हुई थीं. लेकिन साउथ की फिल्में हिट नहीं सुपरहिट रही थीं. क्या आप बंगाली फिल्मों ने वो ऊंचाई हासिल की है.
जवाब में एक्टर ने कहा- बंगाली फिल्में अभी भी अंडरपरफॉर्म करती हैं. लेकिन अभी भी अगर आप कोई भी अच्छा कंटेंट बना रहे हैं तो भाषा उसे नहीं बांध सकती. आज के वक्त में कोई भी कहीं भी बैठकर सिनेमा देख सकता है. सही बात है साउथ की फिल्में अच्छा कर रही हैं, लेकिन बॉलीवुड भी अब कर रहा है. एक साल बॉलीवुड ने अच्छा परफॉर्म नहीं किया. लेकिन फिर पठान आ गई, 500 करोड़ का उसने धंधा किया. गदर आई और फिर अभी एनिमल आई. और बांगला फिल्मों में पोटेंशियल कम नहीं है. हमें मौका मिले तो हम भी कर सकते हैं. हमारे पास भी बहुत बढ़िया तकनीशियन हैं. हम भी परफॉर्म कर सकते हैं. हम तो तैयार हैं.
आर्ट के लिए भाषा रुकावट नहीं
सेशन के दौरान जीत से ये भी पूछा गया कि भाषा को लेकर लड़ाई होनी चाहिए या नहीं. एक्टर राम चरण जब अपने गाने नाटू नाटू के लिए ऑस्कर लेकर भारत लौटे थे तो उन्होंने कहा था कि फिल्में तो सबको देखनी चाहिए, ये लड़ाई नहीं होनी चाहिए कि तमिल में बनी है तेलुगू में बनी है. आप भी इसे मानते हैं.
इसपर जीत ने कहा- भाषा कभी भी आर्ट के लिए रुकावट हो ही नहीं सकती. स्पैनिश शो मनी हाइस्ट हम सभी ने देखा था. वहीं अपनी फिल्मों की ऑल इंडिया रिलीज पर वो बोले- हमने दो फिल्में रिलीज की है. फिल्म मानुष ने अच्छा परफॉर्म नहीं किया. यहां और ऑल इंडिया दोनों में. लेकिन फिल्म चंगीज ने अच्छा परफॉर्म किया था ऑल इंडिया और बंगाल दोनों में. मैं कहूंगा कि जीत की एक तरफ ये इच्छा है कि बंगाली फिल्म इंडस्ट्री को आगे ले जाए, और ये भी इच्छा है कि लोग मुझे भी जानें, मेरे काम को भी ज्यादा से ज्यादा लोग जानें. वो हिंदी फिल्म से हो या बांगला फिल्म. इसलिए मैंने भोजपुरी फिल्म भी की, उड़िया फिल्म भी की.
अमिताभ बच्चन से हुए प्रभावित
आप आज की तारीख में अपने लिए क्या टारगेट लेकर चल रहे हैं. उन्होंने कहा 720 करोड़ लोगों के दिलों तक पहुंचने का उनका लक्ष्य है. इसके आगे उन्होंने अपने फेवरेट एक्टर्स के बारे में बात की. जीत ने जवाब दिया- स्टाइल ऑफ एक्टिंग मुझे कई लोगों का पसंद हैं. अगर मैं बताऊं जहां से मुझे पहला सीड आया. तो मैं कहूंगा कि मैंने जब दीवार देखी और अमिताभ बच्चन को विजय का किरदार निभाते देखा, तो मैंने सोचा था कि मैं भी एक्टिंग करना चाहता हूं. आज मैं जिस भी अच्छे एक्टर को देखता हूं तो प्रेरित होता हूं. मैं अपने चार महीने के बच्चे, 11 साल की बेटी और पत्नी से भी सीखता हूं. मैं किस्मत में विश्वास रखता हूं मैं मानता हूं कि किसी और का हक मैं नहीं छीन सकता और कोई मेरा नहीं छीन सकता. मुझे अल्लू अर्जुन, ऋतिक रोशन का काम पसंद है.
मीठा है पसंद लेकिन करते हैं कंट्रोल
जीत ने बताया कि उन्हें मीठा बहुत पसंद है. उन्होंने एक्टिंग के बारे में बात करते हुए कहा- एक्टर को दो हिस्सों में देखो तो लीड रोल में अलग तरीका की मेहनत होती है और और कैरेक्टर रोल में अलग. कैरेक्टर एक्टर को छूट होती है कुछ भी करने की और लीड रोल के लिए एक्टर को जिम्मेदार होना पड़ता है. क्योंकि लोग उसे स्क्रीन पर देखेंगे और उससे प्रेरित होंगे. मुझे भी डाइट करनी होती है. मैंने मीठा छोड़ा हुआ है. मुझे मीठा बहुत पसंद करता हूं. मुझे संदेश अच्छा लगता है. खाना बहुत पसंद है. लेकिन मैं पिछले दो सालों से कंट्रोल कर रहा हूं. मैं छुट्टी पर जाता हूं तो 3-4 किलो वजन तो बढ़ाकर ही आता हूं. फिर उसे घटाने में लगभग दो महीने का वक्त तो लग ही जाता है.
फिल्मों में काम करने को लेकर उन्होंने बताया कि वो हर शॉट के बाद सोने से पहले सोचते हैं कि यहां ये कर सकता था और वहां वो कर सकता था. एक्टर ने कहा कि वो बेहतर बनना चाहते हैं बेस्ट नहीं. साथ ही उनका कहना ये भी है कि मेनस्ट्रीम सिनेमा में काम करना काफी मुश्किल है. ट्रोल्स को लेकर भी जीत ने बात की. उन्होंने कहा कि मैं ट्रोल्स को इग्नोर करते हूं. कहते हैं कि आपको सबको खुश रखना है तो आइसक्रीम बेचिए. तो मैं वही सोचता हूं.
क्या है पूरा नाम?
इस बातचीत के दौरान जीत ने अपने नाम को लेकर भी बात की. उन्होंने कहा- मेरा स्कूल में नाम जीतेंद्र मदनानी था. घर में सब जीतू बोले थे. फिर स्क्रीन नेम मेरा जीत रखा गया. अपने सेशन के अंत में जीत ने अपनी एक फिल्म का डायलॉग बोला. साथ ही एक बंगाली गाना भी आया.