Sahitya AajTak 2022: साहित्य आजतक के मंच पर तीसरे और आखिरी दिन 'आओ अनुवाद पढ़ें' सेशन में लेखक और अनुवादक मनीषा तनेजा और आशुतोष गर्ग ने 'अनुवाद की जरूरत और साहित्य में इसकी भूमिका' पर खुलकर बात की. राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित आशुतोष गर्ग ने कहा कि किसी भी अनुवाद को पढ़ने के बाद अगर वो अनुवाद लगे, तो वह अच्छा अनुवाद नहीं है. उन्होंने कहा भाषा में शुद्धता ढूंढ़ना प्याज में छिलके उतारने जैसा है.
अनुवाद में संतुलन हो
अनुवाद का बढ़ता महत्व और उसकी जरूरतों पर बात करते हुए जानी-मानी आनुवादक मनीषा तनेजा ने कहा कि अनुवाद भावार्थ और शब्दार्थ का संतुलन है. आप किसी को भी पीछे नहीं छोड़ नहीं सकते. उन्होंने कहा कि इसमें संतुलन होना बहुत जरूरी है. हर लेखक की अपनी शैली होती है. इसलिए उसका शब्दार्थ रखना जरूरी है.
वहीं, आशुतोष गर्ग ने कहा कि अनुवाद दो तरह के होते हैं. पहला- साहित्यिक अनुवाद और दूसरा तकनीकी अनुवाद. उन्होंने कहा कि तकनीकी अनुवाद में भाव का कोई काम नहीं है. आशुतोष ने कहा कि भावार्थ अनुवाद में भी संदर्भ का होना बहुत जरूरी है. इसलिए अनुवादक का बहुत ही महत्व है.
अनुवाद एक कला है
अपनी अनुवादित किताब और अनुवाद करने का अनुभव शेयर करते हुए मनीषा गर्ग ने कहा कि अनुवाद एक कला है. जिस तरह से लेखन एक कला है और लेखक कई तरह से लिखते हैं, उसी तरह अनुवाद भी एक कला है. अनुवाद करते वक्त हमें यह ध्यान रखना जरूरी है कि हमारा टारगेट ऑडियंस कौन है.
साहित्यिक चोरी करना गलत
साहित्यिक चोरी (प्लेजरिजम) पर किए गए सवाल के जवाब में मनीषा गर्ग ने कहा कि अगर कोई लेखक किसी दूसरी भाषा में लिखे कंटेट को अनुवादित कर अपने नाम से छाप दे तो वो गलत है. इस पर आशुतोष गर्ग ने कहा कि ये सब अब हो रहा है. इस पर नजर रखना मुश्किल है, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए.
न्यूज और साहित्य की भाषा में चुनौती
वर्तमान समय में अनुवाद के क्षेत्र में करियर पर चर्चा करते हुए मनीषा गर्ग ने कहा कि अनुवाद के क्षेत्र में अनुवादक की चुनौती अपने आप से है. उन्होंने कहा कि शब्दकोश में दिए शब्द अगर मुझे समझ में नहीं आ रहे हैं तो पाठक को कहां से समझ में आएंगे. इसलिए जरूरी है कि अनुवाद में संतुलन रखते हुए अनुवाद करें.
भाषा में मिलावट जरूरी
हिंदी अनुवाद में इस्तेमाल हो रही अन्य भाषा के इस्तेमाल पर आशुतोष गर्ग ने कहा कि भाषा में शुद्धता ढूंढ़ना प्याज को छीलकर प्याज ढूंढ़ने जैसा है. उन्होंने कहा कि भाषा में ज्यादा मिलावट तो नहीं करनी चाहिए, लेकिन जरूरत और रुचि के लिए यह जरूरी है. उन्होंने यह भी कहा कि युवा पीढ़ी को वापस किताब की ओर मोड़ने के लिए हमें प्रयास करने चाहिए.